जा चकोर!
फिरते रहो
इस छोर से उस
छोर
विरह वेदना में
बहाते रहो नोर
हर्ष के तर्ष में
करते रहो लोल खोल
ह्रदय से किलोल
लगाये हो जिससे प्रीत
ठहरा वो दिवा–भीत
पर हुए जो तुम
प्रेमांध
हद की सीमायें लांघ
कहाँ तुम्हे हुआ गिला
कहाँ तुम्हे वक़्त
मिला
पूछ लेते एक बार
क्यों हुआ वो दागदार
तुम बेकल जिन आस में
वो कहीं भुज-पाश में?
मत जियो कयास में
लाओ कान पास में
मैं सुनाता हूँ
तुम्हे
क्या कहा व्यास ने
लेने ब्रम्हा का आशीष
तारा ने झुकाया शीश
पर ब्रम्हा जी भांप
गए दुःख
शब्द ये निकला उनके
मुख
लज्जा से कांपो ना कन्या
कैसे हुई तुम विजन्या?
फिर नीति का पाठ
पढ़ाकर
व्यभिचार का अर्थ
बताकर
स्वर्ग नर्क का भेद
सुनाकर
प्रक्षालन आश्वासन
देकर
राजी तारा को कर डाला
तब जा के तारा ने सुनाया
श्वेत चन्द्र का कर्म
वो काला
थी निकली तारा की आह
जिसके थे कितने गवाह
आत्मा तक हो वो छलनी
बनी भुरुकवा
की वो जननी
हुई ना तारा पाप की
भागी
चन्द्र बना आजन्म का
दागी
आ चकोर! आ चकोर!
सुना होगा जभी जागो
तभी भोर
मेरी नहीं दुश्मनी
उससे
मेरी शिकायत है कुछ
और
जान कहानी वेदव्यास
से
अब तो मोह-भंग कर
डालो
हो मुक्त उस आकर्षण
से
कल की विपदा से बचा
लो
ये मत सोचो ये सब कह
कर
क्यों मैं तुम्हे
सताता हूँ
नीति की बात पढ़ी थी
मैंने
वो मैं तुम्हे बताता
हूँ
छलिया को ना अंक भरो
उससे बेहतर तंक मरो
(निहार रंजन,
सेंट्रल, १३ जून २०१३)
नोर = आँसू
लोल = चोंच
भुरुकवा = सुबह का
तारा (बुध)
bahut sundar kriti,... nor ya lor, bhurukwa adi anchlik shabdo ka bahut sundar prayog.
ReplyDeleteवाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति....
ReplyDeleteबेमिसाल रचना
सुन्दर आंचलिक शब्दों से सजा बढ़िया पोस्ट ...काफी अलग से भाव...
ReplyDeleteचन्द्र कलंकित फिर भी चकोर की उत्कट चाह मिलन की
ReplyDeleteकर रहा है आगाह कवि पाकर अपनी छाया चकोर में
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteपर चकोर मानने वाला कहाँ है ...
एक सुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteचकोर को क्या मतलब उन दागों से ... उसका प्रेम तो कम नहीं होता ...
ReplyDeleteनीर भी नहीं होते कम ...
आपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 23/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
इस पोस्ट को हलचल में शामिल करने के लिए धन्यवाद यशवंत भाई.
Deleteसुंदर और बढ़िया
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteप्रेम तो अवगुणों को अनदेखा कर देता है. एक सुंदर भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteकोमल भावो की अभिवयक्ति .....
ReplyDeletebehtareen rachna
ReplyDeleteबहुत बार पढ़ा ....अब टिप्पणी दे रही हूँ ....बहुत सुंदर और अद्भुत रचना है ....संग्रहणीय ....!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. कोमल भावो की अभिवयक्ति .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. बहुत खूब ...
ReplyDeletepranay ka udgar ko rekhankit krati rachana adbhud lagi
ReplyDeleteये विकलता भी तो उसी से संभलता है , अनदेखे अगन में पिघलता है और उसी के लिए मचलता है ..
ReplyDeleteभावों की अद्भुत अभिव्यक्ति...लाज़वाब रचना...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDelete:-)
सुन्दर...अति सुंदर...!
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteलाजवाब रचना!! बहुत ही सुंदर कई बार पढ़ा .
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना आप ने लिखी हम ने पढ़ी बहुत अच्छा लगा आज आप के ब्लॉग पर आ कर ,
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना आप ने लिखी हम ने पढ़ी बहुत अच्छा लगा आज आप के ब्लॉग पर आ कर ,
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण कविता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....कविता में पुराण कहानी भी कह डाली है
ReplyDeleteकितना भी कहो लेकिन चकोर का चाँद के प्रति, प्रीत का आकर्षण
कम नहीं होता !
शब्द, भाव सभी सुन्दर लगे !
वाह क्या बात कही है ... आपने इन पंक्तियों में अनुपम भाव लिये उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर कृति ।
ReplyDeleteपर चकोर कहता है कि लागी छूटेना ।
atiutam-***
ReplyDeleteछलिया को न अंक भरो ....
ReplyDeleteपौराणिक कथा को कवित्त रूप में पढना अच्छा लगा !