समय तो समय है
पैमाना ठहरा पैमाना
लेकिन समय का पैमाना
अगर जाता है बदल
तो परिवर्तन बनता अपरिवर्तन
खो जाती है किलकारी
गुम होता है क्रंदन
बढ़ जाती है धूप
घट जाती है छाँव
गुम हो जाता सब कुछ
चाहे शहर हो या गाँव
छह घंटे के पैमाने में
दिखता परिवर्तन ही परिवर्तन
सुबह से दोपहर हो
या दोपहर से शाम से रात
पल-पल बदलती धूप, हवा
पैमाना गर बदले छः हजार साल
में
तो लगता है कुछ नहीं बदला
वही चाँद उगा वही सूरज
निकला
वही लोग हुए, वही प्रेम और
द्वेष
एक दूसरे के संहार की
अभिलाषा
अभी तक सबमे शेष
हाँ जेठ से शिशिर तक होती दौड़
चन्द्र दागी और अंशुल मिहिर
सिरमौर
मगर हज़ार सालों में ये भी
कुछ नया नहीं
और छह अरब सालों के पैमाने
से
पृथ्वी पर दिखता परिवर्तन ही
परिवर्तन
ये पहाड़, ये नदियाँ, मानव
जीवन
सतत परिवर्तन का कराते दर्शन
जो पैमाने का बदलता दायरा
कितना बदल जाता है माजरा !
(निहार रंजन, सेंट्रल , ९
अगस्त २०१३)
परिवर्तन तो संसार का नियम है.....
ReplyDeleteहाँ इतना जरुर है की परिवर्तन का पैमाना हर चीजों का अलग होता है..
भावनाओं का कोई पैमाना नहीं होता |सतत परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है !बिना बदलाव के अनुभूति नीरस होगी |ईर्ष्या और द्वेष ईश्वर ने मानव को अपने से पृथक करने हेतु दिये हैं |प्रत्येक मानव में ये होते ही हैं |जैसे जैसे हम इन पर विजय पाते जाते हैं ,ईश्वर के करीब होते जाते हैं |
ReplyDeleteजो पैमाने का बदलता दायरा
कितना बदल जाता है माजरा !
सत्य और सुंदर ...!!
आपकी यह रचना आज शनिवार (10-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDelete!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...परिवर्तन पढ़ आनंद आया..!!
ReplyDeleteपैमाने का बदलता दायरा तो कितना अच्छा होता. लेकिन परिवर्तन तो प्रकृति के ही वश में है और प्रकृति के परिवर्तन का अपना ही नियम है, शायद जो होता है अच्छा ही होता है , कभी कभी हम प्रकृति के परिवर्तन को समझने में नाकाम रह जाते हैं .. राग द्वेष भी मनुष्यों में प्रकृति ने ही भरा है ताकि हम अनवरत कोशिश करते रह सकें इनमे परिवर्तन करने की
ReplyDeleteहाँ जेठ से शिशिर तक होती दौड़
चन्द्र दागी और अंशुल मिहिर सिरमौर
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी
परिवर्तन ही जीवन का नियम है.....सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...आनंद आया..
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (11-08-2013) के चर्चा मंच 1334 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteदायरा ही सब कुछ है ... पैमाना तो वही कहेगा जो दायरे में है ...
ReplyDeleteपरिवर्तन के नियम को व्यापकता देती रचना ...
गहरी बात।
ReplyDeletenice!!
ReplyDeleteअलग अलग पैमाने
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया |
ReplyDeleteसमय के पैमाने को खूब रेखांकित किया है!
ReplyDeleteहाँ! वैश्विक तापमान भी ज्यादा बढ़कर अपने पैमाना से बाहर निकल आया है ..सुन्दर रचना..
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