मैं प्रतीक्षा में खड़ा हूँ
एक दिन जब इस धरा पर
प्यार की कलियाँ खिलेंगी
और घृणा की दीवारें
जड़ से हिलकर गिरेंगी
धर्म जात के नाम पर
रक्त सरिता न बहेंगी
मैं प्रतीक्षा में खड़ा हूँ!
एक दिन जब सबके मुंह
हो दो वक्त की रोटी
बीते ना किसी की जिंदगी
फुटपाथ पर सोती सोती
सबके तन ढकने को हो
कुर्ता, साड़ी और धोती
मैं प्रतीक्षा में खड़ा हूँ!
~ निहार रंजन (२-८-२०१२)