इतनी भी प्यास नहीं,
इतना भी स्वार्थ नहीं
जहाँ देखा मधु-घट
वही पर ढल गए
ठहरा नहीं तितली जैसा
जी भर पराग चखा
फिर देख नया गुल
उसी रुख चल दिए
वक़्त देगा गवाही
जब उगेंगे पौधे
कोई ना कहना मुझे
काम बना, निकल
गए
सोचो उसपर क्या गुज़रे
जिसने सब वार दिया
मेरे हाथ 'अमृत' यहाँ
और वो हालाहल पिए
वो जो कब से बैठी है
आँचल में दीप लिए
लौ नहीं ऐसे दीयों की
आजतक निष्फल गये
उसकी आँखें यूँ ही
सदा
भरी हो रौशनी से
जिसने अपनी आँखों में
रख मुझे हर पल जिए
(निहार रंजन,
सेंट्रल, ७ जुलाई २०१३)
Hi Nihar
ReplyDeleteThis is really a nice poem..we must be grateful to the pple who sacrifice something for us to make our lives better :)
आपकी यह रचना कल रविवार (14 -07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक
ReplyDeleteकी गई है कृपया पधारें.
जहाँ देखा मधु-घट ...
ReplyDelete..वहीं ढरक गए :-)
भावों से भरी बहुत सुंदर रचना...
ReplyDelete. बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार अभिनेता प्राण को भावपूर्ण श्रृद्धांजलि -शालिनी कौश....आप भी पूछें सन्नो व् राजेश को फाँसी की सजा मिलनी चाहिए
ReplyDelete.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,
उसकी आँखें यूँ ही सदा
ReplyDeleteभरी हो रौशनी से
जिसने अपनी आँखों में
रख मुझे हर पल जिए..... very meaningful lines..loved the composition...
regards
इस नेह और समर्पण पर ही तो हमारा अस्तित्व है..ह्रदय को छू रही है सुंदर रचना ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभा
ReplyDeletebahut sundar bhavon kii saral shabdon me shandar abhvyakti
ReplyDeleteसोचो उसपर क्या गुज़रे
जिसने सब वार दिया
मेरे हाथ 'अमृत' यहाँ
और वो हालाहल पिए
bahut sundar lines..
मोहक रचना!! मनभावन!!
ReplyDeleteउसकी आँखें यूँ ही सदा
ReplyDeleteभरी हो रौशनी से
जिसने अपनी आँखों में
रख मुझे हर पल जिए ..
आमीन ... सदा रोशन रहें वो आँखें ... अर्थ पूर्ण हर छंद ...
क्या मैं अन्तिम पैरे को ऐसे पढ़ सकता हूं
ReplyDelete..उसकी आंखें यूं ही सदा
भरी हों रोशनी से
जो अपनी आंखों में
रख मुझे हर पल जिए...........प्रेम से विश्वासघात करनेवालों को अच्छा संदेश देती कविता।
जिसने अपनी आँखों में
ReplyDeleteरख मुझे हर पल जिए..
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जीवन का मर्म तलाशती बेहतरीन पोस्ट...कई बार पढ़नी पड़ेगी....
bahut sunder bhav liye rachna
ReplyDeleteutam_**
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब और सशक्त पोस्ट
ReplyDeleteदिल से निकली दुआ.......ख़ुदा कबूल करे.....आमीन।
ReplyDeleteBeautiful poem. Loved these lines,
ReplyDelete"वो जो कब से बैठी है
आँचल में दीप लिए
लौ नहीं ऐसे दीयों की
आजतक निष्फल गये "
बहुत ही सुन्दर रचना..
ReplyDeleteमनभावन..
:-)
फिर देख नया गुल
ReplyDeleteउसी रुख चल दिए
वाह ...बधाई प्यारी रचना को !
वे मुस्कराती हुईं ,शतायुं हों ...
ReplyDeleteमंगल कामनाएं आपको !
वाह ... अनुपम भाव लिये अनुपम अभिव्यक्ति
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteवाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteठहरा नहीं तितली जैसा
ReplyDeleteजी भर पराग चखा
फिर देख नया गुल
उसी रुख चल दिए
वाह … बहुत सुन्दर
तितली में और भौरे में यही फर्क है !
उसकी आँखें यूँ ही सदा
ReplyDeleteभरी हो रौशनी से
जिसने अपनी आँखों में
रख मुझे हर पल जिए
बहुत खूब … बहुत भावपूर्ण रचना ।
दिल से निकली बहुत ही लाजवाब और सशक्त पोस्ट
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना, बहुत सुंदर
ReplyDeleteजब दीप जले आना सब शाम ढले आना -क्या होगा अब उस चिर प्रतीक्षिता ,प्रोषित प्रतिक का ?
ReplyDeleteलौ नहीं ऐसे दीयों की
ReplyDeleteआजतक निष्फल गये
So true!!!