उधर से तुम हाथ उठाओ, इधर से हम हाथ उठायें
इसी तरह से, चलो जश्न की रात बिताएं
कई दिन हैं बीते, तो ये रात आई
किस्सा बड़ा है, हम कैसे सुनायें
मुन्तज़िर तुम भी थे, मुन्तजिर मैं भी था
लो आखिर में चल ही पड़ी हैं हवाएं
खरामा-खरामा कदम तो बढायें
बातों-बातों में, गयी रात सारी
उठायें सदा हम, सुबह को
बुलाएं
(निहार रंजन, समिट स्ट्रीट, २४ मई २०१४ )
सुबह की आशा तो सभी को है ... बहुत खूब ..
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteवो सुबह कभी तो आएगी। .. बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअब हवा को और भी पंख देना है ताकि हर जगह सबेरा खुद आ जाए..
ReplyDeleteआशावान पंक्तियाँ , आभार और मंगलकामनाएं !!
ReplyDeleteबातों-बातों में, गयी रात सारी
ReplyDeleteउठायें सदा हम, सुबह को बुलाएं
bahut khoob
badhai
हर रात के आगोश में ढेर सारी सुबह की कतरनें है. हम तो उसी कतरनों को सजाते रहते हैं ......
ReplyDeleteरात के बाद सुबह की सदा में उठे हाथ..... बहुत सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteसुन्दर सी रूमानी कविता
ReplyDeleteकाफी दिनों बाद आना हुआ इसके लिए माफ़ी चाहूँगा । बहुत बढ़िया लगी पोस्ट |
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
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बहुत सुन्दर भाव ...
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