कैद रहने दो मुझे दोस्त,
कोई हवा ना दो
रहने दो ज़ख्म मेरे साथ, कोई
दवा ना दो
इन तल्ख एहसासों को उतर
जाने दो सुखन में
लिखने दो दास्ताँ-ए-खला, मुझको
नवा ना दो
जज़्ब होने दो, हर कुछ जो है
शब के पास
होने दो मह्व सितारों में,
मुझको सदा ना दो
इन सितारों में जो अक्स बन,
फिरता है बारहा
खोया हूँ उसी में मैं,
मुझको जगा ना दो
यह आशिकी, है आशिकी लैला
मजनूं से अलेहिदा
इस आशिकी को ना दो दुआ, पर
बद-दुआ ना दो
ये तजुर्बा जरूरी है बहुत
जीवन की समझ को
डूबने का असर जान लूं,
नाखुदा ना दो
(निहार रंजन, सेंट्रल,
१६-११-२०१२)
नवा- आवाज़
मह्व- मिमग्न
बारहा-बार-बार
नवा- आवाज़
मह्व- मिमग्न
बारहा-बार-बार