प्रेमिका अनवरत मिलन-गीत
गाती है
और ये कदम हैं जो लौट नहीं
पाते
भेड़ियों के बारे कहा गया था
वो आदिम शाकाहारी हैं
गाँव में शहर के कुछ लोग
ऐसी ही घोषणाएं करते हैं
यही सब सुनकर मैं पलायन कर
गया
गाँव के चौक तक आकर माँ ने
आवाज़ दी थी
लेकिन बेटे के क्षुधा-क्रंदन ने मुझे विक्षिप्त
कर दिया था
कांगड़ा में पत्थर-काटने
वाली मशीन के साथ
चिंतित मन की सारी चीखें दब
जाती थी
सोचा था पत्थर-भाग्य भी खंडित
होगा इसी से एक दिन
मालिक की शान के लिए विरह
और विष को
पालमपुर की मीठी बूटियों के
साथ पीता था
भाखड़ा-नंगल से पहले वमन की
आज्ञा नहीं थी
ठंडे माहौल में जल्द ही
मेरा उबलता खून ठंडा हो गया था
स्वाभिमान, राष्ट्रवाद और
शौर्य
एक चीख से, एक साथ स्खलित
हो गए
पत्थर तोड़नेवाली मशीन के
नीचे एक मशीन थी
जिसकी साँसे थी
आजादपुर की मंडी में पोटली
बांधे मैं अकेला नहीं था
बहुत लोग थे मेरी तरह विकल,
विक्षिप्त, विच्युत
जिनकी इच्छाओं को नाग ने डस
लिया था
जिनके पिताओं को चित कर
ठेल दिया गया था सकल
शार्वरता में
आम के बगीचे बाँझ हो गए थे
प्रेमिका गीत गा रही थी
मुझ निरपवर्त के लिए
मेरी प्रेमिका (जो अब मेरी
पत्नी है)
अपने ह्रदय तुमुल की शान्ति
के लिए
मेरे साथ पत्थर तोड़ना चाहती
है
लेकिन मैंने बार-बार कहा है
उससे,
निराला मर गया है
बार बार कहा है आज,
शिखंडी भी चीरहरण जानता
है
बार बार कहा है कि,
पेट और तय रतिबंध की
सुरक्षा के बाद
आदमी अक्सर लंच बॉक्स लेकर
शिथिल हो जाता है
बन जाता है
सुबह और शाम के बीच झूलता
एक चिंतापर, चर्चर पेंडुलम
घटा-टोप आकाश के नीचे
अपने नौनिहाल की आँखों में
ज्योति ढूंढता है
क्योंकि चिरंतन चक्र की उसे
आदत है
और बताया अपने दोस्त की बात
जिसने कहा था कि भारत और
अमरीका के युवाओं में
फर्क यही है कि
कि हमारे सपने तीस बरस की
उम्र आते-आते टीस बन जाते है
लेकिन प्रेमिका मिलन-गीत गा
रही थी
हाँ! उसके गीत के किरदारों
में नए नाम थे
शिखिध्वज और शतमन्यु
के
मेरे पिता ने
आंखे मूँद कर कहा था, ये
दूंद
साल १९४७ से जारी है जब
किसी ने गुलाब की पंखुड़ियाँ
चबा, कुल्ला
सुनहरे कलम से लिखी सपनों
की सूची पर फेंक दिया था
गोरियों की लोरियों में
सुनी परी कथा की परिकथाएं
और एक पर-स्त्रीभोगी से
ब्रह्मचर्य का पाठ लिखवाकर
हमारे पाठ्यक्रम में डाल
दिया था
कहते हैं, उस दिन से आजतक
किरीबुरू की झंपा मुर्मू को
उसकी बेटियों और उसकी
बेटियों को
प्रकृति ने जब भी अपने धर्म
से भीषण सरदर्द दिया है
वह अपने मालिक के पास
बस एक ‘सरबायना स्ट्रांग’
माँगने चली आती है
इतने सालों में एक आना सूद
सात रूपये सैकड़ा हो गया है
अनपढ़ होकर भी सूद की दर बहुत
अच्छे से जानती है
सौ पर चौरासी रूपये साल के
और यह भी जानती है कि हमारे
देश में सब ठीक है
बस एक भ्रष्टाचार है जिसने
यह सब किया है
जिसका जिन्न चुनावों
में उठता और लुप्त होता है
मेरे उस दोस्त ने कहा था कि
जो अपने देश में भ्रष्टाचारी
और निकम्मे हैं
वो पश्चिमी देशों में जाकर,
कोड़ों के जोर पर
गर्धव-स्वन से आकाश में
निर्निमेष, नीरवता तोड़ते हैं
कृतांजलित मोदक पाते हैं
मैंने तब भी कहा था कि अपने
देश में
कृष्णकार्मिकों पर कोड़े
चलाने वाले के हाथ बांधकर
जो पलंग पर सोया था
उसे इतिहास एक दिन बाँध
देगी
सुना है कि पलायन के दर्द
की अनसुनी कर
कोई दल बार-बार अपनी
राजनीति गरम करता है
सुना है उनके लोगों ने
अमरीकी रेस्तरां में पिज़्ज़ा
बनाने और बर्तन धोने की नौकरी
स्थानीय लोगों से छीन ली है
सुना है उन सथानीय लोगों की
जीवित ईर्ष्या में विद्वेष मृत है
मुझे उम्मीद है एक दिन उनका
संवाद होगा
विद्वेष की निरर्थकता का
आभास होगा
मेरे मालिक को जब से सूचना
मिली है
प्रिय के अधिलंबित अधर-मिलन
की
मेरे होंठों पर कंटीले तार
लगा दिए गए है
जितना विवर्ण मेरा चेहरा
होता है
उतना ही उनका मुख-श्री बढ़ता
जाता है
पलायन कर चुके लोगों का यही
सच है
कई लोगों को इसमें झूठ
दिखाई देता है
लेकिन जो मुझे सुनाई देता
है
वो है प्रेमिका का सुस्वर गीत
‘बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे’
(निहार रंजन, समिट स्ट्रीट,
२७ जुलाई २०१४)
बहुत गहरी रचना
ReplyDeletebhasha thodi jatil si lagi mujhe .. kuchh shabd beech beech mein aise aate hain jinka arth hi samjh nahi aata ..
ReplyDeleteशायद ऐसा एक बार पहले भी आपने लिखा था. मेरी रचनाओं में कई बार ऐसे शब्द होते हैं जो समान्य बोलचाल की भाषा में नहीं हो. ऐसा मेरे हिंदी सीखने के तरीके से आया हो शायद. लेकिन उसका उद्द्येश्य रचना का भाव-कुंठन नहीं होता. कई बार स्वयं से पता नहीं चल पाता ऐसे कौन कौन से शब्द हैं जो क्लिष्ट हो सकते हैं पाठकों के लिए. अतः आगे से अगर आप बता दें कि कौन-कौन से वो शब्द थे तो आपको अर्थ भी बता पाऊँगा.
Deleteविच्युत .. chyut main jaanti hun par ye naya shabd hai.. चर्चर..गर्धव-स्वन .. कृतांजलित..निरपवर्त ..शार्वरता ..
Deleteविच्युत का यहाँ मतलब विस्थापित है. चर्चर यानि जो चल रहा है. गर्धव-स्वन से अभिप्राय गदहे के ध्वनि अथवा स्वर से है. कृतांजलित अर्थात जो हाथ जोड़े हुए खड़ा हो. निरपवर्त का अर्थ है पीछे ना मुड़नेवाला. शार्वरता बहुत अधिक अंधकार की स्थिति को कहते हैं.
Deleteवाकई सदी के झंझावातों से प्रेयसी का तीर-स्थल ही बचा सकता है। चिरस्मरणीय पद्य।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteआपके शब्दों का चयन रचना को लाजवाब बना देता है।
सादर
सदी का गान या मन का झंझावात ... गाथा है आजादी के बाद के पूरे युग की ...
ReplyDeleteकठोर सत्य की, कर्कश वार्तालाप की टूटते पत्थर के साथ टूटते सपनों की ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत-बहुत गहरी और उम्दा रचना। क्या सच उघेड़ा है आपने निहारजी .... एक-एक शब्द प्रहार करती हुई ...
ReplyDeleteवाह। सचमुच निहार जी, बहुत समय बाद इतनी अच्छी रचना पढ़ी
ReplyDeleteयह अभिव्यक्ति अनूठी है , मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteभावनाओं का सजीव चित्रण किया है इस रचना में
ReplyDeleteबहुत सार्थक सटीक …
आज का यथार्थ और उसका दर्द उभर कर आया है एक एक शब्दों में...उत्कृष्ट भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteजीवन के यथार्थ से परिचित कराती और मानवीय संवेदनाओं को
ReplyDeleteअभिव्यक्त करती सुन्दर रचना
अदभुत
सादर ----
आग्रह है ---
आवाजें सुनना पड़ेंगी -----
संवेदनाओं को
ReplyDeleteअभिव्यक्त करती सुन्दर रचना