जिसने की निंदिया की चोरी
जिसने की निंदिया की
चोरी
उसी की ढोरी, उसी की ढोरी
मन आँगन में जिसने
आकर
चिर-प्रकाश का दीप
जलाकर
नंदित कर मन का हर
कोना
फिर तन्द्रा से मुझे
जगाकर
मधुरित कर जो बाँध गई
वो
जाने कैसी प्रीत की
डोरी
उसी की ढोरी, उसी की ढोरी
मन-मरू में वो विजर जान बन
अनुरक्ता बन, मेरा प्राण बन
कंटक पथ पर फूल बिछाये
आ जाती है मेरा त्राण बन
कभी मृग-वारि जैसी खेले
कभी वो गाये मीठी लोरी
उसी की ढोरी, उसी की ढोरी
वो प्रियंकर गीत बन कर
दाह में आ शीत बन कर
खेलती रहती है मन से
एक लजीली मीत बन कर
निभृति त्यजकर हो सन्मुख
काश! वो करती बातें थोड़ी
उसी की ढोरी, उसी की ढोरी
(निहार रंजन, सेंट्रल, २६ मई २०१३)
ढोरी = उत्कट लालसा
एक आग का दरिया है
ReplyDeleteऔर जिद है पार करने की
वैसी ही ये अभिव्यक्ति लगी
क्षमा करें अगर कमेंट गलत लगे तो
सादर
खेलती रहती है मन से
ReplyDeleteएक लजीली मीत बन कर....
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प्यार की मनभावन लोरी......
वाह ... बहुत ही बढिया
ReplyDeleteवो प्रियंकर गीत बन कर
ReplyDeleteदाह में आ शीत बन कर
खेलती रहती है मन से
एक लजीली मीत बन कर
मन को ये भाव ... जीने के लिये प्रेरित करते हैं हर पल खुशी-खुशी
बहुत खूब
वो प्रियंकर गीत बन कर
ReplyDeleteदाह में आ शीत बन कर
खेलती रहती है मन से
एक लजीली मीत बन कर ...
जो इतना कुछ कर सके ... और कर दे ... उसकी ढोरी तो जाना भी चाहिए ...
सुन्दर भावों की लंबी उड़ान ... लाजवाब ..
बहुत ही सुन्दर प्यार गीत,आभार.
ReplyDeleteवो प्रियंकर गीत बन कर
ReplyDeleteदाह में आ शीत बन कर
खेलती रहती है मन से
एक लजीली मीत बन कर
निभृति त्यजकर हो सन्मुख..........बहुत बढ़िया कविता।
बहुत सुंदर गीत..... उसी की ढोरी उसी की ढोरी.
ReplyDeleteमन आँगन में जिसने आकर
ReplyDeleteचिर-प्रकाश का दीप जलाकर------
वाह प्रेम का गजब का अहसास
सुंदर अनुभूति
बधाई
आग्रह है---
तपती गरमी जेठ मास में---
ढोरी में मुझे तो कोई श्लेष लगा था :-)
ReplyDeleteसुन्दर गीत
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर.......गाने लायक ।
ReplyDeleteसुंदर गीत....
ReplyDeleteआपको पढ़कर अब बहुत शब्दों का स्पष्ट अर्थ समझ में आता है जिसे सुना तो था(ग्रामीण अंचल में) पर कभी अच्छी तरह समझने का मौक़ा नहीं मिला था . अति सुन्दर कृति ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गीत आदरणीय ...सादर !
ReplyDeleteek pyari rachna jise padhkar achha laga.
ReplyDeleteshubhkamnayen
मन आँगन में जिसने आकर
ReplyDeleteचिर-प्रकाश का दीप जलाकर
नंदित कर मन का हर कोना
फिर तन्द्रा से मुझे जगाकर
मधुरित कर जो बाँध गई वो
जाने कैसी प्रीत की डोरी.......dil gadgad ho aapki is prasttuti se bahut acchha likha hai nihaar jee ...dhanyavad ....