सोचो नदियाँ क्या कहती है!
चलती रहती वह हर क्षण
अपने पथ पर
हर तृषित का करती है
वो रसमय अधर
पावस शरद की परवाह
नहीं करती है वो
उत्तुंग शिखर से च्युत
हो आह नहीं करती है वो
बेहैफ धरा पर चाल लिए
वो अमलारा
कल-छल-कल-छल बढती
जाती उसकी धारा
निरुद्येश्य क्या वो
यूँ ही चलती है ?
सोचो नदियाँ क्या
कहती है!
हिमगिरि की अप्रतुल
सुन्दरता तज बढ़ जाती अकेली
उद्भव से अपने जीवन में
पाती है राहें पथरीली
चट्टानों से मिलते
जुलते गिरते उठते हिलते
निर्जन जंगल में नाद किये
बढ़ते चलते
कांचनार और खार से निःसंकोच
करती अभिसार
जलचर थलचर और नभचर
को देते प्यार
धरती पर हमसे मिलने आ
जाती हैं
सोचो नदियाँ क्या
कहती है!
वह नहीं मांगती मूल्य
प्यास बुझाने की
वो नहीं करती है रार
अजसी हो जाने की
ईश्वर अभिदत्त अमलता वो
लिए हुए
वर्णों योनि में बिना
कोई विभेद किये
जो बटोही आ जाता
प्यासा उसके तीर
हरदम हाजिर रहती है
वो लिए विपुल नीर
जलधि मेल को अविरत चल
बढ़ जाती है
सोचो नदियाँ क्या
कहती है!
सोचो हम तुम जीवन में
बिन त्याग किये
निश्छल, निर्लोभी हिय
बिन परमार्थ किये
अवरोधों से दुबक, छोटे
गलियारों से निकल
बिना पिये जीवन में थोड़ा
सा काराजल
सागरमाथा चढने को
रहते हम अधीर
बिन त्यग्जल तजे बने
जाते है वाग्वीर
पर नदियाँ क्या सहती
है, कुछ कहती है?
सोचो नदियाँ क्या
कहती है!
दुर्गम सी अपनी राहें
भी हो तो चलते जाओ
और जो मिले पंथ में
प्रेम उसे देते जाओ
द्वेष लिए मन में,
लिए अथाह स्वार्थ
नाहक न जियो मनुज
जीवन अपार्थ
पिया (सागर) मिलन को
इकलौता लक्ष्य मान
चलते ही रहना जीवन
में करते उत्थान
सन्देश यही देती हमे
वहती है
शायद नदियाँ यही कहती है!
(निहार रंजन,
सेंट्रल, ९ मार्च २०१३)
ॐ नाम: शिवाय ! हर-हर महादेव !!
ReplyDeleteउम्दा पसंद की अद्धभुत प्रस्तुती !!
शायद नदियाँ यही कहती है!
ReplyDeleteसचमुच यही कहती हैं
बहुत सुन्दर,शब्दों का चयन और संयोजन प्रस्तुति को उत्तम बनाता है. कविता अपने निहित भावों का वाहन करने में पूर्णतः सक्षम है.बधाई.
ReplyDeleteसादर
नीरज 'नीर'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
वह नहीं मांगती मूल्य प्यास बुझाने की
ReplyDeleteवो नहीं करती है रार अजसी हो जाने की
ईश्वर अभिदत्त अमलता वो लिए हुए
वर्णों योनि में बिना कोई विभेद किये
जो बटोही आ जाता प्यासा उसके तीर
हरदम हाजिर रहती है वो लिए विपुल नीर
जलधि मेल को अविरत चल बढ़ जाती है
सही कहा हमें प्रकृति से सीख लेनी चाहिए .....!!
दुर्गम सी अपनी राहें भी हो तो चलते जाओ
ReplyDeleteऔर जो मिले पंथ में प्रेम उसे देते जाओ
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bahut sundar niharji
दुर्गम सी अपनी राहें भी हो तो चलते जाओ
ReplyDeleteगहन..... विचारणीय भाव
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteसन्देश यही देती हमे वहती है
ReplyDeleteशायद नदियाँ यही कहती है!
गंभीर चिंतन से निकला सार्थक सन्देश. बधाई.
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.
"दुर्गम सी अपनी राहें भी हो तो चलते जाओ
ReplyDeleteऔर जो मिले पंथ में प्रेम उसे देते जाओ"
भा गया ये सन्देश। सुन्दर अभिव्यक्ति निहार भाई।
ReplyDeleteदिनांक 11/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
हलचल में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार यशवंत भाई.
Deleteआपकी पंक्तियों को पढ़कर सहसा जयदेव के गीतगोविंद की पंक्तियां याद आ गई। वसति विपिन विताने, धरणि शयने, त्यजति ललितधाम, बहुविलपति तव हरिनाम। अपने तुंग शिखरों के स्वर्ग को छोड़कर धरती पर पाप हरने जीवनदायी नदियाँ आती हैं। आभार
ReplyDeleteनदियाँ , झीलें मानव के अस्तित्व के लिए आवश्यक एवं प्रेरक है .
ReplyDeleteसुन लिया जो वे कहती है , क्या खूब कहती है !
लगा जैसे नदियाँ ही बोल रही हों ......
ReplyDeleteQuite profound, we should follow its course to face life and be a better person.
ReplyDeleteBOLTI NADIYA,DOLTI NADIYA,ZINDGI KO AAYAM DETI NADIYAN, BAHUT KHOOB.
ReplyDeleteप्रभावशाली अभिव्यक्ति ..अद्भुत और उत्कृष्ट .
ReplyDeleteपिया (सागर) मिलन को इकलौता लक्ष्य मान......very nice....
ReplyDeleteप्रकृति सदा ही हमें देती ही रहती है चाहे वह नदी हो या वृक्ष ।
ReplyDeleteनदियों के माध्यम से जीवन का सन्देश देती अनुपम रचना ...
ReplyDeletehttp://www.madhepuratoday.com/2013/03/4.html
ReplyDeleteमधेपुरा टुडे में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
Deleteअविरल बहने का अप्रतिम सन्देश
ReplyDeleteकितनी सीख दे जाती है नदी की धारा!
ReplyDeletesaral shabdo mai behtrin post -***
ReplyDeleteप्रकृति तो हमेशा ही देना जानती है ...मानव ही सीखने से परहेज़ करता चलता है .....प्रेरणाप्रद रचना
ReplyDeleteआपके स्वागत के इंतज़ार में ...
स्याही के बूटे
कलकल करती नदियाँ बहुत कुछ सीखाती हैं हमें
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक रचना
साभार !
संदेशपूर्ण अभिव्यक्तिपूर्ण
ReplyDeleteबड़ी प्यारी रचना है ...
ReplyDeleteबधाई !
सुन्दर रचना..
ReplyDeleteatayant sundar rachna Nihar ji.
Deleteबकुल जी, ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया. आपसे एक युग सा हो चुका है संवाद हुए. जहां तक मुझे याद आ रहा है शायद आपका भी कोई ब्लॉग है. मैंने कहीं आपकी एक दो कवितायें पढ़ी थी. कृपया अपने ब्लॉग का पता दीजिये.
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