Sunday, November 11, 2012

माँ से दूर



फैला के अपना दामन ड्योढ़ी के मुहाने पर
बैठ जाती है हर रोज़ मेरे आमद की आस लिए
अपने तनय की पदचाप सुनने कहती हवाओं से
जल्दी पश्चिम से आ जाओ खबर कोई ख़ास लिए
हवाओं से ही चुम्बन दे जाती है मुझे
माँ बुलाती है मुझे 

स्मृति में समायी शैशव की हर छोटी बातें
वो कुल्फी वाला, और दो चवन्नी की मिन्नतें   
अब कोई नहीं कहता, मुझे दो संतरे की यह फाँक
अब कोई नहीं कहता, कमीज़ की बटन दो तुम टांक
चिढ की बातें तब की, अब रुलाती है उसे
माँ बुलाती है मुझे    

यह जगत विस्तीर्ण, ये नभ ये तारे
नहीं मेरी दुनिया, जिसमे विचरते सारे
जो मेरी संसृति है तुझमे, आदि और अंत
तुझसे बिछड़ हो गया हूँ पुष्प बिन मरंद
तुमसे सानिध्य की चिंता, है सताती मुझे
माँ बुलाती है है मुझे

(निहार रंजन, सेंट्रल, ०९-११-२०१२ )

8 comments:


  1. स्मृति में समायी शैशव की हर छोटी बातें
    वो कुल्फी वाला, और दो चवन्नी की मिन्नतें
    अब कोई नहीं कहता, मुझे दो संतरे की यह फाँक
    अब कोई नहीं कहता, कमीज़ की बटन दो तुम टांक
    चिढ की बातें तब की, अब रुलाती है उसे
    माँ बुलाती है मुझे
    .... निःशब्द अभिव्यक्तियाँ शब्दों से परे होती हैं ... दिवाली की शुभकामनायें

    ReplyDelete
  2. दीपावली पर्व के अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें

    ReplyDelete
  3. बहुत बढिया दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  4. तुमसे सानिध्य की चिंता, है सताती मुझे
    माँ बुलाती है है मुझे
    अनुपम भाव

    ReplyDelete
  5. माँ...... बच्चों को तो याद आती ही है, माँ को बच्चे कहीं ज़्यादा याद आते हैं...

    बच्चों के स्वेटर उधेड़ कर ऊन को लपेटती हुए, वो फिर से उन्हें बुनती है...जैसे कि अपने सपनों को नये सिरे से बुनना चाह रही हो...
    ~सादर !

    ReplyDelete
  6. यह जगत विस्तीर्ण, ये नभ ये तारे
    नहीं मेरी दुनिया, जिसमे विचरते सारे
    जो मेरी संसृति है तुझमे, आदि और अंत
    तुझसे बिछड़ हो गया हूँ पुष्प बिन मरंद
    तुमसे सानिध्य की चिंता, है सताती मुझे
    माँ बुलाती है है मुझे

    bahut hi sundar lagi ye maa ke liye rachna...

    ReplyDelete