Saturday, May 24, 2014

आज की रात

उधर से तुम हाथ उठाओ, इधर से हम हाथ उठायें
इसी तरह से, चलो जश्न की रात बिताएं

कई दिन हैं बीते, तो ये रात आई 
किस्सा बड़ा है, हम कैसे सुनायें 

मुन्तज़िर तुम भी थे, मुन्तजिर मैं भी था 
लो आखिर में चल ही पड़ी हैं हवाएं 

जुबां पर आ ना सकेगी दूरियों की बात 
खरामा-खरामा कदम तो बढायें 

बातों-बातों में, गयी रात सारी  
उठायें सदा हम, सुबह को बुलाएं

(निहार रंजन, समिट स्ट्रीट, २४ मई २०१४ )

12 comments:

  1. सुबह की आशा तो सभी को है ... बहुत खूब ..

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  2. वो सुबह कभी तो आएगी। .. बहुत सुन्दर

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  3. अब हवा को और भी पंख देना है ताकि हर जगह सबेरा खुद आ जाए..

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  4. आशावान पंक्तियाँ , आभार और मंगलकामनाएं !!

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  5. बातों-बातों में, गयी रात सारी
    उठायें सदा हम, सुबह को बुलाएं
    bahut khoob
    badhai

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  6. हर रात के आगोश में ढेर सारी सुबह की कतरनें है. हम तो उसी कतरनों को सजाते रहते हैं ......

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  7. रात के बाद सुबह की सदा में उठे हाथ..... बहुत सुन्दर प्रस्तुति !!

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  8. सुन्दर सी रूमानी कविता

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  9. काफी दिनों बाद आना हुआ इसके लिए माफ़ी चाहूँगा । बहुत बढ़िया लगी पोस्ट |

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  10. सुन्दर प्रस्तुति !
    मेरे ब्लॉग की नवीनतम रचना को पढ़े !
    अगर आपको मेरी पोस्ट अच्छी लगे तो फॉलोवर बनकर अपने कमेंट और सुझाव देकर हमारा मार्गदर्शन करें !

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  11. बहुत सुन्दर भाव ...

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