फिर उसी आनंद की तलाश में
लौट आया हूँ पिया के पाश
में
कब कौन जी से चाहता,
पिया से दूर जाना
और पिया बिन
हो वियोगी, कविता बनाना
पर ये जीवन, हाय निर्मम!
कभी हमसे पूछ पाता
है कोई स्नेही,
जिसे बिरहा लुभाता ?
है कोई रागी,
हो जिसे बिछोह-राग?
है कोई परितुष्ट,
कर अपने कंज-मुखी का त्याग?
पर क्या करे जीवन,
ये जो उदर की आग है
हो कोई भी राग, बंधन
करना पड़ता त्याग है
सत्य है, जीवन गति का
ये ही सच्चा मूल है
नित्यशः उसकी ही चिंता,
कौन सकता भूल है
हैं सभी अनुबद्ध उसमे
मैं भी उसको मानता हूँ
पर हिया जो पीर है
मैं ही केवल जानता हूँ
सो दूर करने क्लेश को
फिर से गाढ़े श्लेष को
आ गया हूँ उस गली में, जिस गली
में
स्वप्नलोकी कुंतला है
ना कोई चिंता, बला है
और यमस्विनी प्रीतिकर है
समय लगता है, स्थिर है
हूँ जहाँ एकांत में, निर्द्वंद
मैं
बंधता हुआ जैसे किसी
भुज-बंध में
आ.. हा! इस भुज-बंध में
सिमटा हुआ संसार है
और इस संसार में
देखो कितना विस्तार है
जिसमे उड़ता जा रहा हूँ,
इस किनारे, उस किनारे
चाँदनी में स्निग्ध हो,
छूते हुए असंख्य तारे
कल्पना के लोक में
रुनझुन रुनकते नाद से
नव उर्जा का सद-क्षण सहज
संचार है
आ.. हा! पुनः अन्तःस्वनित अति
प्रबल यह झनकार है
अब क्या किसी को दोष दें
भूल सारे रोष मैं
उड़ते रहते इस धनी आकाश में
लौट आया हूँ पिया के पाश
में
(निहार रंजन, समिट स्ट्रीट,
५ मई २०१४)
क्या कहा जाये ? सुक्ष्म स्पंदन हिया के पीर का. पोर-पोर मेँ पीर बस पीर........
ReplyDeleteप्रेक का होना सतत रहे तो पिय की पाश मिल ही जाती है ...
ReplyDeleteजरूरी तो सब कुछ होता है जीवन में, प्रेम में ..
पिया का पाश कहें या भुज-बन्ध अगर इसमें आनन्द विस्तार है तो इसे अपनाने में कोई चिन्ता नहीं होनी चाहिए। अन्त:करण का सुन्दर द्वन्दात्मक अनुनाद है इस कविता में।
ReplyDeleteआ.. हा! इस भुज-बंध में
ReplyDeleteसिमटा हुआ संसार है
और इस संसार में
देखो कितना विस्तार है....बहुत सुन्दर ...
भले ही सौतन हो सारा संसार पर पिया तो पिया ही है न..
ReplyDeleteइस जगत से दूर रहने पर मेरी भी कुछ ऐसी ही हालत हो जाती है..
ReplyDeleteKya likhu ................. vakai adbhud rachna badhai ranjan ji .
ReplyDeleteaakhir likhe to classic hi likhe bhaiya. Loved it.
ReplyDeleteसुन्दर रचना !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग के पोस्ट के लिए manojbijnori12.blogspot.com यहाँ आये और अपने कमेंट्स भेजकर कर और फोलोवर बनकर अपने सुझाव दे !
वाह-वाह क्या बात है। बहुत ही उम्दा रचना। बधाई।
ReplyDeleteसच्चा प्रेम पिया से मिला ही देता है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना !
कभी पास होती है जिवंत कविता कभी काल्पनिक कविता,
ReplyDeleteउदर की आग उससे जुड़े कामकाज यह भी एक़ सत्य है
पेट भरा हो तभी कल्पना भी वास्तविकता से भी अधिक सुन्दर दिखई देतीं है, निर्मम कहो या कुछ भी बस जीवन ऐसे ही है :)
बहुत सुन्दर रचना है !