फिर वही, संध्या सुंदरी है
फिर वही, कुसुम-निढाल चंचरी
है
फिर वही, मनमोही अरुणाभा है
फिर वही, वादियों में तिमिर
जागा है
फिर वही, क्षितिज में व्याप्त
तन्हाई है
शाम घिर आई है
फिर वही, रिक्त आकाश है
फिर वही, अभ्रित-भास है
फिर वही, पक्षी-दल उड्डीन
हैं
फिर वही, घर लौटने सब लीन
हैं
फिर वही, रिझाती शाद्वल-खाई
है
शाम घिर आई है
फिर वही, भयद नीरवता है
फिर वही, तनु तुहिन मन रमता
है
फिर वही, शीत की दुश्वारी
है
फिर वही, नील नभ क्लम-हारी
है
फिर वही, चतुर्दिक शान्ति
छाई है
शाम घिर आई है
फिर वही, सड़क पर कोई भुट्टा
बेचती है
फिर वही, निर्दयी हवा उसका
तन बेधती है
फिर वही, किसी का हाथ खाली
है
फिर वही, उजाला है, बदहाली
है
फिर वही, ऊपर वादियाँ हैं,
रानाई है
फिर वही, नीचे नंगी सच्चाई
है
शाम घिर आई है
(निहार रंजन, सेंट्रल, ६
जनवरी २०१४ )
(वादियों में नए साल के प्रथम सूर्यावसान की बेला )
(वादियों के नीचे रात के आगोश में जाती संध्या)
साल के पहले और छठवें दिन का फर्क है भाई...नव वर्ष का आग़ाज़ उम्मीदों से फिर वही शाम का शुबहा...
ReplyDelete" फिर वही, चतुर्दिक शान्ति छाई है
ReplyDeleteशाम घिर आई है "
कविता शाम को उकेरती गयी...
संध्या बेला की नीरवता को खूब लिखा!
Nice clicks as well...!
Wishing you a creative and successful 2014!
फिर सुबह होगी..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, जब मन खली हो तो सर्दियों की शाम बहुत खलती है .. अच्छी रचना ..
ReplyDeleteफिर वही, रिक्त आकाश है
ReplyDeleteफिर वही, अभ्रित-भास है
उत्कृष्ट भाव व सुंदर अभिव्यक्ति व चित्र भी लाजवाब ....जैसे उड़ते पंछी नीड़ की ओर ....
उत्कृष्ट भाव व सुंदर अभिव्यक्ति व चित्र भी लाजवाब .....
ReplyDeleteजीवन में उजास ही उजास हो ...
फिर वही, सड़क पर कोई भुट्टा बेचती है
ReplyDeleteफिर वही, निर्दयी हवा उसका तन बेधती है....... खूब बहुत...सुन्दर रचना .....
ढ़लते हुए शाम का का सुंदर अभिव्यक्ति.... बहुत सुंदर ....!!
ReplyDeleteसंध्या सुंदरी का रूप अति मनभावन है। अति सुंदर रचना के लिए बधाई....
ReplyDeleteसंध्या का मनभावन चित्रण..... लेकिन आखिरी बंद की मार्मिकता हृदय में टीस जगाती है आपका शब्दज्ञान भी नमन योग्य है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर किन्तु प्रकृति उस "फिर वही "दुहाराएगी |
ReplyDeleteनई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट लघु कथा
फिर फिर तो वही है, तो फिर नया क्या है......शायद आशाएं! शुभकामनाएं।
ReplyDeleteवाह बहुत ही शानदार |
ReplyDeleteभावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeletewah kya bat hai .........sab kuchh vahi
ReplyDeletebahut hi sundar likha hai apne ......sb kuchh vahi hai fir bhi sal to naya hai na .....Happy New Year
ReplyDeleteकल 10/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत खूब .. शाम के हर मंज़र को उसके अनेक शेड्स को शब्दों में उतारने का लाजवाब प्रयास है ये रचना ... नव वर्ष मंगलमय हो ..
ReplyDeleteतारीखें बदल जाने से ज़िंदगी नहीं बदलती...फिर वही रात है ख्वाबों की....लेकिन फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है शायद कुछ नया हो ...नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteभावपूर्ण सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबहुत खूब ! संध्या के प्राकृतिक एवँ सांसारिक हर रंग को बखूबी समेटा है आपने रचना में ! तस्वीरें भी पूरक हैं हर भाव की ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteशाम घिर आई है
ReplyDeleteगीत की बेला आयी :)
बहुत सुन्दर भाव भरी रचना
और चित्र भी बहुत सुन्दर है !
फिर वही, शीत की दुश्वारी है
ReplyDeleteफिर वही, नील नभ क्लम-हारी है
फिर वही, चतुर्दिक शान्ति छाई है
शाम घिर आई है
....दिल को छूते अहसास और उनका अद्भुत प्रभावी चित्रण...
utam
ReplyDeleteविडंबनाएं बार बार उभरती हैं दृग क्षेत्र में!
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