कब्र पर घास, घास या दूब
दूब पड़ पड़ा-पड़ा ओस गया उब
उब गए थे जॉन ‘पा’ कि चल
रहा है क्या
समय से पूर्व मैं धरा में क्यों
गया धरा
शांत थी हवा मगर वहां नहीं
थी शान्ति
सत्य एक ओर था और एक ओर
भ्रांति
तारा एक टूट गया, टूटे कई तार
विश्वास पर जो चल गया कटार
(ओंकारनाथ मिश्र, ऑर्चर्ड
स्ट्रीट, ५ जनवरी २०१५)
वाकई कोई जाने पान पाए मरने पर कि उसे विश्वास रखने के बाद भी छल से मार-दबा दिया गया, तो विश्वास पर तो कटार ही चलेगी। गहन भावयुक्त पंक्तियां।
ReplyDeleteतारा एक टूट गया, टूटे कई तार
ReplyDeleteविश्वास पर जो चल गया कटार.....
रहस्यात्मक ..... बहुत सुन्दर
वाह...भूत से मुलाकात बहुत रोचक है..
ReplyDeleteविश्वास बरकरार रहे ... नहीं तो क्या हो जाए लय पता ...
ReplyDeleteलज्वान निहार जी ...
कम शब्दों से दिल की बात ....
ReplyDeleteशानदार...सार्थक...प्रस्तुति...
ReplyDeleteसुन्दर अर्थपूर्ण !
ReplyDeleteदिल को छूने वाली रचना
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ReplyDeleteशब्दों की जादूगरी और भावों की कलाबाजियां..