दस साल बाद
श्वेत, पीत और रक्त-वर्णी
कुसुमों से इतर
ढूंढता हूँ एक ‘’नील-कुसुम’’
तत्पर, सद्क्षण, गमसुम-गुमसुम
चंद्रमुखी! खोयी है
आकाशगंगाओं में
मैं खोया हूँ चन्द्र-शुआओं
में
और साथ है मेरे ह्रदय का यह
सीमाहीन मरुथल
जिसमे जब-तब छलक जाता है
मृगजल
दस साल बाद
अमीरी-गरीबी, हिंसा और प्रतिहिंसा
के नियत स्तंभों के बीच
अब भी ढूंढता हूँ एक
विचित्र आदमी मृत्युलोक के बीच
लेकिन सभी फंसे हैं स्वर्ग
की अप्सराओं में
और जीवन के नाम रह गया है
वही तंत्र
जिससे आखिरी दम तक उठापटक
चलती रहेगी
त्रिजटा खडग थामे रहेगी,
सीताएं दीप जलाएँगी
बाल्यखिल्य मंत्र
बुद्बुदायेंगे
हम आये थे, चले चले जाएंगे
दस साल बाद
हम फिर सोचेंगे अगले दस साल
बाद
हाथों में होगा जब नील-कुसुम
कम-कम तम होएगा गुम
मगर नील-कुसुम ‘’कहाँ किसे
मिला है’’
तब भी अँधेरे कमरे में होगा
एक दोमुंहा सांप
और हम ढूंढेंगे इसी बात का
पता
कि इतनी रंगीन रात, फिर भी
क्यों काली है
या फिर जीवन की चाल ही
निराली है
(ओंकारनाथ मिश्र, ऑर्चर्ड
स्ट्रीट, १५ दिसम्बर २०१४)
मृग मरीचिका है यह जीवन...
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना बुधवार 17 दिसम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteजब तक नहीं मिलता ये नील-कुसुम तब तक तो संभावनाएं हैं ... १० के बाद अनेक दस अगर ऐसी संभावनाओं में जीवन व्यतीत हो तो बुरा भी क्या ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना है ...
बहुत सुन्दर रचना व भाव Anil Dayama 'Ekla': निर्भया: सभ्य समाज का सच
ReplyDeleteBahut hi lajawaab rachna....
ReplyDeleteलाजबाब ..... बेहतरीन !!
ReplyDelete
ReplyDeleteमकड-जालों के उस पार---और भी जिंदगी???
इन आशाओं और आश्वासनों की मृग मरीचिका के बीच ही ज़िंदगी गुज़र जाती है...एक उत्कृष्ट रचना...
ReplyDeleteनील कुसुम की तलाश - बस इस प्रयास के पथ पर भी अगणित रत्न प्राप्त हो जाते हैं, और शायद एक दिन नील कुसुम भी! आपके पिछले दस साल के सफर पर बधाई, और आनेवाले सालों में आकाँक्षाऐं पूर्ण हों - इसकी शुभकामना!
ReplyDeleteअच्छी रचना है निहार भाई!
सादर
मधुरेश
आखिरी दम तक उठापटक चलती रहेगी
ReplyDeleteत्रिजटा खडग थामे रहेगी, सीताएं दीप जलाएँगी
...
दस साल बाद
हम फिर सोचेंगे अगले दस साल बाद
हाथों में होगा जब नील-कुसुम
गहराई लिए हुए होती हैं आपकी रचनाएं बहुत सुन्दर चिंतन
शुभ शुभ सोचें । मिल ही जायेगा नील कुसुम हमारा।
ReplyDeleteसुन्दर,गहनभावों से युक्त पंक्तियां।
ReplyDeleteअमीरी-गरीबी, हिंसा और प्रतिहिंसा के नियत स्तंभों के बीच
ReplyDeleteअब भी ढूंढता हूँ एक विचित्र आदमी मृत्युलोक के बीच
लेकिन सभी फंसे हैं स्वर्ग की अप्सराओं में
और जीवन के नाम रह गया है वही तंत्र
जिससे आखिरी दम तक उठापटक चलती रहेगी
त्रिजटा खडग थामे रहेगी, सीताएं दीप जलाएँगी
बाल्यखिल्य मंत्र बुद्बुदायेंगे
हम आये थे, चले चले जाएंगे
गहरे अर्थ बयां करती सुंदर पंक्तियां।
बहुत उत्कृष्ट रचना..
Deletemantra tantra sadhna
बहुत बढ़िया रचना निहार जी,!
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट रचना..
Deletemantra tantra sadhna
अति सुन्दर भाव पूर्ण रचना
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
ReplyDeleteजीवन की चाल निराली व नायाब है नील कुसुम से नील लोहित तक.....
बेहद गहराई से उपजी हुई पोस्ट।
देरी के लिए क्षमा निहारजी
समय चलता रहेगा, लोग बदलते रहेंगे, आकांक्षाएं थीं,हैं, और रहेंगी ... नव वर्ष की मंगलकामनायें!
ReplyDeleteकुछ न कुछ समय के साथ बदल ही जाता है ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ..
नए साल की हार्दिक मंगलकामनएं!
आपकी लेखनी में कुछ अपना भी बिम्ब उभर कर सायुज्ज्यता की पुष्टि करता है . अति आह्लादकारी..
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट रचना..
ReplyDeletemantra tantra sadhna