अक्टूबर की गुनगुनाती धूप
लम्बी ‘ब्लू रिज’ पर्वत
श्रृंखला
जलेबिया रास्तों की
चुनौतियाँ
मुग्ध करती पहाड़ी हरियाली
और ये धुँआ धुँआ
ये कौन जल रहा पहाड़ो में?
किसके निशाँ है चट्टानों पर
किसके आंसुओं की धारा है
वादियों में
जिससे उठ रहा है ये घना वाष्प
और ये धुँआ धुँआ
वादियों में गूंजती भूतहा
आवाज़
चट्टानों से टकरा-टकरा
व्याकुल है
असली घर की खोज में
जहाँ कैद है उनकी
वेदना-गाथा
और ये धुँआ धुँआ
जबरन घरों से घसीट उन्हें
दिखाया गया नए घर का रास्ता
बना आंसुओं में डूबा इतिहास
(ट्रेल ऑफ़ टीयर्स)
और ये धुँआ धुँआ
मैं सिहरता हूँ ये सोच बस
किसी निर्जन टापू पर भेज मुझे
कोई लगा दे आग मेरे गाँव
छोड़ जाए राखों में अस्तित्व
और ये धुँआ धुँआ
कहने को बहुत कुछ है
लिखने को बहुत कुछ है
लेकिन मन कहता है
क्या लिखूं यहाँ वहाँ
और ये धुँआ धुँआ
(निहार रंजन, नॉक्सविल, ६ अक्टूबर २०१३)
(नार्थ कैरोलिना और टेनेसी के सीमा के बीच स्मोकी माउंटेन्स में ६ अक्टूबर २०१३ की प्रभात बेला. २०० साल पहले तक यह इलाका और आस पास के राज्य अमेरिका के मूल निवासियों (रेड इंडियंस) का स्थल हुआ करता था. आज स्मोकी माउंटेन्स की पहचान पर्यटन से है. तस्वीर- निनाद प्रधान)
Hi Nihar
ReplyDeletebeautifully described! i think this pic looks like the cover page of 'And the mountains echoed'
कहने को बहुत कुछ है
ReplyDeleteलिखने को बहुत कुछ है
~~
लेकिन मन कहता है
क्या लिखूं यहाँ वहाँ
और ये धुँआ धुँआ
!!
कहने को बहुत कुछ है
ReplyDeleteलिखने को बहुत कुछ है
bhaut khubsurat....
ReplyDeleteधुँवा धुआँ...........में ही सौंदर्य लिख गए हैं |
ReplyDeleteप्रकृति का |
धुआ के पीछे क्या सत्य है.......... ? बहुत सुन्दर .........
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन गुनाह किसे कहते हैं ? मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteराख के अस्तित्व ओर धुंवा धुंवा जीवन भटकता रहता है उम्र भर ...
ReplyDeleteधुयें का रहस्यमय होना
ReplyDeleteकिसी का बेघर कर दिया जाना
आँसुओं की बहती अविरल धारा
चट्टानों के घाव और सिसक उठते पहाड़
जाने इन वादियों में दर्द है कितना
सब कुछ हुआ जाता है धुँआ-धुँआ
क्या कहा जाए ऐसे धुआँ को जो किसी की आँखों को जलाता है तो किसी के दिल को हर्षाता है..
ReplyDeleteवाह वाह - बहुत खूब
ReplyDeleteक्या लिखूं यहाँ वहाँ
ReplyDeleteऔर ये धुँआ धुँआ...बहुत खूब..
सुंदर प्रस्तुति.!
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहोत सुन्दर अभिव्यक्ति .....हर एहसास महसूस हुआ ...
वाह निहार भाई बहुत ही सुन्दर |
ReplyDeleteगहरी भावनाओं के प्रतिबिम्ब फोटो में स्पष्ट झलकते हैं। फोटो बहुत ही प्राकृतिक रंगों से युक्त अत्यन्त मनमोहक है।
ReplyDeleteकल 10/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
कुछ बात कही न जाए ...कुछ बात सुनी न जाए ....
ReplyDeleteसिर्फ रहे धुंआ धुंआ.....
बहुत सुन्दर निहारजी.... आपका अंदाज मन को आर-पार कर जाता है...
बहुत सुंदर फोटो के साथ सुंदर रचना। बना आंसुओं में इतिहास और ये धुआं धुआं अमरीकी इतिहास के साथ साथ ब्लू रिज़ माउन्टेन और स्मोकी माउन्टेन की सैर याद आ गई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र है साथ में स्मोकी माउंटेन्स का सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteकिया है रचना में, मुझे भी कुछ नयी जानकारी मिली !
आभार !
ये कौन जल रहा पहाड़ो में?
ReplyDeleteकिसके निशाँ है चट्टानों पर
किसके आंसुओं की धारा है वादियों में
जिससे उठ रहा है ये घना वाष्प
और ये धुँआ धुँआ-------
जीवन के मर्म को बहुत सुंदर प्रतीकों से बांधकर
लिखी बहुत सुंदर रचना----
उत्कृष्ट
सादर
मुग्ध करती पहाड़ी हरियाली
ReplyDeleteऔर ये धुँआ धुँआ
sundar rachna ......aur badhiya jaankari bhi ....
क्या लिखूं यहाँ वहाँ
ReplyDeleteऔर ये धुँआ धुँआ
***
Facts, figures,poetry...
well presented!!!
खुद के मूल स्थान की स्मृतियों और विस्थापन के कवि संत्रास को इस कविता में प्रभावशाली अभिव्यक्ति हुयी है !
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट रचना..
ReplyDeletemantra tantra sadhna