ये मेरी मंजुल-मुखी,
खो ना जाए इस
तमस में
इसलिए है छुपा रखा
मैंने इसे पंजर-कफस
में
संग मेरे स्वप्न में
संग है हर श्वास में
अरुणिमा सी मुदित
करती
मेरे मन आकाश में
घूमती रहती है निशदिन
सींचती मुस्कान को
कैसे तज दूं ‘प्राण’
को!
जादुई इसकी छवि है
दहकते से इसके अधरज
देख जिसको मन ने बोला
कौन जाए इसको त्यज
मधुरिमा संसार की
संसार की रानाइयां
संसार की अटखेलियाँ
संसार की रुस्वाइयां
झनकती पाजेब इसकी
करती गुंजित कान को
कैसे तज दूं ‘प्राण’
को!
ये मेरी चंचल सखी
करती मुझे उद्भ्रांत
है
और फिर चुपके से छूकर
कर देती मन शांत है
ये जो इसके नाज़-नखरे
और ये पुतली का
जाल
अलकों-पलकों की
दुश्वारी
उस पर ये वाचाल
चमका देती मन में सूरज
हो आशा अवसान तो
कैसे तज दूं ‘प्राण’
को
ना गलबांही, ना
आलिंगन
ना मेरे अधरों से
चुम्बन
मांगे बस बरसों से
मुझसे
हर पल का निःस्वार्थ
समर्पण
फिर मेरे प्रतप्त
ह्रदय को
करती है शीकर से
सिंचन
मुस्काकर जब वो कह
देती
धृतिमान हो! ‘करना
करग्रहण’
ठहरे मेरे मन में फिर
से
ले आती तूफ़ान वो
कैसे तज दूं ‘प्राण’
को
(निहार रंजन,
सेंट्रल, १४ अप्रैल २०१३)
मुस्काकर जब वो कह देती
ReplyDeleteधृतिमान हो! ‘करना करग्रहण’
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जादुई व अद्भुत पोस्ट . समर्पित ह्रदय से उकेरी गयी शब्दों की खूबसूरत पेंटिंग ....
बेहद अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना,आभार.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव लिए बेहतरीन रचना
ReplyDeleteकैसे तज दूं ‘प्राण’ को
ReplyDeleteजब जीने के लिए इतने सारे कारण हैं तो ...
ढेरों शुभकामनायें ......
बहुत खुबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteना गलबांही, ना आलिंगन
ReplyDeleteना मेरे अधरों से चुम्बन
मांगे बस बरसों से मुझसे
हर पल का निःस्वार्थ समर्पण ...
ये समर्पण जीने की प्रेरणा है ... जीने की कुंजी है ...
मुक्त हो के उड़ने तो प्राण प्रिय को ...
वाह......गहन और सुन्दर।
ReplyDeleteगहन अनुभूति को प्रेरित करती रचना!!
ReplyDeleteआन्दोलित करती स्वर लहरी…… आभार
वाह ...बेहतरीन रचना
ReplyDeleteखूबसूरत प्राण-पण से लिखी रचना....छायावाद की धूपछांही रंग लिए...
ReplyDeleteगहन भाव और सुन्दर रचना
ReplyDeleteठहरे मेरे मन में फिर से
ReplyDeleteले आती तूफ़ान वो
कैसे तज दूं ‘प्राण’ को
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... शुभकामनायें
मांगे बस बरसों से मुझसे
ReplyDeleteहर पल का निःस्वार्थ समर्पण.....very nice...
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना ...पढ़ी तो थी ....जल्दी में थी तो दो शब्द नहीं लिख पाई थी ...!!
ReplyDeleteकाव्यामृत का पान कर आनंदित हुआ मन..
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