ढूँढता हूँ मैं किनारा
है अथाह सरिता,
तेज प्रवाह है
शूलों से भरी
अपनी राह है
चाहता हूँ एक तिनके का
सहारा
ढूँढता हूँ मैं किनारा
है दुनिया निर्मम
रक्त की प्यासी है
इसलिए दुनिया में
व्याप्त उदासी है
थक चुका हूँ देखकर यह नज़ारा
ढूँढता हूँ मैं किनारा
है कांटो के नगर में
फूलों का अरमान
तम-आसक्त है रजनी
कब होगा विहान
बारूद हूँ , मांगता हूँ एक
शरारा
ढूँढता हूँ मैं किनारा
(निहार रंजन, सेंट्रल,
३०-७-२०१२)