Friday, February 28, 2014

पुकार

कैद रहने दो मुझे दोस्त, कोई हवा ना दो
रहने दो ज़ख्म मेरे साथ, कोई दवा ना दो

इन तल्ख एहसासों को उतर जाने दो सुखन में
लिखने दो दास्ताँ-ए-खला, मुझको नवा ना दो

जज़्ब होने दो, हर कुछ जो है शब के पास   
होने दो मह्व सितारों में, मुझको सदा ना दो

इन सितारों में जो अक्स बन, फिरता है बारहा
खोया हूँ उसी में मैं, मुझको जगा ना  दो

यह आशिकी, है आशिकी लैला मजनूं से अलेहिदा 
इस आशिकी को ना दो दुआ, पर बद-दुआ ना दो 

ये तजुर्बा जरूरी है बहुत जीवन की समझ को
डूबने का असर जान लूं, नाखुदा ना दो 


(निहार रंजन, सेंट्रल, १६-११-२०१२) 

नवा- आवाज़ 
मह्व- मिमग्न 
बारहा-बार-बार 

24 comments:

  1. बहुत खूब सर!


    सादर

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  2. प्रभावित करती रचना ...

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  3. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ....!!!

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  4. ये पुकार अलहदा है साहब... कभी-कभी उसकी प्रतिध्वनि अंदर ह्रदय तक प्रहार करती है......

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  5. सभी गजल एक से बढ़कर एक....बहुत बढ़िया ...

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  6. बहुत सुन्दर..... कुछ शब्दो के हिंदी अर्थ नहीं समझ आये जैसे ...नवा,बारहा,मह्व

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  7. दुआ बद्दुआ के बीच चलती जिन्‍दगी।

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  8. लाजवाब शेर हैं इस गज़ल के ... जीवन के फलसफे की तरह ...

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  9. बहुत खूब निहार भाई ..... ग़ज़ल में भी आप कमाल हैं |

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  10. जीवन का फलसफा कहती खूबसूरत नज़म...बहुत खूब

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  11. शुभानअल्लाह ! शुभानअल्लाह ! शुभानअल्लाह !

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  12. बहुत खूब , बधाई आपको !!

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  13. बहुत उम्दा..होली की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं!

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  14. यह आशिकी, है आशिकी लैला मजनूं से अलेहिदा
    इस आशिकी को ना दो दुआ, पर बद-दुआ ना दो
    बहुत खूब ..

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  15. wah shandar gajal ke liye bahut bahut aabhar ranjan ji

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  16. बशीर बद्र की इक ग़ज़ल मन में कौंधी है ! खूबसूरत !

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  17. यह आशिकी, है आशिकी लैला मजनूं से अलेहिदा
    इस आशिकी को ना दो दुआ, पर बद-दुआ ना दो
    वाह भाई रंजन जी कमाल कर दिया आपने ।

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  18. वाह निहार भाई, क्या पंक्तियाँ हैं! आपकी हिंदी जितनी उत्कृष्ट है, उर्दू भी उतनी ही उम्दा!
    और बातों-बातों में बड़ी गहन बात हो गयी!
    आशा है आपकी तरफ सब सकुशल है.
    सादर
    मधुरेश

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  19. मै तो समझता था की आपकी हिंदी पर पकड़ बहुत अच्छी है लेकिन आप उर्दू शब्दों के भी बाजीगर निकले भाई मान गया आप वाकई लाजबाब रचनाकार है । आभार रंजन जी ।

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  20. ☆★☆★☆



    कैद रहने दो मुझे दोस्त, कोई हवा ना दो
    रहने दो ज़ख्म मेरे साथ, कोई दवा ना दो

    वाह ! वाऽह…!



    अच्छा लिखा है
    आदरणीय निहार रंजन जी
    सुंदर रचना के लिए साधुवाद !

    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार


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