Friday, October 14, 2022

'तुमुल-तन्हाई' की ओर

 शीत  शैशव  में  तरंगित,  पुष्प,  तरुणाई   की   ओर 

शरद का यह चंद्र कीर्णित जोश-ओ-जुन्हाई  की ओर

 

नभ में  रौरव-नाद, द्युतिमा,  हर दिशा  आठों  पहर 

बादलों   का  सतत स्यंदन, वात    पुरवाई की    ओर


खेत  सारे  डूबे - डूबे,   है  किसानी  शाप   सी 

कुछ तो सोचेंगे निगेहबाँ, इनके भरपाई की ओर 


उर्मियों  को  बाँध, उन्मन, तप्त  सी  एक  शशिमुखी 

चल  पड़ी  है आज  फिर  से  'तुमुल-तन्हाई' की ओर 


रह  सकेंगे  कब  तलक हम  इस  नगर  के  पाश में 

बैठ  रेलिया, चल  पड़ेंगे, गोरी  हरजाई  की  ओर 

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ओंकारनाथ मिश्र, लखनऊ

अक्टूबर १०, २०२२ 

6 comments:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  2. स्वागत है अति सुन्दर अभिव्यक्ति का।

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  3. बहुत खूबसूरत सृजन

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  4. बहुत ही सुंदर सृजन

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  5. उर्मियों को बाँध, उन्मन, तप्त सी एक शशिमुखी

    चल पड़ी है आज फिर से 'तुमुल-तन्हाई' की ओर ...!!!!!!!!!!!!! atyadhik hridaysparshi

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