अपनी-अपनी लड़ाई में बीतता है दिन-रात
अपनी-अपनी लड़ाई में व्यस्त है गाछ-पात
प्रस्फुटन, पल्लवन, पुष्पण से आगे भी है लड़ाई
और शिथिल हो कर डूब जाना ही एक सचाई
सौ, डेढ़-सौ या कुछ हज़ार साल
बस इसके लिए ही बजता है सबका गाल
सभ्यताएं, जीन, जंतु, जीवाश्म
सबका एक ही हाल, मृदा है काल
अपने-अपने शून्य का अपना-अपना स्वन
अपने-अपने वर्तमान का नित नया स्तनन
अपनी-अपनी दृष्टि का अपना वर्णन
आनंद क्षण-क्षण, आनंद कण-कण
(ओंकारनाथ मिश्र, ऑर्चर्ड स्ट्रीट, २८ फ़रवरी २०१५ )
सच कहा मिट्टी ही सबका काल है, पर वर्तमान के स्तवन में हम कहाँ याद रखते हैं?
ReplyDeleteइसी क्षणिक लड़ाई में हम अंतिम शब्द-सार तक नहीं पहुँच पाते हैं और मिट्टी में तब्दील हो जाते हैं।
ReplyDeleteसभ्यताएं, जीन, जंतु, जीवाश्म
ReplyDeleteसबका एक ही हाल, मृदा है काल....... सत्य है और यही सत्य है .... सुंदर प्रस्तुति ।
अपनी-अपनी दृष्टि का अपना वर्णन
ReplyDeleteआनंद क्षण-क्षण, आनंद कण-कण ...
वैसे सच भी तो यही है ... अपनी दृष्टि से सब कुछ देखते हैं अपने दृष्टिकोण से समझते हैं और उसी अनुसार आनंद लेते हैं पल पल ... अन्यथा सबको काल में जाना है चाहे हों ... सभ्यताएं, जीन, जंतु, जीवाश्म ...
ठोस, कटु सत्य तथा यथार्थ प्रकट किया है आपने। लेकिन बहुत लोग हैं, जो कहते हैं कि इस तरह की बातें करनेवाले यथार्थ से मुंह मोड़ते हैं, पर मैं उनसे पूछता हूं कि जीवन-अकाल से बड़ा यथार्थ क्या हो सकता है। और इस पर केन्द्रित होकर कोई जीवनात्मक दर्शन में है, उसके अनुसार जीवन में है तो वह आलोच्य की बजाय स्तुत्य क्यों न हो! लेकिन ऐसा कहां है।
ReplyDeleteविचारणीय , सारगर्भित
ReplyDeleteबहुत गहरे भाव...
ReplyDeleteध्रुव सत्य है जो वहीं तो नहीं स्वीकार करता मन
ReplyDeleteसब जाने समझे पर न पिघले रूप अहम का
ReplyDeleteऔर कोई हल न सूझे पाले हुए हर वहम का
अपने-अपने शून्य का अपना-अपना स्वन
ReplyDeleteअपने-अपने वर्तमान का नित नया स्तनन
अपनी-अपनी दृष्टि का अपना वर्णन
आनंद क्षण-क्षण, आनंद कण-कण
बहुत सटीक लगी यह पंक्तियाँ, सुन्दर रचना निहार जी, !
अपनी-अपनी दृष्टि का अपना वर्णन
ReplyDeleteआनंद क्षण-क्षण, आनंद कण-कण
सार यही है। ।बहुत सुन्दर भाव !!
यही सच है...हर किसी को अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है... संघर्ष ही जीवन है, कठिन संघर्ष से ही व्यक्ति का जीवन प्रामाणिक बनता है...सुंदर रचना
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