कितने बीते मनभावन सावन
कितनी जली होलिका, रावण
पर हाय तपस्या में हर क्षण
विकल प्रतिपल अकुलाता मन
जीता बस
यादों के सहारे
आरे आरे आरे , मिटटी मेरी
पुकारे
जीवन की आपाधापी में
कैसे रखूँ खुद को हर्षित
कुसुम प्राप्ति की अभिलाषा
में
तन अर्पित , जीवन अर्पित
कब तक अब यूँ मन मारें
आरे आरे आरे , मिटटी मेरी
पुकारे
कोसी धारा, मिथिला की धरा
जिस पर मेरा शैशव गुजरा
मिले राह में दुःख-सुख
बदला जीवन में हर कुछ
पर उस धरा के हम आज भी
दुलारे
आरे आरे आरे , मिटटी मेरी
पुकारे
जब मन विचलित हो जाता है
मिटटी की याद सताती है
तज देता प्राण जब तन को
बस मिटटी ही अपनाती है
अब छोड़ दुनिया के झंझट सारे
आरे आरे आरे , मिटटी मेरी
पुकारे
(निहार रंजन ५-५-२०१२)
कल 16/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!