पर्वत बना दो मुझे
कि ताप में, शीत में
रार में , प्रीत में
शरद में, वसंत में
धरा पर, अनंत में
फूल में, आग में
रंग में, दाग में
प्रात में , रात में
धूप , बरसात में
शूल में, धूल में
तना में, मूल में
झील में , नहर में
सागर में, लहर में
जीवन में, निधन में
दहन में, शमन में
दया में, दंड में
दंभ और घमंड में
पसरे संसार में
नभ के विस्तार में
विरह में, मिलन में
कसक में, चुभन में
रहूँ मौन, स्थावर
अविचिलित, स्पंदनहीन
समय की कहानी
लौह, जिंक, ताम्बे में
परत दर परत समेटे……..
कल सुनाने के लिए.
(निहार रंजन, सेंट्रल, १५-११-२०१२)
अच्छी रचनायें हैं आपकी ...
ReplyDeleteनीचे भी देखीं, स्वागत है आपका ....!!
ReplyDeleteकल 17/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
नयी पुरानी हलचल में इस पोस्ट को शामिल करने के लिए शुक्रिया यशवंत भाई.
Deleteरहूँ मौन, स्थावर
ReplyDeleteअविचिलित, स्पंदनहीन
समय की कहानी
लौह, जिंक, ताम्बे में
परत दर परत समेटे……..
कल सुनाने के लिए.
बहुत ही बढिया।
बहुत सुंदर भाव ...
ReplyDeleteसबकुछ होने का हौसला अपने ही मन में होता है .... अडिग पर्वत भीतर भी रहता है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना...
ReplyDelete:-)
बेहतरीन पेशकश रंजन जी
ReplyDeleteबेहतरीन बेहतरीन और बेहतरीन रचना...
ReplyDelete:-)
पर्वत बना दो मुझे
कि… … …
रहूँ मौन, स्थावर
अविचिलित, स्पंदनहीन
समय की कहानी
लौह, जिंक, ताम्बे में
परत दर परत समेटे……..
कल सुनाने के लिए
वाऽह !
बहुत खूबसूरत !
आदरणीय निहार रंजन जी
आपके ब्लॉग की अन्य रचनाएं देख कर भी हार्दिक प्रसन्नता हुई …
रचनाओं के लिए क्या कहूं …
हर रचना सुंदर है !
…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे , यही कामना है …
शुभकामनाओं सहित…
बहुत सुंदर मन के भाव ...
ReplyDeleteप्रभावित करती रचना .
..
उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया मदन मोहन जी.
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