ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
हर्ष हो, उल्लास हो
गुम हुआ उजास हो
पर्ण-पर्ण हों नवीन
या जगत हो प्रलीन
हम तो बस प्यादे हैं
कदम-कदम बढ़ना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
प्रलय यूँ ही आएगा
प्रलय यूँ ही जाएगा
बन्धु साथ आयेंगे
फिर वो छूट जायेंगे
यही रीत चलती आई
आह हमें भरना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
कहाँ हमें शक्ति इतनी
रोक लें तूफ़ान को
कहाँ हमें जोर इतना
बाँध लें उफान को
नियति निर्णायक है
बुझना कि जलना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
कर्म सारे पाक थे
सत्य लिए डाक थे
उसके निर्मम खेल से
सब के सब अवाक थे
सदियों से वही उलझन
है
सबको ही उलझना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
धार में घिरे निरीह
काल कर में फंसे
दे आघात वो चले
प्राण में जो थे बसे
प्रत्यागत हुआ कौन
क्रूर बहुत बिधना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
उठाकर गिरा देना
बनाकर मिटा देना
छिपाकर बता देना
दिखाकर छुपा लेना
सारा उसका व्यूह है
सबको ही गुजरना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
किस पर रोऊँ आज
भग्न तार, भग्न साज़
सर्वत्र उज्जट, सर्वत्र
ध्वंस
सर्वत्र नाग का है दंश
तिल-तिल ही जीना है
तिल-तिल ही मरना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
हों समर्थ मेरे हाथ
तो बारहा बहार हो
ख़ुशी बसे आँखों में
ना कि अश्रु-धार हो
मेरी मगर कौन सुने
करता वो, जो करना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
सब हुए है मनोहंत
विकल हरेक प्राण है
है व्यथा पहाड़ सा
आसान नहीं त्राण है
और कुछ बचा नहीं
खुद से फिर संभलना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
(निहार रंजन,
सेंट्रल, २६ जून २०१३)
behad sundar,,,
ReplyDeleteज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
और हमें उसको चलते हुए केवल देखना है . ऐसी बेबसी है ..मर्म को स्पर्श करती हुई सुन्दर रचना..
ReplyDeleteजिंदगी तो ऐसे ही निर्बाध चलती रहती लेकिन राह में तमाम ऊँचे नीचे पड़ाव आते रहते हैं.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
होए वही जो राम रची राखा.. फिर क्या करना है.. जिंदगी को हर कीमत पर चलना है लाजवाब रचना... !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर……बढिया .. जिंदगी को हर कीमत पर चलना है लाजवाब रचना... !!
ReplyDeleteहों समर्थ मेरे हाथ
ReplyDeleteतो बारहा बहार हो
ख़ुशी बसे आँखों में
ना कि अश्रु-धार हो
मेरी मगर कौन सुने
करता वो, जो करना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
एक बेबसी तो है मन मेँ......नियति के सामने प्रकृति भी बेबस है ....किन्तु जो हो चुका है वो तो अमिट है ....सच कहा आपने ....
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
बहुत सुंदर रचना .....
ज़िंदगी तो चलती ही है .... बहुत सुंदर शब्दों में बांधा है अपने भावों को ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार ।
ReplyDeleteवाह क्या खूब प्रलेप किया जलप्रलय पर
ReplyDeleteपढ़कर अन्दर तक भीगा इन पंक्तियों पर...........बहुत ही सुन्दर गीत।
ज़िन्दगी का क्या है
ReplyDeleteज़िन्दगी को चलना है
सच में
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
अन्तर्मन को छू गई आपकी रचना ....ज़िन्दगी तो चलती ही जाएगी .....मर्मस्पर्शी ...!!!
ReplyDeletejindgi baya karti rachna.....
ReplyDeleteकवि के उद्गार!
ReplyDeleteध्वंस के बाद सृजन का इंतज़ार
सब हुए है मनोहंत
ReplyDeleteविकल हरेक प्राण है
है व्यथा पहाड़ सा
आसान नहीं त्राण है ..
हर छंद में एक सच्चाई है ... और अंत भी एक सच्चाई है की जिंदगी को चलना है ... शायद इसी का नाम जिंदगी है ... भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
सब हुए है मनोहंत
ReplyDeleteविकल हरेक प्राण है
है व्यथा पहाड़ सा
आसान नहीं त्राण है
और कुछ बचा नहीं
खुद से फिर संभलना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
.....एक प्रेरणा जीवन को चलने की...हरेक पंक्ति एक सचाई को अभिव्यक्त करती...बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteमन को छूती हुई
जीवन के सार्थक सृजन की अनुभूति
बधाई
With such an array of ups and downs, we have to keep going. Each verse sounds so true.
ReplyDeleteLovely!! One can create a filmi song with these meaningful words! I loed these lines very much
ReplyDeleteउठाकर गिरा देना
बनाकर मिटा देना
छिपाकर बता देना
दिखाकर छुपा लेना
सारा उसका व्यूह है
सबको ही गुजरना है
keep writing :)
ReplyDeleteसब हुए है मनोहंत
विकल हरेक प्राण है
है व्यथा पहाड़ सा
आसान नहीं त्राण है
और कुछ बचा नहीं
खुद से फिर संभलना है
ज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
वाह.सुन्दर प्रभावशाली ,भावपूर्ण ,बहुत बहुत बधाई...
सही कहा चलने का नाम ही जिंदगी है । बढ़िया प्रस्तुति।
ReplyDeleteयह जीवन है ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
खुद से फिर संभलना है
ReplyDeleteज़िन्दगी का क्या है
ज़िन्दगी को चलना है
वाह.सुन्दर बहुत सुन्दर मनभावन रचना ...
:-)
ज़िन्दगी चलती रहेगी, त्रासदियाँ आएँगी-जाएँगी, जो बाख जायेंगे- वो फिर आगे बढ़ेंगे .. बात तो सही है निहार भाई, मनुष्य की इतनी क्षमता कहाँ कि इन बलाओं को थाम सके! संवेदनाएं हैं, क्षोभ भी। मगर अक्सर लगता है कि हमारी ही फितरत है अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेना, वर्ना मिलकर स्वर्ग तो हम भी बना सकते थे।
ReplyDelete(बहुत दिनों बाद पढना हो पाया ब्लॉग, अच्छा लगा .. कुछ कारणों से ब्लॉग्गिंग नहीं कर पा रहा था नियमित)..
बहरहाल, सुन्दर शब्द-संचयन के साथ इस खूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
प्रवाहमयी और चिंतनशील अभिव्यक्ति
ReplyDeleteनासमझों के लिए अच्छी चीज भी बेकार हो जाती है लेकिन एक कलाकार बेकार चीज को भी अपनी कला से अर्थपूर्ण बना देता है ...जिंदगी भी ऐसी ही है कैसे जीया जाय निर्णय हमारे हाथ में है ! सार्थक भाव ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना आपकी इस उत्कृष्ट रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (08.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
ReplyDeleteबेहतरीन...बधाई...
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