Tuesday, January 14, 2014

लिखना है मुझे

जानता हूँ कि एक दिन  
समय के साक्षी ये सारे शब्द
जो लिखे हैं मुक्त या छंदबद्ध  
कभी मस्ती में डूब कर
कभी अपनी पीड़ा से ऊब कर  
गुम हो जाएंगे एक दिन, मेरी तरह
फिर भी लिखता हूँ
कि लिखना है मुझे  

समय का चाक घूमता रहेगा
नयी भाषाएँ जन्म लेती रहेंगी
शील और अश्लील के नए अर्थ होंगे
न्याय और अन्याय की नयी व्याख्या होगी
आज की हर नयी चीज पुरानी होगी
जीवन से नयी अपेक्षाएं होंगी
प्रगतिवाद, पुरातनवाद, छायावाद, प्रयोगवाद
इन सारे रूपों से दूर कविता
किसी नए रूप में जन्म लेगी
और ये सारे शब्द
हड़प्पा की लिपि की तरह
नहीं पायेंगे कुछ कह

लेकिन आनंद के दो क्षण के लिए
पल भर बंधनहीन मन के लिए
वेदना से नैमिष अवकाश के लिए
मन के अंध में अवभास के लिए
कभी एकांत अश्रु-स्यंदन के लिए
कभी निर्जीव से तन में स्पंदन के लिए
किसी अबोल की व्यथा के लिए
दागी चाँद की कथा के लिए
यौवन-प्रसूत दंभ के लिए
अरुचिकर अनुभवों पर उपालंभ के लिए
कभी प्रकृति से मुग्ध होकर
कभी अंधी दौड़ से क्षुब्ध होकर
लिखता हूँ, कि लिखना है मुझे   


(निहार रंजन, सेंट्रल, १४ जनवरी २०१४)

23 comments:

  1. सृजन ईश्वर की अनुकंपा है
    अनवरत चलता रहे, सुन्दर रचना, सुन्दर शब्द,भाव संयोजन !

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  2. लिखना ज़रूरी है... कि स्वयं से संवाद की सम्भावना सदैव बनी रहे...!

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  3. कल 16/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  4. सार्थक भाव सुन्दर कविता .....

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  5. Ye nadi aviral bahti rahe yahi kamna karta hoon mai---

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  6. ये जिजीविषा ही विजिगीषा है..शुभकामनाएं..

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  7. वाह!! वाकई लिखना अपने आप में एक आत्म संतोष जैसा होता है। सार्थक भाव अभिव्यक्ति। लिखते रहिए शुभकामनायें...

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  8. प्रकृति से मुग्‍ध होंगे तो वह लिखाएगी ही। अन्‍धी दौड़ से प्रताड़ित होंगे वह भी लिखाएगी ही। तो क्‍या बुरा है। अच्‍छा है चलते रहें। अपने बहाने व्‍यापक सन्‍दर्भ उजागर करती कविता।

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  9. परिवर्तन नियम है और सत्य भी इसीलिए सभ कुछ सुन्दर है .... बहुत सुन्दर रचना

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  10. चलते जाना शब्दों के संग मेरी प्रवृत्ति है ...
    लिख लिख कर अभिव्यक्त होना अब मेरी नियति है ......
    बहुत सुंदर उद्गार मन के .....

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  11. प्रकृति के नियम है बदलाव और वो तो सतत चलते रहते....!!!
    काफी उम्दा रचना....बधाई...
    नयी रचना
    "जिंदगी की पतंग"
    आभार

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  12. हड़प्पा की लिपि की तरह
    नहीं पायेंगे कुछ कह......वाह!!!
    बिना फल की कामना किये कर्म करते रहना व जीवन को संतोष पूर्ण ढंग से जीना ही वास्तविक उपलब्धि है

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  13. सत्य तो यही है परिवर्तन प्राकृतिक नियम है ,आज जो कुछ जिस रूप में है कल किसी दुसरे रूप में होंगे ...आज का शब्द भी मूक हो जायेंगे ......बहुत सुन्दर भाव !
    मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
    नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
    नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !

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  14. मन के भावों को बहा देने का आनंद अनुपम है ... भविष्य किसने देखा है ....

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  15. कभी प्रकृति से मुग्ध होकर
    कभी अंधी दौड़ से क्षुब्ध होकर
    लिखता हूँ, कि लिखना है मुझे
    ...बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रवाहमयी प्रस्तुति...

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  16. तेरा लिखना ही तेरी जीत है...सब दुनियावी बातों से परे...

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  17. कवि लिखता है तभी वह जीता है -अपने ऐंद्रिय -अतीन्द्रिय लोक में है!
    लिखते रहे अनवरत अक्षुण और अहर्निश!

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  18. बहुत सुंदर ... भाव संयोजन... !

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  19. सब माया है, लेकिन अभी तो है ...

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  20. अति सुन्दर । लिखना सृजन करना है और इसमें अपरिसीम आनंद है |

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  21. जो लिखा जाये, वह गुम नहीं होता
    कोई सन्नाटे सा चेहरा उसे पढता जाता है

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  22. लिखना एक बाध्यता है...लेखक के लिये...खुश हो चाहे...दुखी...अति सुंदर...

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  23. लिखने से बेहतर सकून कहाँ??
    बहुत सुन्दर काव्य रचना

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