देख ली तुम्हारी हकीकत
निर्जन, निर्वात,
पथरीला
यही सच है तुम्हारा
झूठे मामा मेरे बचपन
के
पर-आभा से चमकने वाले
क्यों
मैं पूजूं तुम्हें?
पंद्रह दिनों के चक्र
में
फर्श से अर्श तक
और अर्श से फर्श तक
पेंडुलम की तरह झूलने
वाले
कोई चाहता तो आभा तुझमे
कोई चाहता तो घोर तमस्क
तुझसे अच्छे तारे मेरे
दूर गगन में
टिम-टिम करते रहते
बिना थकन के
तुझको जाना बचपन से प्यारे
हो तुम
पर माँ ने बताया नहीं
तेरा सच
कितने बेबस और लाचार
हो तुम
सूरज की चमक बिन
बिलकुल बेकार हो तुम
क्या है प्यारा तुझमे
?
पूनम की रात का
दागदार रूप?
हर निशा की मिन्हाई
जुन्हाई ?
या अमावस की रात
तुझसे मिली तन्हाई ?
पूज लेता मैं तुम्हे
होती चमक अगर तुझमे अपनी
और हर रात मेरी
झलकरानी
नुपुर-ध्वनि लिए कोसों
से कौतूहल जगाये
कोसी किनारे धेमुराघाट
पर आती
और कभी ना कह पाती
मुझसे
आज अमावस की रात है!
(निहार रंजन ,
सेंट्रल, ७ मई २०१३)
चाँद तुम्हे मैं क्यों पूजूँ , जिसका ना प्रकाश स्थायी और ना आकार .
ReplyDeleteचाँद को विभिन्न आयामों से कवि अपनाता है ... अलग अलग नज़रिए से शब्दों का जामा पहनाता है ... आपने भी नए अंदाज़ में लिखा है उसे ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteपूनम के रात का दागदार रूप? बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति!!
ReplyDeleteचाहे जितनी भी कमिया हो पर चाँद तो चाँद ही हैं ना अकेलेपन का हमसफर।।
ReplyDeleteचाँद का प्रकाश अपना नहीं , उसका क्या कुसूर . यह प्रकृति की माया है !
ReplyDeleteबहुत खूब साब |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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चाँद का अपना ही रूप होता है
ReplyDeleteआपने इसे बिलकुल नये संदर्भ में
धरती पर उतार लिया है
सुंदर रचना
बधाई
बेहतरीन!!
ReplyDeleteहलचल में शामिल करने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteये बाल-सुलभ सी शिकायत बड़ी ही प्यारी और मीठी है ..
ReplyDeleteसुंदर... चंदामामा सोच में पड़े होंगें
ReplyDeletewah bhayee ji bahut umda shbdon ne vyakt ki hai chand ki vasavikta ko.
ReplyDeleteशिकायत तो आपकी उम्दा है ...
ReplyDeleteपता नहीं ....ये चाँद कब तक हम सब को बहलायेगा-फुसलाएगा.....
नुपुर-ध्वनि लिए कोसों से कौतूहल जगाये
ReplyDeleteकोसी किनारे धेमुराघाट पर आती
और कभी ना कह पाती मुझसे
आज अमावस की रात है!
.
.
.wah wah
चाँद के चेहरे पर भी स्मित मुस्कान उभर आई होगी!
ReplyDeleteभोली सी शिकायत है!
सुन्दर सी कविता है!