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Wednesday, April 10, 2013

गामवाली


(कोसी के धार-कछार के मध्य गामवाली की धरती)

 इब्तिदा चचा ग़ालिब के इस शेर से -

लिखता है 'असद' सोज़िशे दिल से सुखन-ऐ-गर्म  
ता रख ना सके कोई मेरे हर्फ़ पर अंगुश्त 

[अपने ह्रदय ताप से 'असद' इतने दहकते शेर लिखता है  
ताकि उन शब्दों पर कोई उंगुलियां न उठा सके ]

गामवाली


वो मेरे साथ, हाथों में हाथ लिए
मंद अलसाये डग भरते  
शानों पर लट बिखरा
होठों पर नीम-मुस्की लिए
सरेराह नहीं चल सकती

वो मेरे साथ ‘हाई-पॉइंट’ जाकर
अपने हाथों में थ्री वाइज मैन लेकर  
मेरे हाथों में रेड हेडेड स्ल्ट्स देकर  
एक ही घूँट में अपने-मेरे जीवन-विष का
शमन नहीं कर सकती

ना ही मेरे साथ ‘लकी लिप्स’ पर सारी रात थिरक 
‘हाई पॉइंट’ के बंद  होने वक़्त 
मदालसी आँखें और उत्ताप श्वास के साथ
कानों में शहद भरी ध्वनि लिए 
प्रणय निमंत्रण दे सकती है 
और इनकार पाकर, निर्विण्ण मन से   
मुझे समलैंगिक कह सकती है

उसे मधु-प्लुत होने की इतनी परवाह नहीं
कि अपने बच्चे को छाती से आहार ना दे सके
फिर दो साल बाद तलाक देकर
उसे पिता के पास धकेल,
कीमती कार और तलाक के पैसे लेकर
इस तरह दूर हो जाए
कि १९ साल तक याद ना करे  (शायद आजीवन!)

उसे इस तरह उन्मुक्तता की चाह भी नहीं
कि पैंसठ बरस की उम्र में सिलिकॉनी वक्षों के दम पर
कोई मेनका बन, कोई घृताची बन
किसी विश्वकर्मा को ‘पीड़ित’ करे
बहामास  जाने वाली किसी ‘क्रूज’ पर
‘वायग्रा’ उन्मादित पुरुष के साथ
परिरंभ करे, केलि-कुलेल करे

क्योंकि वो गामवाली है!

गामवाली,
यानि एक भारतीय नारी
जनकसुता सीता की मिटटी पर जन्मी
मिथिला की बेटी है
त्याग और अदम्य जीवटता की प्रतीक है

ये गामवाली बचपन से धर्मभीरु है
इसने ब्रम्हवैवर्तपुराण के आख्यान सुने है
कुंभीपाक के सजीव से चित्रों के दर्शन किये है  
धर्म और अधर्म का ज्ञान पाया है
विद्यापति के गीत गाये हैं
और पुष्पवती होते ही
स्वामी के बारे में सोचा है
उसे पाया है, उसे पूजा है

यही उसके जीवन का आदि और अंत है
कोई नारीवाद नहीं है उसमे
किसी बराबरी की चाह नहीं है उसमे
उसमे बस त्याग है,
आपादमस्तक दुकूल में छिपा
सलज्ज चेहरा है, पुरनूर आँखें है  
और यावज्जीवन की अभिलाषा
माँ बनकर, बहन बनकर, दादी बनकर
नानी बनकर, भाभी बनकर
कि उसके पास जो कुछ है वह बाँट देना है  

सच्चरित्रता का पालन किये
बिना झूठे वादे किये,
बिना झूठे बोल बोले
बिना झूठे आस दिए,
बिना अपनी गलत तस्वीर पेश किये
एक बंद कमरे में, ढिबरी की रौशनी में
रात भर अन्धकार पीती है
सुबह अपने देह पर धंसे काँटों को ढँककर
मुझसे मुस्कुराकर बात करती है
कोई नहीं जानता कितने कांटे हैं उसकी देह में
दर्द और ताप का शमन कोई सीखे तो उस गामवाली से

इसलिए प्रसूता होकर भी
मुस्कुराते चेहरे के साथ
खेत में वो काम करती है
और अपने छोटे बच्चे को,
दांत का दंश लगने तक,
छाती की आखिरी बूँद तक पिलाती है
और हो सके तो किसी भूखे बच्चे को,
अपने शीरखोर बच्चे से माफ़ी मांग,
छाती से लगा लेती है
उसे अपने पुष्ट छातियों की परवाह नहीं है.

उस गामवाली का देह
सुख के लिए नहीं है
उसकी संतानें हैं,
पति है, समाज है
रामायण है, गीता है
सुख चाहती वो इन्ही से,
सुख मांगती वो इन्ही से
इसलिए संयोगिनी या वियोगिनी होना
उसके लिए सम हैं
वह वासना के व्याल-पाश में 
लिपटकर रह सकती है,
उसके विषदंत तोड़ सकती है
उससे निकल सकती है
लेकिन मुझसे नहीं कह सकती
“वांट टू गो फॉर ‘डेजर्ट’ “

इतना सारा धन, प्यास, और झूठ
मानवीय संवेदनाएं ना छीन ले उससे
कुल्या होना न छीन ले उससे
धन्या से धृष्टा ना बना दे उसे
स्वकीया से परकीया ना बना दे उसे
इसीलिए वो अर्थ और काम को ताक पर रख
पैसठ बरस की उम्र में
धर्म और मोक्ष ढूँढती है
उसकी पहचान उसके देह से नहीं
उसके त्याग से है

इसी वजह से गामवाली पर
सरस गीत लिख पाना असंभव है  
उसपर कविता लिख पाना मुश्किल है  
त्याग की कवितायें बाज़ार में नहीं बिकती
त्याग से अवतंसित स्त्रियों का ये बाज़ार नहीं
बाज़ार में बिकती है रम्भा, मेनका
मदहोश करती अर्धनग्न सैंड्रा और रेबेका
पर मेरी रचनाओं में गामवाली जिंदा रहेगी
आखिर दूध का क़र्ज़ कौन उतार पाया है.

 (निहार रंजन, सेंट्रल, ८ अप्रैल २०१३)

(समर्पित उस गामवाली के नाम जिसने दूधपीबा वयस में एक दिन मुझे भूखा देखकर अपनी छाती से लगा लिया था. आभार उन तीन मित्रों का जिनके अनुभव इस रचना में हैं) 
 
*
गामवाली - गाँववाली 
हाई पॉइंट – एक मदिरालय का नाम
थ्री वाइज मैन – एक अल्कोहलीय पेय का नाम
रेड हेडेड स्ल्ट्स - एक अल्कोहलीय पेय का नाम
लकी लिप्स - क्लिफ रिचर्ड का मशहूर गीत
क्रूज – सैर सपाटे के लिए जाने वाला पनिया जहाज 

Friday, March 1, 2013

गर्भवती




गर्भवती 



सुबह अपनी प्रयोगशाला पहुँचा 
तो अपने नियत स्थान से "शिकागोवाली" गायब थी 
बस्ता रखा और  अपने घुलते रसायनों  को परखने लगा  
 अचानक "शिकागोवाली" चहकती लैब में दाखिल हुई
स्पैनिश में चहक चहक बतियाती रही 
और मैं अपने काम में निमग्न हो गया 

अचानक किसी ने पीठ  छुआ 
देखा "शिकागोवाली" गले में मास्क लटकाए खड़ी है 
मुस्कान बिखेरते पूछती है-बोलो मैं खुश क्यों हूँ ?
मैंने मज़ाक में कहा, तुम तो "मामासिता" हो 
किसी ने तुम्हारी खूबसूरती पर कविता लिखी होगी 
वो हंसती रही और बस हंसती रही
अचानक से मैंने पूछा
 सालों से रसायनों का ज़हर पीती  हो 
कभी पहले नहीं देखा मास्क लगाये हुए? 
जवाब आता है -अब मेरे अन्दर दो जानें हैं !

 "शिकागोवाली" सुबह से चहक चहक अपनी माँ से 
इस नए जान के बारे में कह रही थी
और उसकी माँ फूले नहीं समा रही थी
पहली  बार जो वो नानी बनने  वाली थी 
बोल रही थी मैं तो नानी बनने का सपना बिलकुल भूल चुकी थी 

पीएचडी की दीर्घता  से व्याकुल होकर 
और मातृत्व इच्छा से आकुल होकर 
"शिकागोवाली" ने कुंवारी माँ बनने का निश्चय किया था 
दिन भर लोग बधाइयां देने आते रहे 
किसी के मन ये सवाल नहीं था 
की बच्चा जायज है नाजायज 
किसी के मन में तिरस्कार नहीं था 
किसी ने नहीं कहा कि "शिकागोवाली" कुलटा है 
सब जानते थे "शिकागोवाली" बहुत नेक, मददगार इंसान है 
सब जानते थे "शिकागोवाली" कुंवारी माँ बन के भी 
वैसी ही नेक और मददगार रहेगी 

और एक तरफ अतीत को वो दृश्य भी याद करता हूँ 
जहां जानबूझकर, अज्ञानतावश या बलात 
जब कोई लड़की कुंवारी गर्भवती हो  जाती है 
तो  उसके नरक जाने की रसीद कट जाती  है 
उसके शील, चरित्र और परिवार की  धज्जियां उड़ती हैं 
बिना ये जाने कि उस कुंवारी लड़की के कोख में बच्चा आया कैसे 
फिर वो दोनों माँ  और बच्चा, आजन्म दाग लिए फिरते है 

बात सही और गलत की नहीं है 
बात है एक ही परिस्थिति को दो नजरिये से देखने की 
दो समाजों के अलग नजरिये की  
 एक तरफ स्वीकार्यता  है और दूसरी तरफ मौत का फरमान 
एक तरफ सब सामन्य है वहीँ दूसरी तरफ भूचाल 

कोठे के अन्दर  देह परोसती हर वेश्या  की कहानी एक नहीं होती 
उसमे भी इंसान होते हैं मेरी और आपकी तरह 
और ये भी सच नहीं की अपना पेट  काटकर जीनेवाला कंजूस  होता है
 शायद  वो अपने बीमार माँ की दवा के पैसे जोड़ता है 
 कुंवारी माँ कामान्धी  कुलटा नहीं होती
परिस्थिति जाने  बिना हम कितनी सहजता से लोगों को  वर्गीकृत करते हैं 

पर ये जानेगा कौन और क्यों ?
जहाँ नयी नवेली ब्याही मुनिया 
मातृत्व की भनक पाते ही 
बंद हो जाती है संकुचित होकर लाज के मारे 
अपनों से भी छुपी रहती है
क्योंकि वो गर्भवती हो गयी है.

(निहार रंजन , सेंट्रल, २८ फ़रवरी २०१३ )

*मामासिता (आकर्षक लड़की)