माना आपका कोमल ह्रदय है
संसार की सारी व्यथाओं का
आपके ही उर संचय है
कलम अनुक्षण विकल है
घृत के साथ उठती अग्निशिखा
सी
प्रचंड है, प्रदीप्त है,
निर्भय है
मगर ह्रदय में व्यथा की
निधि लेकर
कहीं खो ना जाये जीवन के मधुर
पल
अनवरत तलवार और बाण चलाते
चिर-तृषा में जीवन ना हो
निष्फल
इसीलिए आप प्रेम रस से उर
सिंचन करें
व्यथा कीर्तन त्याग, प्रेम
अभिनन्दन करें
व्यथा की सच्चाई को मान
लिया
विश्व की क्रूरता को भी जान
लिया
दुनिया है स्वार्थ का गढ़,
पहचान लिया
इसीलिए आपके कलम ने ये ठान
लिया
कि लच्छेदार लिख-लिख कर
दुनिया का
अत्याचार बदल देंगे
नाव बदल
देंगे, पतवार बदल देंगे
नाटक बदल
देंगे, किरदार बदल देंगे
चाल बदल देंगे, व्यवहार बदल देंगे
गलियों-गलियों से उठते हाहाकार
बदल देंगे
शब्दों के हुंकार से सकल
संसार बदल देंगे
मगर कवि! संसार कभी नहीं
बदलता है
उसी धूप और छाँव बीच जीवन
चलता है
आज की बात नहीं, युगों की
लड़ाई है
मनुष्य ने कब सतत शान्ति
पायी है
जलता ही रहता है मनुष्य हर
युग
हिंसा और प्रतिहिंसा के
ज्वार में
निर्दोषों को अकारण संहार
में
अनीतियों, कुरीतियों के व्योम
विस्तार में
ढूंढता है प्रेम उस पालनहार
में
कहते है जिसने दुनिया बसाई
है
अपनी व्यथा सबने उसे सुनाई
है
फिर भी हर युग में वही लड़ाई
है
कवि! ह्रदय व्यथित ना करो
अवसाद में रह मिलता बस
क्रोध
जिसका होता जब अनुबोध
तुरावत निकल जाता है समय
हाथ मल-मल बस होता आत्म-क्षय
(निहार रंजन, सेंट्रल, २
अक्टूबर २०१३).
कुछ ऐसी ही बात मेरे मन में भी आई थी.. :)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द दिए हैं आपने इस अभिव्यक्ति को.
जो दिल से कवि है उनके ध्यान देने योग्य ........ कवि सकल संसार तो नहीं बदलते किन्तु प्रभवित अवश्य करते है .......... सुमधुर शब्दों से सजी कविता
ReplyDeleteशब्दों के हुंकार से सकल संसार बदल देंगे..
ReplyDeleteइरादा तो कुछ ऐसा ही है यदि यह पूर्णत:संभव न हुआ तो खुद को भी बदलना बहुत बड़ी उपलब्धि है..वैसे एक सांस में पढ़ गयी ..बहुत अच्छी लगी ..
बदलना तो खुद को होता है त्वरित उत्तर के लिए ... व्यथा पे पार पाने के लिए ... समाज तो सूक्ष्ण गति से बदलता है जो दिखाई भी नहीं देता ...
ReplyDeleteकुछ भी बदलता नहीं सही है खुद को कुछ तो बदल पाए यही क्या कम है ?
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक रचना !
धूप और छाँव बीच जीवन चलता है..........कविता में जीवन की आशा-निराशा, उतार-चढ़ाव दार्शनिकता सहित प्रकट हुए हैं। जीवन विसंगतियों के बहुतायत में होने, इनसे बच कर चलने और अंतत: प्रेम में निमग्न रहने का कवि अनुरोध निश्चय ही मानव-जीवन का एक समेकित सन्देश है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कविता |
ReplyDeleteरोज हमारे साथ यह होता है
या तो हम दिन को बिताते हैं ; या दिन हमको बिताता है
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Each day , it happens with us -
Either we run d day or d day runs us
तीर मारे थे , तीर खा बैठे....
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हम उन्हें , वो हमें , भुला बैठे
दोनों गुनहगार , ज़हर खा बैठे
आंधियो जाओ अब , आराम करो
हम ख़ुद , अपना दिया , बुझा बैठे
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खुमार
सुन्दर सार्थक रचना !
ReplyDeleteआज की बात नहीं, युगों की लड़ाई है
ReplyDeleteमनुष्य ने कब सतत शान्ति पायी है
जलता ही रहता है मनुष्य हर युग
हिंसा और प्रतिहिंसा के ज्वार में
WAHH UTTAM RCHNA BADHAYI :)
जीवन विरोधाभास से भरा है i बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteनवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
नई पोस्ट साधू या शैतान
मगर कवि! संसार कभी नहीं बदलता है
ReplyDeleteउसी धूप और छाँव बीच जीवन चलता है
गहरी बात कही है ....बहुत गहन एवं सोच की दृष्टि से समृद्ध रचना कहूँगी ....!!
सच हैं की जीवन धूप छाव के बीच चलते रहता है
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना ...
इसलिए कवि उर में प्यार का संचार करो - आशा है कवि ने सन्देश ग्रहण किया होगा -मैं भी सिफारिश यही करूँगा
ReplyDeleteवाह बहुत ही खुबसूरत रचना |
ReplyDeleteबेचारा कवि करे भी क्या ? उसे तो सभी का ख्याल रखना होता है...
ReplyDeleteदिलचस्प कविता ......
व्यथा कीर्तन त्याग, प्रेम अभिनन्दन करें
ReplyDelete***
Well said!
कवि से सारगर्भित संवाद!