आशा का दीप
लौ दीप का अस्थिर कर जाता है
जब एक हवा का झोंका आता है
पल भर को तम होता
लेकिन
फिर त्विषा से वो भर
जाता है
इस दीप की है कुछ बात
अलग
यह दीप नहीं बुझ पाता
है
मैं तो स्थिर हो चलता
हूँ
पर हिल जाता है भूतल
डगमग होते हैं पाँव
मगर
कर मेरे रहता दीप अटल
लौ घटती-बढती इसकी लेकिन
यह दीप नहीं बुझ
पाता है
श्रमजल से सिंचित यह
प्रतिपल
जाज्व्ल्यमान यह दीप अचल
बाधा के पतंगों से लड़कर
मुस्काता रहता है अविरल
पतंगा आता है, मर
जाता है
पर दीप नहीं बुझ
पाता है
(निहार रंजन,
सेंट्रल, २९ मार्च २०१३).
जलता रहे दीप सदा आशाओं का .....बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...!!
ReplyDeleteमैं तो स्थिर हो चलता हूँ
ReplyDeleteपर हिल जाता है भूतल
डगमग होते हैं पाँव मगर
कर मेरे रहता दीप अटल
लौ घटती-बढती इसकी लेकिन
यह दीप नहीं बुझ पाता है
अनुपम भाव संयोजन ... आभार
आशाओं का दीप जलते रहना चाहिए,बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteआत्मविश्वास से भरा यह आशा का दीप
ReplyDeleteअविरल जलता रहे ...सुन्दर रचना बहुत अच्छी लगी आभार !
आशाओं के दीप जलते हुए ही अच्छे लगते हैं ...
ReplyDeleteओर जलते रहने चाहियें ...
आस्था और प्रेम का संकेत ...इतनी आसानी से बुझेगा कैसे
ReplyDeleteहै मैं तो स्थिर हो चलता हूँ
ReplyDeleteपर हिल जाता है भूतल
डगमग होते हैं पाँव मगर
कर मेरे रहता दीप अटल
लौ घटती-बढती इसकी
लेकिन यह दीप नहीं बुझ पाता है
हौसले की तारीफ के लिए उपयुक्त शब्द छोटे लग रहे !!
शुभकामनायें !!
आशा का दीप यूँ ही जलते रहना चाहिए कि कोई भी आँधी बुझा न सके... शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteगहन अनुभूति सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
बिलकुल यूं ही ये दीप जलता रहेगा, हमें पूरा भरोसा है
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति निहार भाई, अच्छे से बुने हुए शब्द।
शुभकामनाएं
कुछ शब्द सुहागन से...
ReplyDeleteहलचल में स्थान देने के लिए शुक्रिया यशोदा जी.
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक
ReplyDeleteबहुत उत्तम रचना.
ReplyDeleteश्रमजल से सिंचित यह प्रतिपल
जाज्व्ल्यमान यह दीप अचल
बाधा के पतंगों से लड़कर
मुस्काता रहता है अविरल
पतंगा आता है, मर जाता है
पर दीप नहीं बुझ पाता है
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.
शुभकामनायें इस दीप के लिए ..
ReplyDeleteगहन भावों के समेटे सुन्दर पोस्ट.....ये दीप हमेशा यूँ ही जलता रहे ।
ReplyDeleteमैं तो स्थिर हो चलता हूँ
ReplyDeleteपर हिल जाता है भूतल
डगमग होते हैं पाँव मगर
कर मेरे रहता दीप अटल
लौ घटती-बढती इसकी लेकिन
यह दीप नहीं बुझ पाता है.... सुंदर रचना
बहुत सुन्दर ...ये दीप ही जीवन का आधार है
ReplyDelete-सुन्दर रचना ,आशाओं के दीप जलता रहे
ReplyDeleteLATEST POST सुहाने सपने
my post कोल्हू के बैल
श्रमजल से सिंचित यह प्रतिपल
ReplyDeleteजाज्व्ल्यमान यह दीप अचल
बाधा के पतंगों से लड़कर
मुस्काता रहता है अविरल.
सुंदर संवेदनशील और भावपूर्ण प्रस्तुति.
ati sundar abhiwayakti..
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ReplyDeleteलौ दीप का अस्थिर कर जाता है
जब एक हवा का झोंका आता है
पल भर को तम होता लेकिन
फिर त्विषा से वो भर जाता है
इस दीप की है कुछ बात अलग
यह दीप नहीं बुझ पाता है
सुन्दर ,मर्मस्पर्शी गीत मित्र बधाई |
और ये दीप कितनों को यूँ ही जलना सिखा जता है ... अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteऔर ये दीप कितनों को यूँ ही जलना सिखा जता है ... अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबस यही हौसले तो पार लगाते हैं...हमें मंजिल तक पहुंचाते हैं...बहुत सुन्दर और प्रेरक
ReplyDeleteनव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
श्रमजल से सिंचित यह प्रतिपल
जाज्ज्वल्यमान यह दीप अचल
बाधा के पतंगों से लड़कर
मुस्काता रहता है अविरल
पतंगा आता है, मर जाता है
पर दीप नहीं बुझ पाता है
बहुत सुंदर आदरणीय निहार रंजन जी !
अच्छा प्रेरक गीत लिखा है आपने ...
आभार एवं साधुवाद !
आपको सपरिवार नव संवत्सर २०७० की बहुत बहुत बधाई !
हार्दिक शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सुन्दर रूपक रचा है !
ReplyDeleteNo matter how many problems come or go away, the spirit remains intact. Strong message.
ReplyDeleteआशा का दीप यूँ ही जलते रहना चाहिए
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