मैं प्रतीक्षा में खड़ा हूँ
एक दिन जब इस धरा पर
प्यार की कलियाँ खिलेंगी
और घृणा की दीवारें
जड़ से हिलकर गिरेंगी
धर्म जात के नाम पर
रक्त सरिता न बहेंगी
मैं प्रतीक्षा में खड़ा हूँ!
एक दिन जब सबके मुंह
हो दो वक्त की रोटी
बीते ना किसी की जिंदगी
फुटपाथ पर सोती सोती
सबके तन ढकने को हो
कुर्ता, साड़ी और धोती
मैं प्रतीक्षा में खड़ा हूँ!
~ निहार रंजन (२-८-२०१२)
परम प्रतीक्षा में प्रिये, रत रहिये दिन-रात |
ReplyDeleteधीरज रखिये हृदय में, सुधरेंगे हालात |
सुधरेंगे हालात, मिलेगी सबको रोटी |
पर नेता की जात, नोचती बोटी बोटी |
खोटापन भी जाय, यही करना है हिकमत|
नहीं देश बिक जाय, खुदा की होवे रहमत ||
dineshkidillagi.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ और उतना ही अच्छा व्यंग्य.
Deleteएक परिवर्तन की उम्मीद मन में जिलाए रखना ही कवि का धर्म है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना .....!!
अति सुन्दर..
ReplyDeleteपुरानी पोस्ट है, देखी नहीं थी मैंने.. आज हलचल से आना हो गया .. पढ़ तो वहीँ लिया मैंने .. लेकिन यहाँ ये बताये रहा न गया कि वाकई कम शब्दों में गहन भाव के साथ बेजोड़ रचना है।
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