पचास साल गुजार कर
सारा ‘संसार’ पाकर
उम्र के इस पड़ाव पर
वो भाग जाना चाहता है
पूरब की ओर
क्योंकि पूरब में है ‘ह्वंग
ह’
और ‘ह्वंग ह’ ‘माँ’ है
इसलिए वो जाना चाहता है
इसी माँ के पास क्योंकि
माँ का प्रेम विपुल है
निःस्वार्थ भी
उसे देह का प्यार
बहुत मिला है लेकिन
उसकी आत्मा
तलाश करती है सच्चे प्यार
को
सो वो निकल पड़ा है
अपने टूटे “डी” स्ट्रिंग वाली
इलेक्ट्रिक गिटार
के साथ
‘फ्रेडी किंग’ और ‘एरिक क्लैप्टन’
की तरह
“हैव यू एवर लव्ड अ वुमन”
गाते हुए
ताकि शोक की नदी, पीली नदी
उसके ज़र्द चेहरे को देखे
उसकी संतप्त आवाज़ सुने
और अपनी धारा से
बहा ले जाए उसे
तीर के दूसरी तरफ
जहाँ उसकी प्रियतम बैठी है
यही फितरत है इंसान की
जंगलों से भागता है शहर की
ओर
महल बनाता है
सारे साजो-सामान बिछाता है
कमरे को रोशन करता है लेकिन
अपने अंतस के अन्धकार को
मिटा नहीं पाता है
क्योंकि महलों के कमरे
रौशन हो के भी
घने अन्धकार में डूबे है
इसलिए वो जाना चाहता है
फिर से जंगलों में, नदी के
तीर पर
ताकि मुक्त कंठ से वो गा
सके
“हैव यू एवर लव्ड अ वुमन”
(निहार रंजन, सेंट्रल, १५
सितम्बर २०१५)
‘ह्वंग ह’- चीन की नदी (Yellow River)
ताकि मुक्त कंठ से वो गा सके
ReplyDelete...
इंसानी फितरत बयाँ करती एक सुन्दर सहज पोस्ट....
मुक्तकंठ गा पाने की जरा सी भी सम्भावना जहाँ हो, वहाँ पहुँचने को, देर सबेर ही सही, आत्मा उद्धत तो होती ही है...
ReplyDeleteकिसे चाह नहीं सच्चे प्यार की.....
ReplyDeleteऔर प्यार की गुणवत्ता कृत्रिमता में नहीं मिलती ..
ये इंसानी जंग है जो हमेशा रहती है ... दूर चाहे कितना भी दूर चला जाए ... बहुत कुछ अपने साथ रखता है जहां लौटना ही उसका ख्वाब होता है ...
ReplyDeleteसत्य है कि महलों के साजो-सामान, कृत्रिम प्रकाश मनुष्य के अन्तर्मन को नहीं चमका सकते। जहां जीवन का अन्कुर फूटा, उस धरा के लिए हम क्या कर पाते हैं। अन्यत्र जा कर स्वयं को संसाधित करते हैं, जो असन्तुष्टि और आत्मग्लानि ही उत्पन्न करता है। कविता में ऐसी टीस अच्छे से उभरी है।
ReplyDeleteनिहार भाई हैट्स ऑफ इसके लिए। ……जीवन का बड़ा गहरा दर्शन समेटे अद्भुत भावों से सजी ये पोस्ट लाजवाब है हालाँकि मुझे कविता में न जाने क्यूँ अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग पसंद नहीं आता परन्तु आपने बड़ी सुन्दरता से इसे पिरोया है जिसने इसमें चार चाँद लगा दिए । कई दिनों तक याद रहने वाली और छाप छोड़ देने वाली इस पोस्ट के लिए हार्दिक शुभकामनायें आपको |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हैट्स ऑफ....बहुत सुन्दर....
ReplyDelete!!
ReplyDeleteलौट तो आना चाहता है परन्तु कितना कुछ खोकर ? काश! ये गान पहले ही गुनगुना लेता .. अति सुन्दर कृति..
ReplyDeleteयही फितरत है इंसान की
ReplyDeleteजंगलों से भागता है शहर की ओर......सुन्दर
बहुत सुन्दर भाव और रचना |
ReplyDeleteआशा
कमरे को रोशन करता है लेकिन
ReplyDeleteअपने अंतस के अन्धकार को
मिटा नहीं पाता है...अक्सर हम सभी ऐसा करते हैं ..हैं न ...जब अपना आप छिपाते हैं.....
सच्चा प्यार ही मन के अन्धकार को दूरकर सकता है
ReplyDeletelatest post: क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )
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इन्सान की यह फितरत ही है,अंत में शांति खोज में भटकता है कितना भी दूर चले जाए पर हमारी जीवन से असन्तुष्टि नही मिटती ,बहुत ही सुन्दर भावों को आपने बखूबी प्रस्तुत कियें है, आभार।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत उम्दा .. पूरब में होंग है, इंसान पहले जंगल से शहर की ओर भागता है और फिर शहर से जंगल की ओर, परमात्मा तो आखिर शांति ही है ..या शांति में ही है .. सुन्दर रचना..
ReplyDeleteयह दौड़ सदैव चलती रहती है..बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteफिर से जंगलों में, नदी के तीर पर
ReplyDeleteताकि मुक्त कंठ से वो गा सके
“हैव यू एवर लव्ड अ वुमन”
...........बहुत ही सुन्दर भावों को बखूबी प्रस्तुत कियें है
एक अद्भुत रुमान लोक को रचती कविता -मेरो मन कहाँ अनत सुख पावे
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