Sunday, May 26, 2013

जिसने की निंदिया की चोरी



जिसने की निंदिया की चोरी

जिसने की निंदिया की चोरी
उसी की ढोरी, उसी की ढोरी

मन आँगन में जिसने आकर
चिर-प्रकाश का दीप जलाकर
नंदित कर मन का हर कोना
फिर तन्द्रा से मुझे जगाकर
मधुरित कर जो बाँध गई वो 
जाने कैसी प्रीत की डोरी

उसी की ढोरी, उसी की ढोरी

मन-मरू में वो विजर जान बन
अनुरक्ता बन, मेरा प्राण बन
कंटक पथ पर फूल बिछाये
आ जाती है मेरा त्राण बन
कभी मृग-वारि जैसी खेले
कभी वो गाये मीठी लोरी 

उसी की ढोरी, उसी की ढोरी

वो प्रियंकर गीत बन कर
दाह में आ शीत बन कर
खेलती रहती है मन से
एक लजीली मीत बन कर  
निभृति त्यजकर हो सन्मुख
काश! वो करती बातें थोड़ी

उसी की ढोरी, उसी की ढोरी

(निहार रंजन, सेंट्रल, २६ मई २०१३)


ढोरी = उत्कट लालसा 

17 comments:

  1. एक आग का दरिया है
    और जिद है पार करने की
    वैसी ही ये अभिव्यक्ति लगी
    क्षमा करें अगर कमेंट गलत लगे तो
    सादर

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  2. खेलती रहती है मन से
    एक लजीली मीत बन कर....
    -----------------------
    प्यार की मनभावन लोरी......

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  3. वाह ... बहुत ही बढिया

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  4. वो प्रियंकर गीत बन कर
    दाह में आ शीत बन कर
    खेलती रहती है मन से
    एक लजीली मीत बन कर
    मन को ये भाव ... जीने के लिये प्रेरित करते हैं हर पल खुशी-खुशी
    बहुत खूब

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  5. वो प्रियंकर गीत बन कर
    दाह में आ शीत बन कर
    खेलती रहती है मन से
    एक लजीली मीत बन कर ...

    जो इतना कुछ कर सके ... और कर दे ... उसकी ढोरी तो जाना भी चाहिए ...
    सुन्दर भावों की लंबी उड़ान ... लाजवाब ..

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  6. बहुत ही सुन्दर प्यार गीत,आभार.

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  7. वो प्रियंकर गीत बन कर
    दाह में आ शीत बन कर
    खेलती रहती है मन से
    एक लजीली मीत बन कर
    निभृति त्यजकर हो सन्मुख..........बहुत बढ़िया कविता।

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  8. बहुत सुंदर गीत..... उसी की ढोरी उसी की ढोरी.

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  9. मन आँगन में जिसने आकर
    चिर-प्रकाश का दीप जलाकर------

    वाह प्रेम का गजब का अहसास
    सुंदर अनुभूति
    बधाई

    आग्रह है---
    तपती गरमी जेठ मास में---

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  10. ढोरी में मुझे तो कोई श्लेष लगा था :-)

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  11. वाह बहुत सुन्दर.......गाने लायक ।

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  12. आपको पढ़कर अब बहुत शब्दों का स्पष्ट अर्थ समझ में आता है जिसे सुना तो था(ग्रामीण अंचल में) पर कभी अच्छी तरह समझने का मौक़ा नहीं मिला था . अति सुन्दर कृति ..

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  13. बहुत ही सुन्दर गीत आदरणीय ...सादर !

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  14. ek pyari rachna jise padhkar achha laga.

    shubhkamnayen

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  15. मन आँगन में जिसने आकर
    चिर-प्रकाश का दीप जलाकर
    नंदित कर मन का हर कोना
    फिर तन्द्रा से मुझे जगाकर
    मधुरित कर जो बाँध गई वो
    जाने कैसी प्रीत की डोरी.......dil gadgad ho aapki is prasttuti se bahut acchha likha hai nihaar jee ...dhanyavad ....

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