बगावत
अमानत भेंट हुई है आज
उस पाशविकता के
जो आई है समाज के
कण-कण में पसरे दानवता से
और जब से वह अर्ध्स्फुट पुष्प गई है लोक-पर
ऐसा लगता है मेरा ही
कोई हिस्सा गया है मर
एक हाहाकार मचा है
अपने अंतर में
कोई तेज नहीं है अब अपने
स्वर में
सोचता हूँ कौन थामेगा
उसके स्वजनों की बाँह
क्या हम दे ही सकते उन्हें
सिवाय कुछ सर्द आह
कायर हम क्योंकि जब हमारे
अपने ही सीटी बजाते है
कितनों को हम जोर से
तमाचा मार पाते हैं.
इसलिए बार-बार “राम”
नाम के रावण अवतरित हो पाते हैं
और हम बस इंडिया गेट और
गेटवे ऑफ़ इंडिया पर मोमबत्ती जलाते हैं
कितने हम है जो अपनी
शादी में दहेज़ को ठुकराते हैं
कितने है जो अपने घर
में कुरीतियों से टकराते है
कितने है हम जो पूछ पाते हैं अपने आप से
मेरी बहन भी क्यों न
पढ़ पायी, ये पूछते है बाप से
क्यों न होता है ये
आवेग और ये क्लेश
जब १६ साल की कोई पड़ोसी
धरती है दुल्हन का वेश
क्यों नहीं उठती है
वही प्रखर ज्वाला, होता ह्रदय विह्वल
जब घर की चाहरदीवारियों
में बेटी को लगाया जाता है साँकल
शिक्षा से कौशल ना
देकर, हम देते उसे चूल्हे का ज्ञान
और बेड़ियों में बंद कर
हम करते अबला का सम्मान
यही वजह है की राम
नाम का “रावण” जन्म से जानता है
दामिनी हो या मुन्नी,
उसे बेड़ियों में असहाय ही मानता है
ये भी जानता है, समाज
के पास नहीं है “ढाई किलो का हाथ”
समाज के पास है बस मोमबत्ती,
सजल-नयन, और बड़ी बड़ी बात
अमा दिवस में, अमा
निशा में, अमा ह्रदय में, अमा हर कण में
आँसू झूठे, आहें
झूठी, ये कविता झूठी, है झूठ भरा हर उस प्रण में
जब तक हम युवा, लेकर
दृढ निश्चय खा ले आज सौगंध
सबसे पहले अपने घर
में हम बदलेंगे कुरीतियों के ढंग
(निहार रंजन,
सेंट्रल, १२-३०-२०१२ )
कायर हम क्योंकि जब हमारे अपने ही सीटी बजाते है
ReplyDeleteकितनों को हम जोर से तमाचा मार पाते हैं.
झकझोरती रचना
कायर हम क्योंकि जब हमारे अपने ही सीटी बजाते है
ReplyDeleteकितनों को हम जोर से तमाचा मार पाते हैं.
झकझोरती रचना
सबसे पहले अपने घर में हम बदलेंगे कुरीतियों के ढंग
ReplyDeleteसार्थकता लिये सशक्त लेखन ...
आभार
ek sarthak rachana ..kahi na khi har ek doshi hai , naari par atyacharo ka
ReplyDeleteकविता मे बहुत अच्छी बात कही है सर!
ReplyDeleteसादर
हाहाकारी रचना..नव वर्ष की समस्त शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteशत प्रतिशत सहमत हूँ निहार भाई आपसे.........बदलाव खुद से शुरू होता है ।
ReplyDeleteये भी जानता है, समाज के पास नहीं है “ढाई किलो का हाथ”
ReplyDeleteसमाज के पास है बस मोमबत्ती, सजल-नयन, और बड़ी बड़ी बात
एक कडवी सच्चाई लिख दी आपने ....
सलाम आपके ज़ज्बातों को ....!!
बहुत सशक्त लेखन
ReplyDeleteनब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार.
जब तक हम युवा, लेकर दृढ निश्चय खा ले आज सौगंध
ReplyDeleteसबसे पहले अपने घर में हम बदलेंगे कुरीतियों के ढंग
...
सच कहा आपने सच बहुत कडुआ होता है ...
अपने घर से सब शुरुवात करे तो फिर बात कभी न बिगडती कभी ..
बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ..
नया साल आया बनकर उजाला,
ReplyDeleteखुल जाए आपकी किस्मत का ताला,
हमेशा आप पर मेहरबान रहे ऊपर वाला.
नया साल मुबारक.
कटु पर सटीक प्रश्न उठाती बहुत प्रभावी रचना...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteसोचने पर मजबूर करती है आपकी यह रचना ......सच है ....शुरुआत खुद से ही करनी होगी ...तभी हम दूसरों से यह उम्मीद कर सकते हैं
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना|
ReplyDeleteफुर्सत मिले तो मुस्कुराहट पर ज़रूर आईये
ReplyDeleteओजस्वी और सार्थक भाव ........
ReplyDeleteओजस्वी और सार्थक भाव ........
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