तुम्हारे विचारों से गर्भित
मैं चिरगर्भिणी, घूमती हूँ
घूमती ही रहूँगी
गर्भ लिये, सबके मन में
जगाऊँगी कौतुहल थम-थमकर
कि दुनिया की दृष्टि
ठिठक जाती है
हर कुंवारी गर्भवती पर
उसके गर्भ का संधान करने
और मैं अबोल अभिशप्ता
कह नहीं पाती जग से
है कौन इसका वप्ता
कह नहीं पाती क्योंकि
श्रृंखलित हूँ तुम्हारे
शब्द-चातुर्य से
और विवश हूँ
जो मुग्ध है सभी उसके
माधुर्य से
कि तुम अपने दाप व संताप को
मृदित अभिलाषा को
हर्ष और निराशा को
प्रज्जवलित पिपासा को
विश्व-वेदना की संज्ञा देकर
आवृत कर जाते हो उनकी पहचान
और मैं गर्भित हो जाती हूँ
तुम्हारे विचार-बीज से
मैं कुँवारी हूँ क्योंकि
तुम्हारे विचार पौरुषहीन
हैं
निर्धाक जग-सम्मुख होने से
या किसी इच्छित योजना से
शब्दावतंस के मोहक वीतंस
में
फंसाना चाहते हो सबको
मेरे कुँवारीपन की आड़ में
इस भिज्ञता से
कि ऐसे गर्भो के चर्चे
अधरों से कर्ण-विवरों में
उत्सुकता से उतारे जाते हैं
उनके प्रणय-काल की
सरस गाथाएं सुनी जाती है
और शब्दालंकार भर भरकर
दूर देश तक सुनाई जाती है
मैं रूषित नहीं हूँ
तुम्हारे नेपथ्य वास से
या शंकित हूँ इस गर्भ पर
होने वाले उपहास से
जो भाग्य -शिष्टि का प्रबलत्व
मानकर रखूँगी दृढ तितिक्षा
और निभाऊंगी अपना धर्म
एक निर्भट कालांतरयायी बन
तुम्हारे मन के
उजले-काले
रंगीन स्मृतियों की रक्षिता
बन
पूर्णगर्भा सी दिखूंगी
और सबकी आँखों में अटककर
मानसपटल पर सतत
एक पारंग चितेरिन सी
आकृतियाँ उभारा करुँगी
और उसी का अनुतोष पाकर
अपना समय गुज़ारा करुँगी
(निहार रंजन, सेंट्रल, ६
नवम्बर २०१३)
वप्ता- पिता
शब्दावतंस-शब्द-माला
वीतंस-जाल
तितिक्षा- धैर्यपूर्वक कष्ट
सहने की क्षमता
Hi Nihar
ReplyDeleteThis is such a stirring poem on the ruthless stance our society takes on a hapless pregnant but unmarried woman..nicely written
आप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 11/11/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
ReplyDeleteसूचनार्थ।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 09/11/2013 को एक गृहिणी जब कलम उठाती है ...( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 042 )
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
सामाजिक व्यवस्था पर एक चिंतनीय दृष्टि ,
ReplyDeleteविचारों से गर्भिणी !
ReplyDeleteनवीन एवं अद्भुत बिम्ब !
सदैव की तरह एक सारगर्भित और उत्कृष्ट प्रस्तुति...
ReplyDeleteगहन, गम्भीर, विचारणीय कविता।
ReplyDeleteमैं कुँवारी हूँ क्योंकि
ReplyDeleteतुम्हारे विचार पौरुषहीन हैं......
क्या कहूँ ???? शब्द कम पड़ जाते हैं ……इतनी सटीक और सुन्दर रचना बस 'हैट्स ऑफ' इसके लिए |
नवीन बिम्ब लिए गहन अभिव्यक्ति ......!!
ReplyDeleteविचारगर्भिणी की अवधारणा से हिंदी पारम्परिक नायिका साहित्य समृद्ध हुआ !
ReplyDeleteyatharth chintan ke dharatal pr sundar kataksh .....aabhar Ranjan ji .
ReplyDeleteबहुत सार्थक समसामायिक रचना ...मन को मथती है ..प्रश्न खड़े करती है ...उत्तर माँगती है औ निशब्द कर अंत:पटल पर अंकित हो जाती है ......बहुत-बहुत आभार इस रचना के लिये
ReplyDeleteख़ास बात कि यह एक पुरुष द्वारा रचित है ...आपका अभिनंदन
एक अनुगूँज प्रतिध्वनित हो रही है इस कृति से .. अति सुन्दर..अति सुन्दर..
ReplyDeleteतुम्हारे विचारों से गर्भित
ReplyDeleteऔर
मैं कुँवारी हूँ क्योंकि
तुम्हारे विचार पौरुषहीन हैं--ये दोनों बाते विरोधाभासी है ....समाज के विरोधाभास को उजागर करता है |
नई पोस्ट काम अधुरा है
बहुत सुन्दर बिंम्ब प्रयोग , सुन्दर रचना निहार जी !
ReplyDeleteमैं कुँवारी हूँ क्योंकि
ReplyDeleteतुम्हारे विचार पौरुषहीन हैं ...
गहरी बात ... समाज की विषम परिस्थिति को लक्षित करते भाव ...
एक नारी के विशुद्ध शक्ति को दर्शाते हुए सुंदर रचना .....
ReplyDelete"मेरे कुँवारीपन की आड़ में " या मेरे कुँवारेपन की आड़ में ? क्या अच्छा रहेगा ?
ReplyDeleteजब कविता पोस्ट की थी तो 'कुँवारेपन' ही लिखा था. बाद में कविता के स्त्रीलिंग होने कारण सोचा .. कुंवारीपन लिखना ज्यादा ठीक होगा. शायद मैं गलत भी हो सकता हूँ.
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