कैद रहने दो मुझे दोस्त,
कोई हवा ना दो
रहने दो ज़ख्म मेरे साथ, कोई
दवा ना दो
इन तल्ख एहसासों को उतर
जाने दो सुखन में
लिखने दो दास्ताँ-ए-खला, मुझको
नवा ना दो
जज़्ब होने दो, हर कुछ जो है
शब के पास
होने दो मह्व सितारों में,
मुझको सदा ना दो
इन सितारों में जो अक्स बन,
फिरता है बारहा
खोया हूँ उसी में मैं,
मुझको जगा ना दो
यह आशिकी, है आशिकी लैला
मजनूं से अलेहिदा
इस आशिकी को ना दो दुआ, पर
बद-दुआ ना दो
ये तजुर्बा जरूरी है बहुत
जीवन की समझ को
डूबने का असर जान लूं,
नाखुदा ना दो
(निहार रंजन, सेंट्रल,
१६-११-२०१२)
नवा- आवाज़
मह्व- मिमग्न
बारहा-बार-बार
नवा- आवाज़
मह्व- मिमग्न
बारहा-बार-बार
बहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
प्रभावित करती रचना ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल ....!!!
ReplyDeleteये पुकार अलहदा है साहब... कभी-कभी उसकी प्रतिध्वनि अंदर ह्रदय तक प्रहार करती है......
ReplyDeleteसभी गजल एक से बढ़कर एक....बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..... कुछ शब्दो के हिंदी अर्थ नहीं समझ आये जैसे ...नवा,बारहा,मह्व
ReplyDeleteदुआ बद्दुआ के बीच चलती जिन्दगी।
ReplyDeleteMubarak ho aapko aapka ye Kaid-Khana...
ReplyDeleteलाजवाब शेर हैं इस गज़ल के ... जीवन के फलसफे की तरह ...
ReplyDeletebahut khoob sir !
ReplyDeleteबहुत खूब निहार भाई ..... ग़ज़ल में भी आप कमाल हैं |
ReplyDeleteजीवन का फलसफा कहती खूबसूरत नज़म...बहुत खूब
ReplyDeleteशुभानअल्लाह ! शुभानअल्लाह ! शुभानअल्लाह !
ReplyDeleteबहुत खूब , बधाई आपको !!
ReplyDeleteबहुत उम्दा..होली की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteयह आशिकी, है आशिकी लैला मजनूं से अलेहिदा
ReplyDeleteइस आशिकी को ना दो दुआ, पर बद-दुआ ना दो
बहुत खूब ..
वाह...सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@चुनाव का मौसम
wah shandar gajal ke liye bahut bahut aabhar ranjan ji
ReplyDeleteबशीर बद्र की इक ग़ज़ल मन में कौंधी है ! खूबसूरत !
ReplyDeleteBahut sundar
ReplyDelete
ReplyDeleteयह आशिकी, है आशिकी लैला मजनूं से अलेहिदा
इस आशिकी को ना दो दुआ, पर बद-दुआ ना दो
वाह भाई रंजन जी कमाल कर दिया आपने ।
वाह निहार भाई, क्या पंक्तियाँ हैं! आपकी हिंदी जितनी उत्कृष्ट है, उर्दू भी उतनी ही उम्दा!
ReplyDeleteऔर बातों-बातों में बड़ी गहन बात हो गयी!
आशा है आपकी तरफ सब सकुशल है.
सादर
मधुरेश
मै तो समझता था की आपकी हिंदी पर पकड़ बहुत अच्छी है लेकिन आप उर्दू शब्दों के भी बाजीगर निकले भाई मान गया आप वाकई लाजबाब रचनाकार है । आभार रंजन जी ।
ReplyDelete☆★☆★☆
कैद रहने दो मुझे दोस्त, कोई हवा ना दो
रहने दो ज़ख्म मेरे साथ, कोई दवा ना दो
वाह ! वाऽह…!
अच्छा लिखा है
आदरणीय निहार रंजन जी
सुंदर रचना के लिए साधुवाद !
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार