Saturday, July 13, 2013

पनडुब्बी

इतनी भी प्यास नहीं,
इतना भी स्वार्थ नहीं
जहाँ देखा मधु-घट  
वही पर  ढल गए

ठहरा नहीं तितली जैसा
जी भर पराग चखा  
फिर देख नया गुल
उसी रुख चल दिए

वक़्त देगा गवाही
जब उगेंगे पौधे
कोई ना कहना मुझे
काम बना, निकल गए 

सोचो उसपर क्या गुज़रे
जिसने सब वार दिया
मेरे हाथ 'अमृत' यहाँ
और वो हालाहल पिए

वो जो कब से बैठी है
आँचल में दीप लिए
लौ नहीं ऐसे दीयों की
आजतक निष्फल गये  

उसकी आँखें यूँ ही सदा
भरी हो रौशनी  से  
जिसने अपनी आँखों में
रख मुझे हर पल जिए


(निहार रंजन, सेंट्रल,  ७ जुलाई २०१३) 

31 comments:

  1. Hi Nihar

    This is really a nice poem..we must be grateful to the pple who sacrifice something for us to make our lives better :)

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  2. आपकी यह रचना कल रविवार (14 -07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक
    की गई है कृपया पधारें.

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  3. जहाँ देखा मधु-घट ...
    ..वहीं ढरक गए :-)

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  4. भावों से भरी बहुत सुंदर रचना...

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  5. उसकी आँखें यूँ ही सदा
    भरी हो रौशनी से
    जिसने अपनी आँखों में
    रख मुझे हर पल जिए..... very meaningful lines..loved the composition...
    regards

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  6. इस नेह और समर्पण पर ही तो हमारा अस्तित्व है..ह्रदय को छू रही है सुंदर रचना ..

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  7. बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभा

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  8. bahut sundar bhavon kii saral shabdon me shandar abhvyakti
    सोचो उसपर क्या गुज़रे
    जिसने सब वार दिया
    मेरे हाथ 'अमृत' यहाँ
    और वो हालाहल पिए
    bahut sundar lines..

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  9. मोहक रचना!! मनभावन!!

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  10. उसकी आँखें यूँ ही सदा
    भरी हो रौशनी से
    जिसने अपनी आँखों में
    रख मुझे हर पल जिए ..
    आमीन ... सदा रोशन रहें वो आँखें ... अर्थ पूर्ण हर छंद ...

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  11. क्‍या मैं अन्तिम पैरे को ऐसे पढ़ सकता हूं
    ..उसकी आंखें यूं ही सदा
    भरी हों रोशनी से
    जो अपनी आंखों में
    रख मुझे हर पल जिए...........प्रेम से विश्‍वासघात करनेवालों को अच्‍छा संदेश देती कविता।

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  12. जिसने अपनी आँखों में
    रख मुझे हर पल जिए..
    -----------------------
    जीवन का मर्म तलाशती बेहतरीन पोस्ट...कई बार पढ़नी पड़ेगी....

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  13. बहुत ही लाजवाब और सशक्त पोस्ट

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  14. दिल से निकली दुआ.......ख़ुदा कबूल करे.....आमीन।

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  15. Beautiful poem. Loved these lines,
    "वो जो कब से बैठी है
    आँचल में दीप लिए
    लौ नहीं ऐसे दीयों की
    आजतक निष्फल गये "

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  16. बहुत ही सुन्दर रचना..
    मनभावन..
    :-)

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  17. फिर देख नया गुल
    उसी रुख चल दिए

    वाह ...बधाई प्यारी रचना को !

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  18. वे मुस्कराती हुईं ,शतायुं हों ...
    मंगल कामनाएं आपको !

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  19. वाह ... अनुपम भाव लिये अनुपम अभिव्‍यक्ति

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  20. भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  21. भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  22. वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  23. ठहरा नहीं तितली जैसा
    जी भर पराग चखा
    फिर देख नया गुल
    उसी रुख चल दिए
    वाह … बहुत सुन्दर
    तितली में और भौरे में यही फर्क है !

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  24. उसकी आँखें यूँ ही सदा
    भरी हो रौशनी से
    जिसने अपनी आँखों में
    रख मुझे हर पल जिए
    बहुत खूब … बहुत भावपूर्ण रचना ।

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  25. दिल से निकली बहुत ही लाजवाब और सशक्त पोस्ट

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  26. बहुत अच्छी रचना, बहुत सुंदर

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  27. जब दीप जले आना सब शाम ढले आना -क्या होगा अब उस चिर प्रतीक्षिता ,प्रोषित प्रतिक का ?

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  28. लौ नहीं ऐसे दीयों की
    आजतक निष्फल गये

    So true!!!

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