फैला के अपना दामन ड्योढ़ी
के मुहाने पर
बैठ जाती है हर रोज़ मेरे
आमद की आस लिए
अपने तनय की पदचाप सुनने
कहती हवाओं से
जल्दी पश्चिम से आ जाओ खबर
कोई ख़ास लिए
हवाओं से ही चुम्बन दे जाती
है मुझे
माँ बुलाती है मुझे
स्मृति में समायी शैशव की
हर छोटी बातें
वो कुल्फी वाला, और दो
चवन्नी की मिन्नतें
अब कोई नहीं कहता, मुझे दो
संतरे की यह फाँक
अब कोई नहीं कहता, कमीज़ की बटन
दो तुम टांक
चिढ की बातें तब की, अब
रुलाती है उसे
माँ बुलाती है मुझे
यह जगत विस्तीर्ण, ये नभ ये
तारे
नहीं मेरी दुनिया, जिसमे विचरते
सारे
जो मेरी संसृति है तुझमे,
आदि और अंत
तुझसे बिछड़ हो गया हूँ
पुष्प बिन मरंद
तुमसे सानिध्य की चिंता, है
सताती मुझे
माँ बुलाती है है मुझे
(निहार रंजन, सेंट्रल,
०९-११-२०१२ )
बहुत सुंदर ॥
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनायें
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ReplyDeleteस्मृति में समायी शैशव की हर छोटी बातें
वो कुल्फी वाला, और दो चवन्नी की मिन्नतें
अब कोई नहीं कहता, मुझे दो संतरे की यह फाँक
अब कोई नहीं कहता, कमीज़ की बटन दो तुम टांक
चिढ की बातें तब की, अब रुलाती है उसे
माँ बुलाती है मुझे
.... निःशब्द अभिव्यक्तियाँ शब्दों से परे होती हैं ... दिवाली की शुभकामनायें
बेहद उम्दा.
ReplyDeleteदीपावली पर्व के अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत बढिया दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteतुमसे सानिध्य की चिंता, है सताती मुझे
ReplyDeleteमाँ बुलाती है है मुझे
अनुपम भाव
माँ...... बच्चों को तो याद आती ही है, माँ को बच्चे कहीं ज़्यादा याद आते हैं...
ReplyDeleteबच्चों के स्वेटर उधेड़ कर ऊन को लपेटती हुए, वो फिर से उन्हें बुनती है...जैसे कि अपने सपनों को नये सिरे से बुनना चाह रही हो...
~सादर !
यह जगत विस्तीर्ण, ये नभ ये तारे
ReplyDeleteनहीं मेरी दुनिया, जिसमे विचरते सारे
जो मेरी संसृति है तुझमे, आदि और अंत
तुझसे बिछड़ हो गया हूँ पुष्प बिन मरंद
तुमसे सानिध्य की चिंता, है सताती मुझे
माँ बुलाती है है मुझे
bahut hi sundar lagi ye maa ke liye rachna...