देख यह विस्तीर्णता यूँ
व्योम में फिरता हुआ मन
नील नभ की नीलिमा से
तीर पर तिरता हुआ मन
लेकिन कविता रूठी है
दिवस किरण-वांछा से तिरपित
चले विहग उत्फुल्ल हो-हो कर
कुछ पेड़ों की फुनगी चढ़कर
उठा रहे नंदद स्वर अंतर
लेकिन कविता रूठी है
उड़-उड़ कर आती है हवाएं
तन सहलाये, मन सहलाये
मंद-मंद, कानों पर थपकी
देती जाये, मन हुलसाये
लेकिन कविता रूठी है
मौन हैं पर्वत मगर
विगलित हिमों से कह रहे
लब्ध है उनको मिलन
उन्मुक्त हो जो बह रहे
लेकिन कविता रूठी है
अगत्ती बादल अल्हड़ाये
कर प्रत्यूह प्रधर्षित पथ
में
कहता रहता है रह-रह कर
आओ उड़ लो कल्पित रथ में
लेकिन कविता रूठी है
चुप सी विभावरी रात है
बहती मद्धिम वात है
तारिकाएं है गगन में
भावों की बरसात है
लेकिन कविता रूठी है
(निहार रंजन, सेंट्रल, ५
सितम्बर २०१३)
अगत्ती - खुराफाती, जिसकी चाल या गति का निर्णय कर पाना मुश्किल हो
अगत्ती - खुराफाती, जिसकी चाल या गति का निर्णय कर पाना मुश्किल हो
वो खुद आएगी चल कर, कलम की नोक पर और स्याही में रच बस कर खिल जायेगी जैसे खिली है आपकी इस कविता में...!
ReplyDeleteरूठी कविताओं का फिर फिर लौट आना होता रहता है आँगन में!
चुप सी विभावरी रात है
ReplyDeleteबहती मद्धिम वात है
तारिकाएं है गगन में
भावों की बरसात है
लेकिन कविता रूठी है ...
कविता का सम्बह्न्द मन से होता है ... जब तक मन इन सबको महसूस नहीं करता कविता कहां रहती है ...
इतने अनोखे मौसम में भावों की इतनी विभिन्न बरसातें हैं, तब भी कविता रुठी है। ये बात कितनी अनूठी है। कविता के भाव सीधे मन में उतर रहे हैं।
ReplyDeleteअजी कहाँ रूठी है वो तो अठखेलियाँ कर रही कलम के साथ..... बहुत ही शानदार |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteकविता रूठी है ....
ReplyDeleteमान जाएगी तो क्या होगा ....
नौवाँ आश्चर्य ....
हार्दिक शुभकामनायें
बहुत सुन्दर...!!
ReplyDeleteमौन हैं पर्वत मगर
ReplyDeleteविगलित हिमों से कह रहे
लब्ध है उनको मिलन
उन्मुक्त हो जो बह रहे
लेकिन कविता रूठी है
यह पंक्तियाँ विशेष अच्छी लगीं।
सादर
अक्सर होता है ...लाख लुभावन के बाद भी .....वह नहीं मानती .....बस रूठ रूठ ..यूहीं सताती
ReplyDeleteअक्सर ऐसा ही होता है..जब हमारी ही कविता हमसे रूठ जाती है।।। सुंदर प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteवाह ,बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बहुत सुन्दर...!!
ReplyDeleteसिर्फ आपको लग रहा है कि रूठी है वह तो कलम से बह चली है किसी नदी की तरह, हवा की तरह और हमें विभोर कर गई है आपकी ये रूठी कविता।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
कविता के रूठे हुए भी इतनी सुन्दर कविता हो गयी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...!!
ReplyDeleteकृपया आप यहाँ भी पधारें और अपने विचार रखे धर्म गुरुओं का अधर्म की ओर कदम ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः13
कविता रूठ कर भी सुन्दर कविता दे गयी..
ReplyDelete:-)
भावों की बरसात है
ReplyDeleteलेकिन कविता रूठी है.... बहुत सुंदर प्रस्तुति !!
जब रूठी कविता ऐसी है
ReplyDeleteतो हँसेगी तो क्या होगा ?
अति सुन्दर काव्य-कृति..बधाई..
ये क्या हो गया है आपकी कविता को ? कुछ तो जतन करना होगा साहब .....
ReplyDeleteहमें तो नहीं लगता कि कविता रूठी है शायद गर्वित हो इठला रही है किन्तु निहार जी इस बार शब्दकोष की आवश्यकता पड़ गयी और तब भी अगत्ती का अर्थ पता नहीं चला कृपया मुश्किल शब्दों का अर्थ बता दीजिये
ReplyDeleteवंदना जी, अगत्ती की ओर ध्यान दिलवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि अगत्ती का अर्थ आपको शब्दकोष में भी नहीं मिला. अगत्ती आंचलिक शब्द है जिसका एक अर्थ है "वो जिसकी चाल या गति का निर्णय कर पाना मुश्किल हो". मैं साधारणतया आंचालिक शंब्दों को तिरछा लिखता हूँ और उसका अर्थ भी लिख देता हूँ लेकिन इस पोस्ट को लिखने से पहले किसी दूसरी कविता पर अटका हुआ था. जल्दी-जल्दी में इसे लिखा और उसी जल्दी में भूलवश यह त्रुटि रह गयी. ध्यान दिलाने के लिए फिर से धन्यवाद आपको.
Deleteशुक्रिया निहार जी
Deleteकविता रूठकर जायेगी कहाँ ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
भाव प्रबल हों अगर तो कविता मान ही जाती है :), बहुत सुन्दर कविता
ReplyDeleteचुप सी विभावरी रात है
ReplyDeleteबहती मद्धिम वात है
तारिकाएं है गगन में
भावों की बरसात है
लेकिन कविता रूठी है------
वाकई वर्तमान में जीवन मूल्यों के प्रति हो रहे संघर्ष से
सृजनशीलता में कमी आई है इसी कारण कविता रूठी है-----
गहन विचार लिए सार्थक रचना----बहुत सुंदर
बधाई
ruthi hui kavita aisee hai to manane ke bad kya hoga ...gazab ki prastuti ranjan jee ....
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteकहता रहता है रह-रह कर
ReplyDeleteआओ उड़ लो कल्पित रथ में
लेकिन कविता रूठी है
............बहुत सुन्दर कविता