Sunday, September 23, 2012

ढूँढता हूँ मैं किनारा


ढूँढता हूँ मैं किनारा
है अथाह सरिता,
तेज  प्रवाह है
शूलों से भरी
अपनी  राह है
चाहता हूँ एक तिनके का सहारा
ढूँढता हूँ मैं किनारा

है दुनिया निर्मम
रक्त की प्यासी है
इसलिए दुनिया में
व्याप्त उदासी है
थक चुका हूँ देखकर यह नज़ारा
ढूँढता हूँ मैं किनारा

है कांटो  के नगर में  
फूलों का अरमान
तम-आसक्त है रजनी
कब  होगा विहान 
बारूद हूँ , मांगता हूँ एक शरारा
ढूँढता हूँ मैं किनारा

(निहार रंजन, सेंट्रल, ३०-७-२०१२)

7 comments:

  1. सुन्दर तलाश ...सुन्दर कविता ...!!
    शुभकामनाएं ..!!

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  2. गहरी आंतरिक अभिव्यक्ति...

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  3. पायें एक किनारा और तर जाएँ....
    काश....

    बेहतरीन !!

    अनु

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  4. बारूद हूँ , मांगता हूँ एक शरारा
    ढूँढता हूँ मैं किनारा

    vah bahut sundar ranjan ji ....abhar.

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  5. आज 23/009/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  6. दिल में चल रहे धमासान की प्रस्तुति !
    Latest post हे निराकार!
    latest post कानून और दंड

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  7. सभी को है तलाश शायद इस एक किनारे की ...काश मिल जाये सभी को वो एक किनारा ...

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