सर कलम करके वो आये हाथ अपने धो लिए
था लिखा रोना हमारे भाग में हम रो लिए
कह रहे थे सबसे वो करते हुए ज़िक्र-ए-रहम
तुम मनाओ खैर लेना चार था हम दो लिए
साक्ष्य भी था रक्त भी, सिसकी, किलोलें, सब के
सब
जांच में पर थी सियासत सब के सब ही खो लिए
है शिकायत हाथ में जायें मगर हम किसके पास
वक्त का एक बोझ है कहकर अभी हम ढो लिए
पट्टी जिनके आँख पर हाथों तराजू जिनके है
मुख खुलेगा उनका जब तक कितने रुखसत हो लिए
हम गरीबों की सदायें शायद जगेंगी एक दिन
सोचते ही सोचते लो आज भी हम सो लिए
(ओंकारनाथ मिश्र, हरिद्वार, २० जुलाई २०१५)
वाह बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteपट्टी जिनके आँख पर हाथों तराजू जिनके है
ReplyDeleteमुख खुलेगा उनका जब तक कितने रुखसत हो लिए ...
हर शेर चुभता है ... सच के पास ही बैठ के लिखी गयी पूरी ग़ज़ल है ये ... देश की वर्तमान परिस्थिति, स्वार्थ और राजनीति का कच्चा चिट्ठा है ये ग़ज़ल ... बहुत लाजवाब ...
साक्ष्य भी था रक्त भी, सिसकी, किलोलें, सब के सब
ReplyDeleteजांच में पर थी सियासत सब के सब ही खो लिए..... बहुत खूब...लाजवाब ग़ज़ल, हर शेर नायब, दिली मुबारकवाद.
अच्छे वक्त का इन्तजार करते जिन्दगी गुजर जाती है सच . बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteपट्टी जिनके आँख पर हाथों तराजू जिनके है
ReplyDeleteमुख खुलेगा उनका जब तक कितने रुखसत हो लिए
...वाह...एक एक शेर सच को आइना दिखता हुआ...दिल को छूती ग़ज़ल
बहुत ही बेहतरीन है कुछ hindi quotes भी पढ़े
ReplyDeleteपट्टी जिनके आँख पर हाथों तराजू जिनके है
ReplyDeleteमुख खुलेगा उनका जब तक कितने रुखसत हो लिए
............दिल को छूती ग़ज़ल