Saturday, June 15, 2013

हे मान्यवर!

हे मान्यवर!
मैंने कब कहा
मैं पापी नहीं हूँ
लेकिन स्वर्ग की चाह नहीं है मुझे
नर्क का भय नहीं है मुझे 
मैं स्वर्ग-नर्क से ऊपर उठ चुका हूँ
इसलिए मुझे माफ़ कर दो
रसायनों से तृप्त हैं मेरे रोम-रोम
मुझे उसी में रमने दो
उसी में जीने
उसी में मरने दो
लेकिन स्वर्ग- नर्क के द्वार मत दिखाओ

हे मान्यवर!
अगर मेरा कोई पाप है
तो मैं पाप की सारी सजा
अपने सर लूँगा
कांटो पर सोऊंगा
गरम तेल में तल जाऊँगा
ओखल में कुट जाऊँगा
लेकिन मैं पाप नहीं धुलवाउंगा
क्योंकि मुझे निर्वाण
सजायाफ्ता होकर ही मिलेगा
मुझे स्वर्ग का रास्ता मत दिखाओ 

हे मान्यवर!
मैं शिव का पुजारी हूँ
रावण के शिवतांडवस्त्रोतम का
रोजाना पाठ करता हूँ
बाली का गुणगान करता हूँ
राम की कई गलतियां देखता हूँ 
कृष्ण के गीत गाता हूँ
नर्क के भय से नहीं
बस इसलिए कि
ये सब करना मुझे अच्छा लगता है
इसलिए मुझे मुक्ति का मार्ग
मत दिखाओ

हे मान्यवर!
मैंने किसी का
अहित नहीं किया
किसी के घी का
घड़ा नहीं फोड़ा
किसी के सिर पर
ईंट नहीं तोड़ा
लेकिन आपने महाराज
पापी ही माना है तो
आपका हुक्म स्वीकार
लेकिन ये मोल-तोल नहीं
स्वर्ग जाने के लिये

हे मान्यवर!
इस देह में
अच्छाई है, बुराई है
प्रेम है, क्रोध है
लोभ है, त्याग है
लेकिन प्रक्षेपित हो कर
शिखर जाने की इच्छा नहीं  
मुझे सीढ़ी दर सीढ़ी
चढ़ना, गिरना, 
उठना, संभलना
अच्छा लगता है
इसलिए अपनी उर्जा बचाओ
गला ही खखासना है
तो मेरे साथ
‘कान्हा करे बरजोरी’ गाओ
नहीं तो मेरे रसायनों के साथ
घुल-मिल जाओ
मगर मुझे स्वर्ग का रास्ता मत दिखाओ!


(निहार रंजन, सेंट्रल, ११ जून २०१३)

20 comments:

  1. सही कहा है ..सहज रूप से तो हर क्षण अभी और यहीं जीवन है ..सांस लेता हुआ.. प्रलोभनों पर इस क्षण को जाया करना मूर्खता ही तो है..

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  2. सुंदर लिखा आपने निहार जी
    मेरे ब्लॉग पर भी आयें और अपने विचार दें धन्यवाद

    mozilla firefox की ब्राउज़िंग की स्पीड बढाएं इस ट्रिक से

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  3. बहुत सुन्दर भाव प्रस्तुत किये हैं , जीवन जीने का ढंग से अपने विवेक से ही निर्णय करना व्यक्तित्व और सोच को उजागर करता है .

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  4. आपके पोस्ट को पढ़ कर सोच में हूँ ....
    ऊपरवाला भी सोच में जरूर होगा ....
    आपने तो चुनौती दे डाली ....

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  5. हे मान्यवर!
    इस देह में
    अच्छाई है, बुराई है
    प्रेम है, क्रोध है
    लोभ है, त्याग है
    लेकिन प्रक्षेपित हो कर
    शिखर जाने की इच्छा नहीं
    मुझे सीढ़ी दर सीढ़ी
    चढ़ना, गिरना,
    उठना, संभलना
    अच्छा लगता है

    सही कहा ...सहज भाव से जीवन जीना चाहिए ....

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  6. हे मान्यवर!
    अगर मेरा कोई पाप है
    तो मैं पाप की सारी सजा
    अपने सर लूँगा
    कांटो पर सोऊंगा
    गरम तेल में तल जाऊँगा
    ओखल में कुट जाऊँगा
    लेकिन मैं पाप नहीं धुलवाउंगा
    क्योंकि मुझे निर्वाण
    सजायाफ्ता होकर ही मिलेगा
    मुझे स्वर्ग का रास्ता मत दिखाओ------

    वाह भाई जी कितनी सहजता से वर्तमान के सच को उजागर
    कर दिया है
    अदभुत रचना
    सादर

    आग्रह है- पापा ---------

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  7. . बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी . आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?

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  8. जो ही है बस यही इक पल है ...
    सच ही तो है ... भ्रह्म की स्थिति में समय खराब करने से अच्छा जीना है ... जो है को छोड़ के जो नहीं के पीछे जाने का क्या मतलब ...

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  9. सुंदर भाव. यदि पाप किये हैं तो सजा भी कबूल है. लेकिन भय में क्यों जीना.

    बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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  10. मुझे सीढ़ी दर सीढ़ी
    चढ़ना, गिरना,
    उठना, संभलना
    अच्छा लगता है

    सही कहा ..
    बहुत सुन्दर भाव प्रस्तुत किये हैं ,

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  11. सुंदर और सार्थक भाव .....!!!!

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  12. लेकिन प्रक्षेपित हो कर
    शिखर जाने की इच्छा नहीं
    मुझे सीढ़ी दर सीढ़ी
    चढ़ना, गिरना,
    उठना, संभलना
    अच्छा लगता है

    ....बहुत सार्थक चिंतन और सोच....सदैव की तरह बहुत प्रभावी प्रस्तुति...

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  13. बहुत सुन्दर निहार भाई........सहजता ही जीवन है भय या लोभ से स्वर्ग नहीं मिलने वाला।

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  14. सिर्फ सहज भाव से मुझे जीने की आदत दो और दिल से इसकी इजाजत दो....
    देर से टिप्पणी के लिए माफ़ी..

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  15. Thought provoking. These lines are the best, 'बस इसलिए कि
    ये सब करना मुझे अच्छा लगता है'

    We are doing it not for fear of bad but we want to. Concluding verse is just apt.

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  16. रसायनों से बनी है सारी सृष्टि, सहज भाव से अपने काम किये जाने में भी मुक्ति है, ऐसा गीता में भगवान् ने कहा है. बहुत सुंदर रचना

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  17. स्वर्ग से ऐसा विमोह :-)

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  18. शिखर जाने की इच्छा नहीं
    मुझे सीढ़ी दर सीढ़ी
    चढ़ना, गिरना,
    उठना, संभलना
    अच्छा लगता है

    वाह कितनी अच्छी बात कही ।और रसायन कितने महत्वपूर्ण हैं हमारे जीवन में ।

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