हर सुबह
देखता था सामने
धवल शिखरों की
अनुपम सुन्दरता
उसपर भोर की
मनोहर पीली किरण
उसका वो
शांत सौम्य रूप
ललचाता था
उसपर जाने को
उसकी सुन्दरता को
करीब से महसूस करने
को
उसकी उपत्यकाओं में
खुद के प्रतिध्वनित
शब्दों का संगीत
सबको सुनाने को
उसी के शिखरों पर
सदा रच बस जाने को
उसमे तृप्त हो
जीवन जीने के लिए
लेकिन आज
उन्हीं शिखरों से
उठ रहा है धुआं
उसकी गहरी घाटियों
में
सुन रहा हूँ
भूगर्भ का
प्रलयंकारी निनाद
चारों तरफ मची है
अफरातफरी लोगों में
लेकिन उसका लावा
बेपरवाह बढ़ रहा है
लीलने की लीला दिखाने
अपना असली रूप दिखाने
कहाँ गए वो
हिमाच्छादित चोटियाँ
कहाँ है उनका सौंदर्य
मुग्ध करनेवाला
शायद मेरी आँखों पर
परत चढ़ी थी
या मेरे मूढ़ मन की
सहज अदूरदर्शिता
सच ही कहा है लोगों
ने
हर आकर्षक चीज
अच्छी नहीं होती
(निहार रंजन, सेंट्रल, ४ जून २०१३ )
या मेरे मूढ़ मन की
ReplyDeleteसहज अदूरदर्शिता.......
-----------------
पल-पल बदलती हुई दुनिया में सामने दिखने वाली हर आकर्षक चीज अच्छी नहीं होती...भ्रम में जीना तो हमारा सहज स्वभाव है..न चाहते हुए भी ...बढ़िया पोस्ट ..
सच हर आकर्षक चीज अच्छी हो जरुरी नहीं अच्छी अभिव्यक्ति...!
ReplyDeleteएक दर्द है कुछ यादें हैं
ReplyDeleteपरिवर्तन संसार का नियम है और उसके लिए दो दिशाएँ हैं ...........
अच्छी रचना निहार जी
सही है ..
ReplyDeleteबधाई अच्छी रचना के लिए !
दिल को छूती रचना ...
ReplyDeleteसही कहा हर चमकने वाली चीज़...........
ReplyDeleteकहाँ गईं वो हिमाच्छादित चोटियाँ.......आपके आंखों को कोई भ्रम नहीं हुआ। प्रकृति के दोहन ने ऐसी विकराल परिस्थितियां उत्पन्न कर दी हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण कारक प्रकृति की अवहेलना हमें आनेवाले दिनों में कहीं का नहीं छोड़ेगी।
ReplyDeleteलेकिन एक उम्मीद तो होती है कि फिर आकर्षक-सी दिखने लगे और आँखें फिर ठहर जाए .
ReplyDeleteसच ही कहा है लोगों ने
ReplyDeleteहर आकर्षक चीज
अच्छी नहीं होती
......अच्छी रचना निहार जी जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
प्रकृति को हम मनुष्यों ने दर्द ही दिया है अपनी तरफ से
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
साभार!
समय समय की बात है ...बुरी को अच्छी होने मे देर नहीं जगाती ....!!
ReplyDeleteसुन्दर रचना ....!!
वाह! बहुत ही सुन्दर. हम नहीं चेते तो विनाश निश्चित है..
ReplyDeleteअच्छाई और बुराई एक ही सिक्के के दो पहलू हैं अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा बनाने के उदाहरण भी हैं. सुंदर भावपूर्ण कविता.
ReplyDeleteजिंदगी के रसायनों पर अनुसन्धान जारी रखें.
प्रकृति से खिलवाड़ पता नहीं क्या क्या रूप दिखायेगा...बहुत प्रभावी रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteमानव ने अपने स्वार्थ के चलते .. प्राकृति में इतना परिवर्तन कर दिया है .. की अब जलने लगा है जंगल और पहाड़ भी ..
ReplyDeleteप्रभावी रचना है ...
भ्रम टूटा -बेहतरीन रचना
ReplyDelete