जानता हूँ कि एक दिन
समय के साक्षी ये सारे शब्द
जो लिखे हैं मुक्त या
छंदबद्ध
कभी मस्ती में डूब कर
कभी अपनी पीड़ा से ऊब कर
गुम हो जाएंगे एक दिन, मेरी
तरह
फिर भी लिखता हूँ
कि लिखना है मुझे
समय का चाक घूमता रहेगा
नयी भाषाएँ जन्म लेती
रहेंगी
शील और अश्लील के नए अर्थ
होंगे
न्याय और अन्याय की नयी
व्याख्या होगी
आज की हर नयी चीज पुरानी
होगी
जीवन से नयी अपेक्षाएं
होंगी
प्रगतिवाद, पुरातनवाद,
छायावाद, प्रयोगवाद
इन सारे रूपों से दूर कविता
किसी नए रूप में जन्म लेगी
और ये सारे शब्द
हड़प्पा की लिपि की तरह
नहीं पायेंगे कुछ कह
लेकिन आनंद के दो क्षण के
लिए
पल भर बंधनहीन मन के लिए
वेदना से नैमिष अवकाश के लिए
मन के अंध में अवभास के लिए
कभी एकांत अश्रु-स्यंदन के
लिए
कभी निर्जीव से तन में
स्पंदन के लिए
किसी अबोल की व्यथा के लिए
दागी चाँद की कथा के लिए
यौवन-प्रसूत दंभ के लिए
अरुचिकर अनुभवों पर उपालंभ
के लिए
कभी प्रकृति से मुग्ध होकर
कभी अंधी दौड़ से क्षुब्ध
होकर
लिखता हूँ, कि लिखना है
मुझे
(निहार रंजन, सेंट्रल, १४
जनवरी २०१४)
सृजन ईश्वर की अनुकंपा है
ReplyDeleteअनवरत चलता रहे, सुन्दर रचना, सुन्दर शब्द,भाव संयोजन !
लिखना ज़रूरी है... कि स्वयं से संवाद की सम्भावना सदैव बनी रहे...!
ReplyDelete
ReplyDeleteकल 16/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
सार्थक भाव सुन्दर कविता .....
ReplyDeleteYe nadi aviral bahti rahe yahi kamna karta hoon mai---
ReplyDeleteये जिजीविषा ही विजिगीषा है..शुभकामनाएं..
ReplyDeleteवाह!! वाकई लिखना अपने आप में एक आत्म संतोष जैसा होता है। सार्थक भाव अभिव्यक्ति। लिखते रहिए शुभकामनायें...
ReplyDeleteप्रकृति से मुग्ध होंगे तो वह लिखाएगी ही। अन्धी दौड़ से प्रताड़ित होंगे वह भी लिखाएगी ही। तो क्या बुरा है। अच्छा है चलते रहें। अपने बहाने व्यापक सन्दर्भ उजागर करती कविता।
ReplyDeleteपरिवर्तन नियम है और सत्य भी इसीलिए सभ कुछ सुन्दर है .... बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteचलते जाना शब्दों के संग मेरी प्रवृत्ति है ...
ReplyDeleteलिख लिख कर अभिव्यक्त होना अब मेरी नियति है ......
बहुत सुंदर उद्गार मन के .....
प्रकृति के नियम है बदलाव और वो तो सतत चलते रहते....!!!
ReplyDeleteकाफी उम्दा रचना....बधाई...
नयी रचना
"जिंदगी की पतंग"
आभार
हड़प्पा की लिपि की तरह
ReplyDeleteनहीं पायेंगे कुछ कह......वाह!!!
बिना फल की कामना किये कर्म करते रहना व जीवन को संतोष पूर्ण ढंग से जीना ही वास्तविक उपलब्धि है
सत्य तो यही है परिवर्तन प्राकृतिक नियम है ,आज जो कुछ जिस रूप में है कल किसी दुसरे रूप में होंगे ...आज का शब्द भी मूक हो जायेंगे ......बहुत सुन्दर भाव !
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
मन के भावों को बहा देने का आनंद अनुपम है ... भविष्य किसने देखा है ....
ReplyDeleteकभी प्रकृति से मुग्ध होकर
ReplyDeleteकभी अंधी दौड़ से क्षुब्ध होकर
लिखता हूँ, कि लिखना है मुझे
...बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रवाहमयी प्रस्तुति...
तेरा लिखना ही तेरी जीत है...सब दुनियावी बातों से परे...
ReplyDeleteकवि लिखता है तभी वह जीता है -अपने ऐंद्रिय -अतीन्द्रिय लोक में है!
ReplyDeleteलिखते रहे अनवरत अक्षुण और अहर्निश!
बहुत सुंदर ... भाव संयोजन... !
ReplyDeleteसब माया है, लेकिन अभी तो है ...
ReplyDeleteअति सुन्दर । लिखना सृजन करना है और इसमें अपरिसीम आनंद है |
ReplyDeleteजो लिखा जाये, वह गुम नहीं होता
ReplyDeleteकोई सन्नाटे सा चेहरा उसे पढता जाता है
लिखना एक बाध्यता है...लेखक के लिये...खुश हो चाहे...दुखी...अति सुंदर...
ReplyDeleteलिखने से बेहतर सकून कहाँ??
ReplyDeleteबहुत सुन्दर काव्य रचना