मंदिर की घंटी मस्जिद में
छनती है
फिर सीधे मेरे कानों में
आकर बजती है
और रातों को झींगुर बहुत
देर तक कहते हैं
साहब! यहीं कहीं तानसेन अभी
भी रहते हैं
और एक लड़की को, बस देखते
रहने का जूनून हैं
शायद इसी में उसे सुकून है (
क्यों हैं?)
यह शहर है या शहर-सा है?
पर प्रश्न कुछ कोई और मन
बसा है
कि सावन के झूले मज़बूत
दरख्तों पर क्यों लगते हैं ?
उनकी आँखों में स्वर्ग-लोक
के सपने क्यों बसते हैं?
साठ वर्षों तक भोग करके रोग
से परिक्षत शरीर पर
वेश्याओं के बढ़े हाथों से
घिन आती है (क्यों आती हैं?)
सोग होता है, फिर योग होता
है
मूलबंद, जालंधर बंद,
अग्निसार
सारे कुकर्मों का यही उपचार
ऊपर मन में मैल, नीचे शंखप्रक्षालन
यहाँ शिव-शिव-शिव, वहां मिस
रॉजर्स से लालन
मैं बस इतना पूछता हूँ कि
रात के एकांत में
जब तन निढाल होता है
क्या अपनी आत्मा से सबका
सवाल होता है?
कि झिलमिल रंगीनियों के इस
खेल में
इन्द्रालय आकर क्यों जाती
है इंद्राणी जेल में ?
रात भर श्वान भूकते हैं
हम क्या सुनने से चूकते
हैं?
(निहार रंजन, ग्वालियर, २९
अगस्त २०१५)