ओडियन यानि जर्मन शेफर्ड
नस्ल का एक श्वान
ये अलग बात है
कि दुनिया मुझे ओडियन-प्रेम
से जानती है
ये अलग बात है
कि अपनी पत्नी से किनारा
किया है मैंने
ये अलग बात है
कि सूचित किया है मैंने पिता
को
अनुमति से, मेरे गृह में
प्रवेश के लिए
ये अलग बात है
कि ओडियन मेरा प्रेम भी है
और ओडियन मेरी मजबूरी भी
क्योंकि मैं लाचार हूँ
निजता के उल्लंघन से
और शब्द-बाणों के
अनवरत उत्पीड़न से
क्योंकि अपनी ज़िन्दगी का
निर्धारक
मैं हूँ, मैं हूँ, मैं हूँ
!
और शूल सी है बेधती मुझे
पत्नी से नोक-झोंक
या पिता का रोक-टोक
इसलिए ‘ओडियन’ से बहुत
प्रेम है मुझे!
क्योंकि ओडियन कभी भी
प्रश्न नहीं करता, शूल नहीं
बेधता
बहुत प्रेम है क्योंकि
‘ओडियन’ ढोंगी साधु नहीं
जो समर्पण मांगता है मुझसे!
बल्कि, दिन भर एकांतवास
करता है
और घर लौटते ही
मुझे समर्पित होने को मरता
है
बहुत प्रेम है क्योंकि
वो प्रश्न नहीं करता
मेरी पत्नी की तरह
कि ‘एलिज़ाबेथ’ कौन है
क्यों मेरी संध्या-सहचरी है
?
क्यों प्याला लिए खड़ी है ?
बहुत प्यार है क्योंकि
उसे मुझे मेरे पिता की तरह
तपस्वी नहीं बनाना
और शांतिमय जीवन के
नुस्खे नहीं सिखाना
यही बात है मुझे खटकती
आज़ादी का अर्थ यह नहीं
कि बंध जाऊं पिता के आग्रह
से
और उनके अंतर्मन के विचार
मुझमे पा जाएँ विस्तार
फिर अपने श्रम से अर्जित धन
से
भरे यौवन में विरक्त होकर
इच्छा करूँ तपोबल की
इच्छा करूँ क्षालित मनोमल
की
जो वो अनजान इस बात से
कि मैं विश्रांत हूँ
अपनी स्वाधीनता के सतत दमन
से
कि एलिज़ाबेथ, उन्मुक्त विचरण
के लिए
क्रिस्टीना, गाढ़ालिंगन के लिए
जूलिया, सर्वस्व अर्पण के
लिए
नहीं करती है प्रश्न
इस आज़ाद प्रजातांत्रिक देश
में
मेरी वैयक्तिक आज़ादी पर
सिर्फ बंधन का नाम लेकर
इसीलिए मैंने किया है
किनारा
अपने हितैषियों से
जो जीवन के इस पड़ाव पर
कर नहीं सकता समझौता
आज़ाद हवा में आज़ादी से
समर्पित नहीं हो सकता स्वयं
लेकिन मांगता हूँ समर्पण
अपनी आज़ादी के लिए
पत्नी से भी, पिता से भी
बिलकुल मेरे ओडियन जैसा
मांस की दो बोटियों के लिए
फकत दो बोटियों के लिए !
(निहार रंजन, सेंट्रल, १९
नवम्बर २०१३)
बहुत कुछ कहती है आपकी यह बेहतरीन कविता
ReplyDeleteसादर
"Personal Space"...कितनी ज़रूरी है जीवन में ......हर कोई चाहता है....पर दूसरे की स्पेस को recognize नहीं करता....बहोत ही खूबसूरतीसे उकेरा है इस को मन:स्तिथि को
ReplyDeleteबहोत
सच ही तो एक distance हर को मेन्टेन करना चाहिए......
ReplyDeleteओडियन प्रेम से आजादी तक का सुंदर व्य़ाख्या ………बहुत सुंदर... !!
वाऽहऽऽ…!!!!! वाऽहऽऽ…!!!!!
ReplyDeleteशुरू से अंत तक नि:शब्द करती अभिव्यक्ति
आजादी का अर्थ ये भी नहीं है कि मशीन हुआ जाए और केवल अपने हिसाब से प्रेम किया जाए .. जब दो अहंकार समीप होते हैं तो थोड़ी उठा-पटक तो होती ही है पर सच्चे प्रेम का राह भी यहीं से निकलता है..यदि ओडियन को बोलना आता तो वो भी अपनी आजादी की मांग अवश्य करता..
ReplyDeleteकल 21/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
कितनी गहन होती हैं आपकी रचनाएं... सच में सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 21/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 47 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
ऐसी अन्तर्वेदना, आत्मझंझावातों की परिस्थितियां को लिखना तो चलो तब भी आसान हो जाता है, परन्तु इसे वास्तविक रूप से भोगना अत्यन्त जटिल अनुभव होता है और इसी अनुभव को कविता द्वारा उकेरना निश्चय ही बड़ी बात है।
ReplyDeleteअन्तर्वेदना और आत्मझंझावातों से व्यथित व्यक्ति अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में होता है। आपने इसे जिया और उकेरा यह बड़ी बात है।
ReplyDeleteप्रेम ऐसा ही समर्पण मांगता है...
ReplyDeleteक्योंकि ओडियन कभी प्रश्न नहीं करता .. सुन्दर अभिव्यक्ति .. प्रेम में समर्पण जरूरी है लेकिन क्या यह दुतरफा समर्पण नहीं मांगता .. मनुष्य और 'ओडियन' में एक अंतर यह भी है कि मनुष्य सिर्फ बोटी के साथ नहीं रह सकता , वह प्रेम के बदले प्रेम मांगता है ..:)
ReplyDeleteबहुत कुछ कह जाती एक लाज़वाब रचना...
ReplyDeletekya ham insaan ki tulna jaanwar se kar sakte hain?? aapne individual identity aur space ki baat toh theek kahi par fir bhi manaav jeevan ki poorn swatntrata kuchh bandhanon mein hi poornta paati hai.
ReplyDeleteमन को गहरे संस्पर्श करती कविता
ReplyDeleteबिना प्रतिदान की इच्छा के एक उदात्त आजादी की चाह भला एक संवेदनशील व्यक्ति को क्यों न हो?
बहुत अच्छी लम्बे समय तक याद रहने वाली कविता -आभार निहार
इसलिए ‘ओडियन’ से बहुत प्रेम है मुझे!
ReplyDeleteक्योंकि ओडियन कभी भी
प्रश्न नहीं करता, शूल नहीं बेधता........................अत्यंत सुन्दर। बधाई स्वीकार करें।
इसलिए ‘ओडियन’ से बहुत प्रेम है मुझे!
ReplyDeleteक्योंकि ओडियन कभी भी
प्रश्न नहीं करता, शूल नहीं बेधता
जैसे जैसे समझ बढ़ती है ....हम और उलझते जाते हैं ....कई बातों का ...भावों का परिपेक्ष समझना और मुश्किल होता जाता है ....सरल जीवन और कठिन सा क्यों लगाने लगता है .....
वाकई निःशब्द .... सत्य के आगे शब्द होते भी नहीं !!!
ReplyDeleteएक पहलू है सत्य का .......न कम न ज़्यादा
ReplyDeleteसिर्फ एक पहलू है इसीलिए सच भी है और सच से परे भी
.........सोचने पर मजबूर कर रही है आपकी रचना आखिर सच होता क्या है
हम सब एक अनोखे द्वन्द व समर्पण के बीच झूलते रहते हैं..बरास्ते ओडियन आपने जो बात कही है, उसे समझना वाकई आसान नहीं है.. मेरा निजी फलसफा है कि मुक्त होने तक अनंत कथा चलती रहेगी...
ReplyDelete