(कोसी के धार-कछार के
मध्य गामवाली की धरती)
इब्तिदा चचा ग़ालिब के इस शेर से -
लिखता है 'असद' सोज़िशे दिल से सुखन-ऐ-गर्म
ता रख ना सके कोई मेरे हर्फ़ पर अंगुश्त
[अपने ह्रदय ताप से 'असद' इतने दहकते शेर लिखता है
ताकि उन शब्दों पर कोई उंगुलियां न उठा सके ]
वो मेरे साथ, हाथों
में हाथ लिए
मंद अलसाये डग भरते
शानों पर लट बिखरा
होठों पर नीम-मुस्की
लिए
सरेराह नहीं चल सकती
वो मेरे साथ
‘हाई-पॉइंट’ जाकर
अपने हाथों में ‘थ्री वाइज मैन’ लेकर
मेरे हाथों में ‘रेड हेडेड स्ल्ट्स’ देकर
एक ही घूँट में अपने-मेरे जीवन-विष का
शमन नहीं कर सकती
ना ही मेरे साथ ‘लकी
लिप्स’ पर सारी रात थिरक
‘हाई पॉइंट’ के
बंद होने वक़्त
मदालसी आँखें और
उत्ताप श्वास के साथ
कानों में शहद भरी
ध्वनि लिए
प्रणय निमंत्रण दे
सकती है
और इनकार पाकर, निर्विण्ण
मन से
मुझे समलैंगिक कह
सकती है
उसे मधु-प्लुत होने की
इतनी परवाह नहीं
कि अपने बच्चे को
छाती से आहार ना दे सके
फिर दो साल बाद तलाक
देकर
उसे पिता के पास धकेल,
कीमती कार और तलाक के
पैसे लेकर
इस तरह दूर हो जाए
कि १९ साल तक याद ना
करे (शायद आजीवन!)
उसे इस तरह
उन्मुक्तता की चाह भी नहीं
कि पैंसठ बरस की उम्र
में सिलिकॉनी वक्षों के दम पर
कोई मेनका बन, कोई
घृताची बन
किसी विश्वकर्मा को
‘पीड़ित’ करे
बहामास जाने
वाली किसी ‘क्रूज’ पर
‘वायग्रा’ उन्मादित
पुरुष के साथ
परिरंभ करे,
केलि-कुलेल करे
क्योंकि वो गामवाली
है!
गामवाली,
यानि एक भारतीय नारी
यानि एक भारतीय नारी
जनकसुता सीता की
मिटटी पर जन्मी
मिथिला की बेटी है
त्याग और अदम्य
जीवटता की प्रतीक है
ये गामवाली बचपन से
धर्मभीरु है
इसने
ब्रम्हवैवर्तपुराण के आख्यान सुने है
कुंभीपाक के सजीव से चित्रों
के दर्शन किये है
धर्म और अधर्म का
ज्ञान पाया है
विद्यापति के गीत
गाये हैं
और पुष्पवती होते ही
स्वामी के बारे में
सोचा है
उसे पाया है, उसे पूजा
है
यही उसके जीवन का आदि
और अंत है
कोई नारीवाद नहीं है
उसमे
किसी बराबरी की चाह
नहीं है उसमे
उसमे बस त्याग है,
आपादमस्तक दुकूल में
छिपा
सलज्ज चेहरा है,
पुरनूर आँखें है
और यावज्जीवन की
अभिलाषा
माँ बनकर, बहन बनकर,
दादी बनकर
नानी बनकर, भाभी बनकर
कि उसके पास जो कुछ
है वह बाँट देना है
सच्चरित्रता का पालन
किये
बिना झूठे वादे किये,
बिना झूठे बोल बोले
बिना झूठे आस दिए,
बिना अपनी गलत तस्वीर
पेश किये
एक बंद कमरे में,
ढिबरी की रौशनी में
रात भर अन्धकार पीती
है
सुबह अपने देह पर
धंसे काँटों को ढँककर
मुझसे मुस्कुराकर बात
करती है
कोई नहीं जानता कितने
कांटे हैं उसकी देह में
दर्द और ताप का शमन
कोई सीखे तो उस गामवाली से
इसलिए प्रसूता होकर
भी
मुस्कुराते चेहरे के
साथ
खेत में वो काम करती
है
और अपने छोटे बच्चे
को,
दांत का दंश लगने तक,
छाती की आखिरी बूँद
तक पिलाती है
और हो सके तो किसी भूखे
बच्चे को,
अपने शीरखोर बच्चे से
माफ़ी मांग,
छाती से लगा लेती है
उसे अपने पुष्ट
छातियों की परवाह नहीं है.
उस गामवाली का देह
सुख के लिए नहीं है
सुख के लिए नहीं है
उसकी संतानें हैं,
पति है, समाज है
रामायण है, गीता है
पति है, समाज है
रामायण है, गीता है
सुख चाहती वो इन्ही
से,
सुख मांगती वो इन्ही से
सुख मांगती वो इन्ही से
इसलिए संयोगिनी या वियोगिनी होना
उसके लिए सम हैं
वह वासना के
व्याल-पाश में
लिपटकर रह सकती है,
उसके विषदंत तोड़ सकती है
लिपटकर रह सकती है,
उसके विषदंत तोड़ सकती है
उससे निकल सकती है
लेकिन मुझसे नहीं कह
सकती
“वांट टू गो फॉर
‘डेजर्ट’ “
इतना सारा धन, प्यास,
और झूठ
मानवीय संवेदनाएं ना
छीन ले उससे
कुल्या होना न छीन ले
उससे
धन्या से धृष्टा ना
बना दे उसे
स्वकीया से परकीया ना
बना दे उसे
इसीलिए वो अर्थ और
काम को ताक पर रख
पैसठ बरस की उम्र में
धर्म और मोक्ष ढूँढती
है
उसकी पहचान उसके देह
से नहीं
उसके त्याग से है
इसी वजह से गामवाली पर
सरस गीत लिख पाना असंभव
है
उसपर कविता लिख पाना
मुश्किल है
त्याग की कवितायें
बाज़ार में नहीं बिकती
त्याग से अवतंसित
स्त्रियों का ये बाज़ार नहीं
बाज़ार में बिकती है
रम्भा, मेनका
मदहोश करती अर्धनग्न सैंड्रा
और रेबेका
पर मेरी रचनाओं में
गामवाली जिंदा रहेगी
आखिर दूध का क़र्ज़ कौन
उतार पाया है.
(निहार रंजन, सेंट्रल, ८ अप्रैल २०१३)
(समर्पित उस गामवाली
के नाम जिसने दूधपीबा वयस में एक दिन मुझे भूखा देखकर अपनी छाती से लगा लिया था. आभार उन तीन मित्रों का जिनके अनुभव इस रचना में हैं)
*
गामवाली - गाँववाली
गामवाली - गाँववाली
हाई पॉइंट – एक
मदिरालय का नाम
थ्री वाइज मैन – एक अल्कोहलीय
पेय का नाम
रेड हेडेड स्ल्ट्स - एक
अल्कोहलीय पेय का नाम
लकी लिप्स - क्लिफ
रिचर्ड का मशहूर गीत
क्रूज – सैर सपाटे के
लिए जाने वाला पनिया जहाज
शुभप्रभात!!
ReplyDeleteनव वर्ष, नव संवत्सर एवँ गुड़ी पड़वा की हार्दिक शुभकामनायें !!
बेहतरीन चित्रांकन। और हिंगलिश मिक्सिंग भी बहुत अच्छी लगी। कंट्रास्टिंग फीचर्स बहुत अच्छे से उकेरे गए हैं।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
एक -एक शब्द से फूटता दर्द और ताप....गामवाली के लिए
ReplyDeleteहमने भी देखी है उनकी रामायण, गीता और मुस्कराहट
सच है कि टिप्पणी के लिए सही शब्द नहीं मिल रहे हैं ....
व्यंगात्मक..... गहरे अर्थ के साथ प्रस्तुत ,
ReplyDeleteगहन एहसास के साथ बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपको नवसंवत्सर की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
प्रभावी ... स्तब्ध हूं ऐसी रचना पढ़ने के बाद ...
ReplyDeleteशशक्त शब्दों में उस चरित्र को उभारा है जिसकी कल्पना भी कई बार संभव नहीं हो पाती ... बहुत लंबे समय तक साथ चलने वाली रचना ...
गहन भाव लिये .... बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआभार
निशब्द...किसी अन्य ही लोक में ले गयी यह अद्भुत प्रस्तुति...नमन आपकी लेखनी को
ReplyDeleteवाह निहार जी इतनी अर्थ गाम्भीर्य लिए फिर भी इतनी सम्प्रेषणीय कविता मैंने बहुत अरसे के बाद पढी है -फेसबुक पर शेयर करने का लोभ नहीं छोड़ पा रहा ! मूल्यों के अंतर को कितने प्रभावी तरीके से व्यक्त किया आपने!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना....
ReplyDeleteबधाई इस उत्कृष्ट कृति के लिए...
अनु
त्याग की कविताऐं
ReplyDeleteबाजार में नहीं बिकतीं....
सचमुच बहतरीन प्रसतुति!!
ब्लॉग पर आने के लिए और आपकी समुचित टिप्पणी का धन्यवाद।
ReplyDeleteअचंभित हूँ पढ़कर क्या कहूँ इसकी तारीफ़ के लिए उचित शब्द नहीं हैं मेरे पास........शुरूआत व्यंग्य से होकर अंत मर्म पर किया है आपने .......सच यही है जो अनुभव से कलम पर उतरता है उसका कोई सानी नहीं.......इस सुन्दर रचना के लिए तहेदिल से बधाई आपको।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना !! गामवाली कभी अपने संस्कार नहीं छोड़ती -चाहे वह दुनिया के किसी कोने में रहें।
ReplyDeletestbdh aur mute krti huyee Gaamvali .
ReplyDeleteshilp aur kathy donon ko saadhti huyee uttam kruti.
ओह निहार जी, बहुत ही उत्कृष्ट रचना. वास्तव में ये गाम वाली सिर्फ मिथिला के कछारों तक सीमित नहीं है वरन सम्पूर्ण भारत के परंपरागत नारी चरित्र का दर्शन इस गाम वाली के माध्यम से किया जा सकता है. आज नारी मुक्ति और नारीवाद के शोर में यह चरित्र प्रतिगामी अवश्य लग सकती है, लेकिन यह वास्तविकता है. आपने बहुत सूक्ष्मता से दो विरोधी धाराओं का , दो विपरीत विचारों एवं विपरीत संस्कारों का संगोप्संग चित्रण किया है. पौराणिक सन्दर्भों का एवं नविन स्तंभों का आपने जिस सुंदरता से उद्धरण दिया है. लाजबाब है. बहुत ही सुन्दर कृति. आपको अनेकानेक बधाई.
ReplyDeleteसादर
नि:शब्द..पर मैं ये सोच रही हूँ कि कोई अमेरिकन इस भाव की कविता लिखे तो कैसी होगी ? शायद अकल्पनीय..
ReplyDeleteवो निश्चित रूप से गामवाली की कल्पना नहीं कर सकते. उसके त्याग पर शायद हँसे भी. हमारी और यहाँ के लोगो की जीवन से अपेक्षाएं अलग अलग है. पारिवारिक जुड़ाव भी और सोच भी.
Deleteइसे लिखने से पहले मैं अंतर्विरोध से गुज़र रहा था. वो ये कि सच ये भी है जिन दो परिवेशों के बारे मैंने लिखा है वो वहां के सारे लोगों पर यह लागू नहीं होता तो ऐसे में किसी को ठेस ना लगे. किन्तु सच ये भी है जो रूप मैंने लिखा वो कल्पना से नहीं लिखा है.
बड्ड नीक लागल. हमर ब्लॉग पर आहांक स्वागत.धन्यवाद..
ReplyDeleteनिहार जी, बहुत ही उत्कृष्ट रचना....आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
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