Tuesday, June 4, 2013

दृग-भ्रम

हर सुबह
देखता था सामने
धवल शिखरों की
अनुपम सुन्दरता
उसपर भोर की
मनोहर पीली किरण
उसका वो
शांत सौम्य रूप  
ललचाता था  
उसपर जाने को
उसकी सुन्दरता को
करीब से महसूस करने को
उसकी उपत्यकाओं में
खुद के प्रतिध्वनित
शब्दों का संगीत
सबको सुनाने को
उसी के शिखरों पर
सदा रच बस जाने को
उसमे तृप्त हो
जीवन जीने के लिए

लेकिन आज   
उन्हीं शिखरों से
उठ रहा है  धुआं
उसकी गहरी घाटियों में  
सुन रहा हूँ
भूगर्भ का
प्रलयंकारी निनाद
चारों तरफ मची है
अफरातफरी लोगों में
लेकिन उसका लावा
बेपरवाह बढ़ रहा है
लीलने की लीला दिखाने  
अपना असली रूप दिखाने

कहाँ गए वो
हिमाच्छादित चोटियाँ
कहाँ है उनका सौंदर्य
मुग्ध करनेवाला
शायद मेरी आँखों पर
परत चढ़ी थी
या मेरे मूढ़ मन की
सहज अदूरदर्शिता
सच ही कहा है लोगों ने
हर आकर्षक चीज
अच्छी नहीं होती

(निहार रंजन, सेंट्रल, ४  जून २०१३ )

    

17 comments:

  1. या मेरे मूढ़ मन की
    सहज अदूरदर्शिता.......
    -----------------
    पल-पल बदलती हुई दुनिया में सामने दिखने वाली हर आकर्षक चीज अच्छी नहीं होती...भ्रम में जीना तो हमारा सहज स्वभाव है..न चाहते हुए भी ...बढ़िया पोस्ट ..

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  2. सच हर आकर्षक चीज अच्छी हो जरुरी नहीं अच्छी अभिव्यक्ति...!

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  3. एक दर्द है कुछ यादें हैं
    परिवर्तन संसार का नियम है और उसके लिए दो दिशाएँ हैं ...........

    अच्छी रचना निहार जी

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  4. सही है ..
    बधाई अच्छी रचना के लिए !

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  5. सही कहा हर चमकने वाली चीज़...........

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  6. कहाँ गईं वो हिमाच्छादित चोटियाँ.......आपके आंखों को कोई भ्रम नहीं हुआ। प्रकृति के दोहन ने ऐसी विकराल परिस्थितियां उत्‍पन्‍न कर दी हैं। सबसे महत्‍त्‍वपूर्ण कारक प्रकृति की अवहेलना हमें आनेवाले दिनों में कहीं का नहीं छोड़ेगी।

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  7. लेकिन एक उम्मीद तो होती है कि फिर आकर्षक-सी दिखने लगे और आँखें फिर ठहर जाए .

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  8. सच ही कहा है लोगों ने
    हर आकर्षक चीज
    अच्छी नहीं होती
    ......अच्छी रचना निहार जी जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ

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  9. प्रकृति को हम मनुष्यों ने दर्द ही दिया है अपनी तरफ से
    बेहतरीन रचना
    साभार!

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  10. समय समय की बात है ...बुरी को अच्छी होने मे देर नहीं जगाती ....!!
    सुन्दर रचना ....!!

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  11. वाह! बहुत ही सुन्दर. हम नहीं चेते तो विनाश निश्चित है..

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  12. अच्छाई और बुराई एक ही सिक्के के दो पहलू हैं अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा बनाने के उदाहरण भी हैं. सुंदर भावपूर्ण कविता.

    जिंदगी के रसायनों पर अनुसन्धान जारी रखें.

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  13. प्रकृति से खिलवाड़ पता नहीं क्या क्या रूप दिखायेगा...बहुत प्रभावी रचना...

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  14. बहुत सुन्दर रचना ..

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  15. मानव ने अपने स्वार्थ के चलते .. प्राकृति में इतना परिवर्तन कर दिया है .. की अब जलने लगा है जंगल और पहाड़ भी ..
    प्रभावी रचना है ...

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  16. भ्रम टूटा -बेहतरीन रचना

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