कवि का सच
लोग कहते हैं
कविता झूठी है
कल्पना का सागर है
जिसका यथार्थ से कुछ वास्ता नहीं
लोग कहते हैं
कवि कविता की आड़ में अपना भड़ास निकालते हैं
अपनी ज़िन्दगीके अँधेरे को छदम रूप देकर कविता का नाम देते है
अपनी असहायता को झूठे शब्द देकर हुंकार का नाम देते हैं
लोग कहते हैं
कविता ने झूठी आस दी है
उजालों के स्वप्न दिए है
दिल को खुश रहने का ख़याल दिया है, पर हकीकत?
लोग कहते हैं
कवि रसिया है
कविता के कंधे पर धनुष रख आखेट करता है
अपनी अतृप्त इच्छाओं को दुनिया के दर्द कहता है
लोग कहते हैं
कविता बिन दर्द हो ही नहीं सकती ,
रामायण देखो, "ग़ालिब" का दीवान देखो
"मजाज़" के टूटे अरमान देखो
लोग कहते हैं
कविता में शराब की बातें है
कविता में चाटुकारिता है
कविता हारे हुए (bunch of losers) पढ़ते है
लोग कहते हैं
कविता बेकार है
दुनिया में सब कुछ अच्छा है
बस नजरिये में फर्क की ज़रुरत है
लेकिन काश!!
कविता सब समझ पाते
सब यह समझ पाते कि
कवि ह्रदय का विस्तार निस्सीम है
इसलिए उसमे अपरिमित दर्द है
सब यह भी समझ पाते
जब दिल्ली में असुर नाचते है
तो कवि ह्रदय नुकीले जूतों से रौंदा जाता है
और दर्द की वेदना वैसी ही होती है जैसे किसी स्व का हादसा हो
हाँ दुनिया अच्छी है
क्योंकि मेरी ज़िन्दगी में उजाले है
आराम है, पैसे है और दुनिया बदलने का झूठा दंभ है
अब किसी को रोटी नहीं मिलती तो मेरी नींद क्यों जाए
लेकिन अपनी ज़िन्दगी के उजालों से हट के देखता है कौन
रंगीनियों की क्षणिकता और श्वेत श्याम के स्थायित्व को देखता है कौन
न्यूयॉर्क की गलियों में वक्षोभ से औरत की कीमत होते देख दुखता है कौन
वही कोई "शराबी", "पागल", "हारा हुआ" कवि
कौन कहता है दुनिया में दर्द नहीं है
लेकिन दर्द को देखने की लिए आँखें चाहिए
उनमे ख़ास ज्योति चाहिए
एक ख़ास जिगर चाहिए
और वो रौशनी तभी आती है
जब सब अपने स्वजनों की माया पृथक कर
अपने प्रियतम के आलिंगन से विमुक्त हो
उस असहाय को भी देखें जिसका आंत जल रहा है
वैसी ज़िन्दगी भी देखे
जिसे समय का चक्र एक पल में लूट लेता है
और एक पल में चहचहाती ज़िन्दगी में वीराना आ जाता है
सालों की समेटी ख़ुशी एक पल में काफूर होती है
लेकिन इसके लिए चाहिए मन, ह्रदय का विस्तार
दृगों को वही ख़ास ज्योति
और अपने स्वार्थ से इतर एक दुनिया का एहसास
जहां घोर अँधेरा पसरा है
और मैं यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि
ना मुझे मुहब्बत ने ह्रदय चाक किया है
ना मेरी दुनिया में अँधेरे हैं
और ना ही शराब का मैं गुलाम हूँ
फिर भी दिल में दर्द है
क्योंकि दर्द जीवन का सच है, स्थायी या अल्पकालिक
क्योकि "दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त"
क्योंकि ह्रदय कवि का है, आहनी नहीं
(निहार रंजन, सेंट्रल, १७-२-२०१३ )
लोग कहते हैं
कविता झूठी है
कल्पना का सागर है
जिसका यथार्थ से कुछ वास्ता नहीं
लोग कहते हैं
कवि कविता की आड़ में अपना भड़ास निकालते हैं
अपनी ज़िन्दगीके अँधेरे को छदम रूप देकर कविता का नाम देते है
अपनी असहायता को झूठे शब्द देकर हुंकार का नाम देते हैं
लोग कहते हैं
कविता ने झूठी आस दी है
उजालों के स्वप्न दिए है
दिल को खुश रहने का ख़याल दिया है, पर हकीकत?
लोग कहते हैं
कवि रसिया है
कविता के कंधे पर धनुष रख आखेट करता है
अपनी अतृप्त इच्छाओं को दुनिया के दर्द कहता है
लोग कहते हैं
कविता बिन दर्द हो ही नहीं सकती ,
रामायण देखो, "ग़ालिब" का दीवान देखो
"मजाज़" के टूटे अरमान देखो
लोग कहते हैं
कविता में शराब की बातें है
कविता में चाटुकारिता है
कविता हारे हुए (bunch of losers) पढ़ते है
लोग कहते हैं
कविता बेकार है
दुनिया में सब कुछ अच्छा है
बस नजरिये में फर्क की ज़रुरत है
लेकिन काश!!
कविता सब समझ पाते
सब यह समझ पाते कि
कवि ह्रदय का विस्तार निस्सीम है
इसलिए उसमे अपरिमित दर्द है
सब यह भी समझ पाते
जब दिल्ली में असुर नाचते है
तो कवि ह्रदय नुकीले जूतों से रौंदा जाता है
और दर्द की वेदना वैसी ही होती है जैसे किसी स्व का हादसा हो
हाँ दुनिया अच्छी है
क्योंकि मेरी ज़िन्दगी में उजाले है
आराम है, पैसे है और दुनिया बदलने का झूठा दंभ है
अब किसी को रोटी नहीं मिलती तो मेरी नींद क्यों जाए
लेकिन अपनी ज़िन्दगी के उजालों से हट के देखता है कौन
रंगीनियों की क्षणिकता और श्वेत श्याम के स्थायित्व को देखता है कौन
न्यूयॉर्क की गलियों में वक्षोभ से औरत की कीमत होते देख दुखता है कौन
वही कोई "शराबी", "पागल", "हारा हुआ" कवि
कौन कहता है दुनिया में दर्द नहीं है
लेकिन दर्द को देखने की लिए आँखें चाहिए
उनमे ख़ास ज्योति चाहिए
एक ख़ास जिगर चाहिए
और वो रौशनी तभी आती है
जब सब अपने स्वजनों की माया पृथक कर
अपने प्रियतम के आलिंगन से विमुक्त हो
उस असहाय को भी देखें जिसका आंत जल रहा है
वैसी ज़िन्दगी भी देखे
जिसे समय का चक्र एक पल में लूट लेता है
और एक पल में चहचहाती ज़िन्दगी में वीराना आ जाता है
सालों की समेटी ख़ुशी एक पल में काफूर होती है
लेकिन इसके लिए चाहिए मन, ह्रदय का विस्तार
दृगों को वही ख़ास ज्योति
और अपने स्वार्थ से इतर एक दुनिया का एहसास
जहां घोर अँधेरा पसरा है
और मैं यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि
ना मुझे मुहब्बत ने ह्रदय चाक किया है
ना मेरी दुनिया में अँधेरे हैं
और ना ही शराब का मैं गुलाम हूँ
फिर भी दिल में दर्द है
क्योंकि दर्द जीवन का सच है, स्थायी या अल्पकालिक
क्योकि "दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त"
क्योंकि ह्रदय कवि का है, आहनी नहीं
(निहार रंजन, सेंट्रल, १७-२-२०१३ )
कविता छल...स्वार्थ से परे है ...कविता आत्मा की आवाज़ है ..और यह आवाज़ वही सुन सकता है ...जिसके पास कान नहीं ...सुनने वाला दिल हो
ReplyDeleteपूरी तरह सहमत हूँ.
Deletemain bhi
DeleteNihar bhai........is post ke liye Haits Off.....
ReplyDeleteशब्दश: मन में गहरे उतरती यह अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteनि:शब्द करती प्रस्तुति
मुश्किल काम है कविता को व्याख्यायित कर पाना -मगर मूल में संवेदना है ! अगर नहीं तो न कहीं कविता होगी और न कवि -
ReplyDeleteकविता पर कविता अच्छी लगी
अरविंद सर और सरस आंटी से मैं भी सहमत हूँ
ReplyDeleteसादर
लोगों का क्या ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
I think I haven't read a poem which celebrates a poet more than this one. What a poet feels, how he connects and out pours his emotions is reflected so beautifully in your words. Whatever we feel on any issue, be in Delhi rape case or hunger, we write a poem to show how deeply we are affected and how deeply we feel.
ReplyDeleteThis is indeed the truth of a poet.
Cheers to all the poets!
कविता किसी एक पैमाने में उतरने वाली चीज़ नहीं ... उसकी व्याख्या भी आसान नहीं ... जीना होता है उसको ...
ReplyDeleteकवि ह्रदय का विस्तार निस्सीम है
ReplyDeleteइसलिए उसमे अपरिमित दर्द है
बहुत ही सार्थक और गंभीर बात काही है .....!!हृदयहीन मनुष्य कवि नहीं हो सकता ....
ऐसे भावों को शब्दों बांधना भी कहाँ सरल है..... कविता के अर्थ को शब्द देती कविता ....
ReplyDeleteवाह, सुंदर रचना
ReplyDeleteनिसंदेह कवि का ह्रदय बहुत विस्तृत होता है ..
सादर !
उजाले की दुनिया से आगे निकल कर दूसरों की अंधेरी दुनिया में झाँकने वाला ही कवि है। कवि कर्म को समझाने वाली सार्थक कविता
ReplyDeleteकवि के हृदय का थाह पाना मुश्किल है,बहुत ही सुन्दर रचना.
ReplyDeleteमेरे ब्लोग्स संकलक(ब्लॉग कलश)पर आपका स्वागत है.
"ब्लॉग कलश"
रामायण देखो, "ग़ालिब" का दीवान देखो
ReplyDelete"मजाज़" के टूटे अरमान देखो
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बेहाल मन के अल्फाज देखो
टूटी साँसों के साज देखो ....
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बेहतरीन ..उम्दा ...
लेकिन अपनी ज़िन्दगी के उजालों से हट के देखता है कौन----jeevan ka sach
ReplyDeleteसारे जहां के जहर को पीती कविता ही तो कुछ अमृत-बूंदों से आस-दीप जलाए रखती है..
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