कई वर्षो से मैंने यही
महसूस किया कि
थोड़ा सा मान-मर्दन, थोड़ा सा
राष्ट्रवाद
थोड़ा सा स्वाभिमान, थोड़ी सी
आत्मा
अगर मार दी जाए
और थोड़ा सा घुटना झुका दिया
जाए
तो जीवन का हर सुख क़दमों
में आ जाता है
नील-दृगों का हरित विस्तार
लावण्य का शहद और स्वेद का
लवण
अंतहीन यामिनी में बिखरे
क्षण
समृद्धि का सुख सार
वाणी में लोच, स्वर में
लोच, लिंग में लोच
लोच ही लोच, कुछ नहीं अड़ियल
आदमी में ‘कोकोनट’, पेड़ों
पर नारियल
सुधंग संग स्वंग
सप्तवर्णी प्रमदाओं का
चाहिये कौन रंग?
जब दरवाज़े पर खड़ी हो आईरिस
खिडकियों से कूक दे हेबे
बाहर विरभ्र आसमान
यही एक दास्तान
भुला छाती का क्षीर, सब चीर
बनाया गया था नया नीड़
साथ आया मारकेश लग्न, वास्तुदोष
करनी थी शान्ति गंडमूल की
सोत्साह शंखनाद, स्मर्य हवन
ॐ इति! ॐ इति! ॐ इति!
शमन! शमन! शमन!
कहती है निर्मल ‘बाबी’
.... नाउ गुड टाइम्स आर
कमिंग ‘टोवार्ड्स’ यू
पंद्रह अगस्त की बेला फिर
आएगी
करेंगे बंद कमरे में स्वर
मुखर
राष्ट्रगान पर कुरुक्षेत्र
की पुनर्स्थापना होगी
छूटी धरा का पुनः जयकार
होगा
चूड़ियाँ बजेंगी, झणत्कार
होगा
.... एंड यू डाउट माय पैट्रियोटिज्म, सर?
.......नेवर जज दैट, एवर!
भेड़िया कौन है?
भेदिया कौन ?
मेरी पड़ोसी, मिनर्वा कहती
है
थोड़ी सी जगह देने से
किसी की भी पीठ को सहलाकर
मीठी नींद में सुलाया जा
सकता है
यह सांकेतित ध्येय है
या कोई सिद्ध प्रमेय
लेकिन मैंने
तत्क्षण ही उससे कहा था
मातृ-विस्मृति के बाद भले ही
कई लोग
हर निशा निश्चिंत हो
निःश्वास छोड़ते हैं
पर मेरी अनिद्रा के पीछे
विप्लवाकुल कौशिकी खड़ी है
जो झिमला मल्लाह को ढूँढने
अड़ी है
नींद इसीलिए नहीं आती है
नींद आएगी भी नहीं
आपने आग को कभी पानी ढूँढते
देखा है?
आपने फूलों का शोर कभी सुना
है?
आपने चाकुओं को कभी प्यार
से चूमते देखा है?
आपने कभी ऐसे किसी को देखा
है
जो घुटनों में लोच लिए बैठा
है ?
(ओंकारनाथ मिश्र, ऑर्चर्ड
स्ट्रीट, ८ अगस्त २०१४ )