मंदिर की घंटी मस्जिद में
छनती है
फिर सीधे मेरे कानों में
आकर बजती है
और रातों को झींगुर बहुत
देर तक कहते हैं
साहब! यहीं कहीं तानसेन अभी
भी रहते हैं
और एक लड़की को, बस देखते
रहने का जूनून हैं
शायद इसी में उसे सुकून है (
क्यों हैं?)
यह शहर है या शहर-सा है?
पर प्रश्न कुछ कोई और मन
बसा है
कि सावन के झूले मज़बूत
दरख्तों पर क्यों लगते हैं ?
उनकी आँखों में स्वर्ग-लोक
के सपने क्यों बसते हैं?
साठ वर्षों तक भोग करके रोग
से परिक्षत शरीर पर
वेश्याओं के बढ़े हाथों से
घिन आती है (क्यों आती हैं?)
सोग होता है, फिर योग होता
है
मूलबंद, जालंधर बंद,
अग्निसार
सारे कुकर्मों का यही उपचार
ऊपर मन में मैल, नीचे शंखप्रक्षालन
यहाँ शिव-शिव-शिव, वहां मिस
रॉजर्स से लालन
मैं बस इतना पूछता हूँ कि
रात के एकांत में
जब तन निढाल होता है
क्या अपनी आत्मा से सबका
सवाल होता है?
कि झिलमिल रंगीनियों के इस
खेल में
इन्द्रालय आकर क्यों जाती
है इंद्राणी जेल में ?
रात भर श्वान भूकते हैं
हम क्या सुनने से चूकते
हैं?
(निहार रंजन, ग्वालियर, २९
अगस्त २०१५)
वैसे तो मुझे इस हत्याकांड की अभी भी पूरी जानकारी नहीं है। ना ही इस संबंध में मैंने समाचार पढ़े या सुने हैं। पर इस घटना पर आपकी काव्य पंक्तियां झकझोरती हैं।
ReplyDeleteदोहरापन
ReplyDeletehttp://hradaypushp.blogspot.com/2010/01/blog-post.html
हम सब कुछ कहाँ सुनते हैं ?
ReplyDeleteमैं बस इतना पूछता हूँ कि रात के एकांत में
ReplyDeleteजब तन निढाल होता है
क्या अपनी आत्मा से सबका सवाल होता है?
...इस प्रश्न के ज़वाब में मौन ही आज के समय की सबसे बड़ी त्रासदी है...अंतस को झकझोरती एक गहन और प्रभावी अभिव्यक्ति...
सशक्त अभिव्यक्ति, शीना बोरा हत्याकांड से आधुनिक जीवनशैली का एक अत्यंत काला पक्ष सामने आया है. रिश्ते कितने खोखले, स्वार्थपरक और छद्म हो गए हैं, यह घटना इसकी मिसाल है.
ReplyDeleteजब तन निढाल होता है
ReplyDeleteक्या अपनी आत्मा से सबका सवाल होता है?
कि झिलमिल रंगीनियों के इस खेल में
इन्द्रालय आकर क्यों जाती है इंद्राणी जेल में ?
रात भर श्वान भूकते हैं
हम क्या सुनने से चूकते हैं?
गहन एवं प्रभावी प्रस्तुति.
अपनी आत्मा से सवाल करने का युग अब गया ... कौन सुनता है इस बात को अब ...
ReplyDeleteशीना हत्याकांड आज की जीवन शैली का ज्वलंत उदहारण है ...
मेरा भी यही सवाल है कि.…क्या अपनी आत्मा से सबका सवाल होता है?
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