Saturday, December 8, 2012

फिर हो मिलन मधुमास में



फिर हो मिलन मधुमास में

चहुँ ओर कुसुमित यह धरा
कण-कण है सुरभित रस भरा
क्यों जलो तुम भी विरह की आग में
क्यों न कलियाँ और खिलें इस बाग़ में
मैं  ठहरा कब से आकुल, है गगन यह साक्षी
किस मधु में है मद इतना, जो तुझमे मधुराक्षी
दो मिला साँसों को मेरी आज अपनी साँस में 
आ प्रिये फिर हो मिलन मधुमास में

यूथिका के रस में डूबी ये हवाएं मदभरी
हो शीतल सही पर अनल-सम  लग रही
विटप बैठी कोयली छेड़कर यह मधुर तान  
ह्रदय-जलधि के मध्य में उठाती है तूफ़ान
है पूरित यहाँ कब से, हर सुमन के कोष-मरंद
देखूं छवि तुम्हारी अम्लान, करें शुरू प्रेम-द्वन्द
फैलाकर अपनी बाँहें बाँध लो तुम फाँस में
आ प्रिये फिर हो मिलन मधुमास में

ये दूरियां कब तक प्रियवर, क्यों रहे तृषित प्राण
क्यों ना गाओ प्रेमगान और बांटो मधुर मुसक्यान
इस वसुधा पर प्रेम ही ला सकती है वितामस
प्रेम ही वो ज्योत है जो मिटा सके अमावस
हो चुकी है सांझ प्रियतम झींगुरों की सुन तुमुल
आ लुटा रसधार सारी जो समाये हो विपुल
दो वचन चिर-मिलन का आदि, अंत, विनाश में
आ प्रिये फिर हो मिलन मधुमास में

(निहार रंजन, सेंट्रल, ८-१२-२०१२)



फोटो: यह चित्र मित्र डॉ मयंक मयूख साहब ने  न्यू मेक्सिको के उद्यान में कुछ दिन पहले लिया था. यही चित्र इस कविता का मौजू भी है और कविता की आत्मा भी. यह कविता मित्र मयंक के नाम करता हूँ.  
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=10101379587252982&set=a.10101370240478992.2935147.10132655&type=3&theater
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=10101381732483922&set=a.10101370240478992.2935147.10132655&type=3&theater

25 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर
    प्रेमपूर्ण रचना...
    :-)

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  2. बहुत सुन्दर गीत.....और चित्र भी लाजवाब....

    अनु

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  3. है पूरित यहाँ कब से हर सुमन के कोष-मरंद
    देखूं छवि तुम्हारी अम्लान, करें शुरू प्रेम-द्वन्द
    फैलाकर अपनी बाँहें बाँध लो तुम फाँस में
    आ प्रिये फिर हो मिलन मधुमास में
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति आभार आत्महत्या-प्रयास सफल तो आज़ाद असफल तो अपराध [कानूनी ज्ञान ]पर और [कौशल ]पर शोध -माननीय कुलाधिपति जी पहले अवलोकन तो किया होता

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  4. "प्रेम ही वो ज्योत है जो मिटा सके अमावस
    हो चुकी है सांझ प्रियतम झींगुरों की सुन तुमुल
    आ लुटा रसधार सारी जो समाये हो विपुल
    दो वचन चिर-मिलन का आदि, अंत, विनाश में
    आ प्रिये फिर हो मिलन मधुमास में "

    यह पंक्तियाँ विशेष अच्छी लगीं। चित्र भी बहुत प्यारा है।

    सादर

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  5. कल 10/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    1. पोस्ट शामिल करने के लिए आपका शुक्रिया यशवंत भाई.

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  6. उत्कृष्ट भाव एवं रचना ...

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  7. क्या बात है...वाह!! शुभकामनाएँ.

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  8. ्बहुत ही प्यारी प्रस्तुति है

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  9. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (11-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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    1. Charcha Manch me is post ko shaamil karne ke liye aapka shukriya Vandana Ji.

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  10. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  11. behatareen rachana,*****"jivan ka kar shringar sajado, har pal ko madhumas banado,madumas n aaye to bhi kya,har ritu ko madhumas bana do....."

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  12. प्रेम भाव से ओतप्रोत बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति :
    मेरी नई पोस्ट में आपका स्वागत है

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  13. वाह,शिशर में मधुमासी रंग !

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  14. आपको पहली बार पढ़ा बढ़िया लगा ...आप भी पधारो मेरे घर पता है ....
    http://pankajkrsah.blogspot.com
    आपका स्वागत है

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  15. वाह! भावों और शब्दों का अद्भुत संयोजन...बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति..

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  16. किस मधु में है मद इतना, जो तुझमे मधुराक्षी
    दो मिला साँसों को मेरी आज अपनी साँस में
    आ प्रिये फिर हो मिलन मधुमास में// सुंदर भावयुक्त शब्द माल ..........चित्र वाकई
    इस गीत का मौज़ू है ......:)

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  17. वाह चित्र और कविता दोनों बहुत सुन्दर....कमल का चित्र लिया है.....मैंने भी लिया था एक तितली का चित्र पर इतना सुन्दर तो नहीं था ।

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  18. खबसूरत है ...कोमल भावनाओं को सहेजती रचना ...बधाई

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  19. सुंदर रचना..मिलन की आस और प्रेम की प्यास को बयां करती प्रस्तुति।

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