Saturday, April 17, 2021

कहाँ है निगहबान??

लुटता हुआ शहर, सिमटा हुआ मकाँ 

लोग ये पूछे- "कहाँ  है निगहबान" 


वक़्त की कालिख में घुला ज़िन्दगी का रंग 

ये कौन सा कातिल है  कि  सब लोग-बाग़ दंग 


सूनी पड़ी है बस्तियां,  आबाद शमशान 

बेख़ौफ़ आवारा है ये मौत का  सामान 


चारबाग़, तेलीबाग ,ऐशबाग पस्त 

छोड़  इस शहर को चलें कूच करें दश्त 


हर रुख हुआ है ज़ब्त, क्यों  मौत का निशाँ 

लोग ये पूछे- "कहाँ  है निगहबान" 

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ओंकारनाथ मिश्र 

वृन्दावन, १८ अप्रैल २०२१ 

18 comments:

  1. वाकई , सब यही पूछ रहे कि कहाँ हो ईश्वर ? भावों को बखूबी संजोया है .

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  2. सही है, पर पूछने वाले अपने भीतर ही नहीं झाँकते

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  3. बिल्कुल सही प्रश्न,सारगर्भित प्रतिक्रियाएं ।

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  4. आपकी लिखी कोई रचना सोमवार 19 अप्रैल 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  5. निगहबान की निगाहें तलाश रहीं
    साँसें ज़िंदगी की राहें तलाश रहीं।
    -----
    समसामयिकी बेहतरीन गज़ल।
    सादर।

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  6. हर रुख हुआ है ज़ब्त, क्यों मौत का निशाँ

    लोग ये पूछे- "कहाँ है निगहबान" ...बहुत सही !

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  7. हृदयस्पर्शी सृजन।

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  8. सूनी पड़ी है बस्तियां, आबाद शमशान

    बेख़ौफ़ आवारा है ये मौत का सामान

    बहुत खूब... समसामयिक ...
    लाजवाब सृजन।

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  9. जी हां। अब कहीं कोई निगाहबान नज़र नहीं आता।

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  10. समसामयिक विषय पर ग़ज़ल बहुत सुंदर।

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  11. बहुत खूब ...
    निगहबान ... खुद इंसान से ज्यादा खुद का निगहबान कौन हो सकता है ... ये तंत्र, सोच, प्राकृति ... कौन है निगहबान ... आज के समय का सटीक आंकलन है ...

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  12. हृदय विदारक पंक्तियाँ...

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  13. ऐसा भी मंज़र देखने को मिला है हमें ... सोचा न था । मर्मस्पर्शी सृजन

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  14. सूनी पड़ी है बस्तियां, आबाद शमशान

    बेख़ौफ़ आवारा है ये मौत का सामान



    चारबाग़, तेलीबाग ,ऐशबाग पस्त

    छोड़ इस शहर को चलें कूच करें दश्त

    kitni sunder line likhi hai apne, thanks
    View: Mahadev Photo

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