ढूँढता हूँ मैं किनारा
है अथाह सरिता,
तेज प्रवाह है
शूलों से भरी
अपनी राह है
चाहता हूँ एक तिनके का
सहारा
ढूँढता हूँ मैं किनारा
है दुनिया निर्मम
रक्त की प्यासी है
इसलिए दुनिया में
व्याप्त उदासी है
थक चुका हूँ देखकर यह नज़ारा
ढूँढता हूँ मैं किनारा
है कांटो के नगर में
फूलों का अरमान
तम-आसक्त है रजनी
कब होगा विहान
बारूद हूँ , मांगता हूँ एक
शरारा
ढूँढता हूँ मैं किनारा
(निहार रंजन, सेंट्रल,
३०-७-२०१२)
सुन्दर तलाश ...सुन्दर कविता ...!!
ReplyDeleteशुभकामनाएं ..!!
गहरी आंतरिक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteपायें एक किनारा और तर जाएँ....
ReplyDeleteकाश....
बेहतरीन !!
अनु
बारूद हूँ , मांगता हूँ एक शरारा
ReplyDeleteढूँढता हूँ मैं किनारा
vah bahut sundar ranjan ji ....abhar.
आज 23/009/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
ReplyDeleteदिल में चल रहे धमासान की प्रस्तुति !
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सभी को है तलाश शायद इस एक किनारे की ...काश मिल जाये सभी को वो एक किनारा ...
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